जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने टोंक के मालपुरा में नाबालिग के साथ हुए गैंगरेप मामले की जांच सीबीआई के पास भेजने से इंकार करते हुए दायर जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता और उसके परिजनों को कोई आपत्ति हो तो वो ट्रायल कोर्ट के समक्ष जा सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांती और न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने ये आदेश अधिवक्ता धर्मराज की ओर से दायर पीआईएल को निस्तारित करते हुए दिया.
पढ़ें: केंद्र सरकार का आर्थिक पैकेज आम जनता के लिए छलावा, जनता को कोई राहत नहींः अर्चना शर्मा
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता एक युवा अधिवक्ता है, जो पीड़िता की मदद करना चाहता है. वो पीड़िता और उसके परिवार से भी नहीं मिला है. इसके अलावा उसे मामले की कोई व्यक्तिगत जानकारी भी नहीं है. जनहित याचिका सिर्फ प्रकाशित समाचार के आधार पर ही पेश की गई है.
पढ़ें: विधायक रफीक खान के सामने उड़ी सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां, मूकदर्शक बना रहा प्रशासन
वहीं, याचिका में कहा गया कि पिछले 5 मई को पीड़िता के साथ गैंगरेप हुआ था. मामले में पुलिस की ओर से कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा रही है. इस संबंध में जांच को लेकर एक सांसद की ओर से भी कई सवाल खड़े किए गए हैं. ऐसे में मामले की जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने के आदेश दिए जाए. इस पर हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने माना कि उसे प्रकरण के तथ्यों की व्यक्तिगत तौर पर कोई जानकारी नहीं है. उसने सिर्फ समाचार पत्र में प्रकाशित सांसद के बयान के आधार पर ही याचिका पेश की है.
वरिष्ठ आरएएस के अभ्यावेदन पर एक महीने में निर्णय लेने का आदेश
राजस्थान हाईकोर्ट ने वरिष्ठ आरएएस का तबादला एसडीएम पद पर करने के मामले में कार्मिक सचिव को याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर एक महीने में निर्णय करने के लिए कहा है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए कार्मिक विभाग में अभ्यावेदन देने की छूट दी है. न्यायाधीश असमीना की एकलपीठ ने ये आदेश करतार सिंह की ओर से दायर याचिका का निपटारा करते हुए दिया. याचिका में कहा गया कि वो बीसलपुर परियोजना में एडीएम पुनर्वास के पद पर कार्यरत था. पिछले 28 मार्च को राज्य सरकार ने उसका तबादला प्रतापगढ़ के धरियावाद एसडीएम के पद पर कर दिया, जबकि एडीएम का तबादला एडीएम स्तर के पद पर ही किया जा सकता है. याचिका में ये भी कहा गया कि पिछले करीब डेढ़ साल में उसका 8 बार तबादला किया गया है, जबकि वो कई गंभीर बीमारियों से भी पीड़ित है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से याचिका वापस लेने की इच्छा जताते हुए मामले में कार्मिक विभाग में अभ्यावेदन देने की छूट मांगी गई, जिसे स्वीकार करते हुए एकलपीठ ने याचिका का निस्तारण कर दिया.