जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को शपथ पत्र पेश कर दो सप्ताह में बताने को कहा है कि अधिवक्ता कल्याण कोष अधिनियम 1987 के (Advocates Welfare Fund Act 1987 ) अस्तित्व में आने के बाद से अब तक राज्य सरकार की ओर से कल्याण कोष में कब और कितनी राशि जमा कराई गई.
वहीं अदालत ने बार कौंसिल ऑफ राजस्थान से भी वर्ष 1987 से अब तक इस फंड में जमा राशि का ब्यौरा पेश करने को कहा है. एक्टिंग सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव प्रहलाद शर्मा की जनहित याचिका पर दिए. अदालत ने मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि जब अधिनियम में राज्य सरकार की ओर से इस कोष में अंशदान देने का प्रावधान है तो सरकार अपनी जिम्मेदारी ने बच नहीं सकती है.
अदालत ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिवक्ताओं को अपने कल्याण के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़ रही है. अदालत ने कहा कि अतिरिक्त महाधिवक्ता आरपी सिंह न केवल राज्य सरकार के प्रतिनिधि हैं, बल्कि वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ ही कल्याण कोष के सदस्य भी हैं. ऐसे में वे राज्य सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता अपनाने को कहें. जनहित याचिका में अधिवक्ता डॉ. अभिनव शर्मा ने कहा कि वकीलों के कल्याण के लिए वर्ष 1987 में कल्याण कोष अधिनियम बनाकर प्रावधान किया गया था कि राज्य सरकार इसमें अंशदान करेगी.
लेकिन आज तक राज्य सरकार ने इसमें अपना योगदान नहीं दिया है. राज्य सरकार की ओर से कोविड काल में 10 करोड़ रुपए का सहयोग कर बढ़ा चढ़ा कर इसे अपना अंशदान बताकर प्रचारित किया जा रहा है. याचिका में यह भी कहा गया कि यूपी सरकार वहां के अधिवक्ताओं के कल्याण कोष में सालाना बीस करोड़ रुपए जमा कराती है. राज्य सरकार ने कल्याण कोष अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित कर 25 रुपए की फीस को 50 रूपए करने सहित सदस्यता राशि 17,500 रुपए से बढ़ाकर 1 लाख रुपए करने का प्रस्ताव कर दिया. जिसे विरोध के बाद राज्यपाल ने विधानसभा को वापस लौटा दिया. ऐसे में वकील अपने स्तर पर ही कल्याण कोष चलाने को मजबूर हैं.