जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि जब जयपुर नगर निगम (Jaipur Municipal Corporation news) को दो भागों के विभाजित कर अलग-अलग निगमों का सृजन किया गया है तो कई अफसरों को दोनों निगमों का काम कैसे दिया गया है. सीजे अकील कुरेशी और जस्टिस उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने यह आदेश ओपी टांक की जनहित याचिका पर दिए.
याचिका में अधिवक्ता अभिनव शर्मा ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने शहर के विकास को सुचारु गति और प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण के लिए जयपुर नगर निगम को हैरिटेज और ग्रेटर नगर निगम के रूप में विभाजित किया था. इसके चलते पूरी मशीनरी सहित अन्य कर्मचारियों को अलग-अलग विभाजित कर कार्यो का बंटवारा किया गया है. याचिका में कहा गया कि अभी भी गैराज सहित अन्य विभागों के अधिकारी दोनों नगर निगमों का काम देख रहे हैं. इसके चलते निगम का कार्य प्रभावी रूप से नहीं हो रहा है और राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग में भी शहर पिछड़ गया है.
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याचिका में कहा गया कि पूर्व में हाईकोर्ट में नगर निगम के विभाजन को चुनौती दी गई थी. उस समय महाधिवक्ता ने यह कहते हुए राज्य सरकार का बचाव किया था कि दो निगम होने से प्रशासनिक दृष्टि से आसानी रहेगी और क्षेत्र कम होने से अधिकारी व्यापक रूप से कामों की निगरानी कर सकेंगे. याचिका में कहा गया कि अधिकारियों का बंटवारा सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया है. दोनों नगर निगमों के कई पदों पर एक ही अधिकारी काम कर रहे हैं.
याचिका में उदाहरण देते हुए बताया गया कि दोनों निगम क्षेत्रों में सफाई और कचरा ढुलाई आदि के लिए डीसी गैराज के पद पर एक अधिकारी नियुक्त है. इसी तरह अन्य पदों पर ही दोनों निगमों के लिए एक अधिकारी ही तैनात हैं. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ (rajasthan highcourt news) ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.