जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने नगर निगम से पूछा है कि यदि संपत्ति का मालिक खुद यूडी टैक्स की गणना कर जानकारी नहीं देता है, तो इसकी गणना कौन और कैसे करता (High Court on UD Tax collection) है. अदालत ने पूछा है कि यूडी टैक्स का निर्धारण करने की शक्ति भी क्या ठेके पर दी गई है. अदालत ने इस संबंध में विस्तृत शपथ पत्र पेश कर इसकी जानकारी देने को कहा है. जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश प्रीतम सिंह व अन्य की याचिका पर दिए.
याचिका में अधिवक्ता डॉ. अभिनव शर्मा ने अदालत को बताया कि शहर में नगरीय विकास कर वसूलने का काम निजी फर्म को दिया गया (UD Tax collection by private firm) है. फर्म विधि अनुसार कर निर्धारण ना कर कम्प्यूटर के माध्यम से मनमाने तरीके से परिसरों का नापजोख कर डिमांड नोटिस बना देती है. याचिका में कहा गया कि नगरीय विकास कर स्वयं घोषणा करने वाला कर है, इसमें भवन स्वामी स्वयं कर निर्धारण करता है. वहीं जब कर अदायगी नहीं की जाती, तो ठेका कंपनी डिमांड नोटिस जारी कर देती है. जबकि कर लगाने का काम निगम अधिनियम के तहत राजस्व अधिकारियों का है ना कि ठेकेदार का.
याचिका में कहा गया कि निजी फर्म से किए गए एग्रीमेंट के तहत कर निर्धारण का काम भी फर्म को दिया गया है, जबकि यह काम किसी निजी फर्म से ना करवाकर स्वयं राज्य सरकार को ही करना होता है. इसके अलावा निगम के राजस्व अधिकारियों की ओर से एकत्रित किए जा रहे कर में से भी फर्म को 10 फीसदी कमीशन के आधार पर भुगतान किया जा रहा है. जबकि इस कर को वसूलने के लिए फर्म कोई प्रयास नहीं करती है. जिसके चलते भ्रष्टाचार हो रहा है व राजस्व की हानि भुगतनी पड़ रही है. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने नगर निगम से इस संबंध में शपथ पत्र पेश कर जानकारी देने को कहा है.