जयपुर. सियासत में कभी जिनकी तूती बोला करती थी, उनमें से कुछ आज मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य से गायब हैं. तो कुछ ऐसे भी हैं जो राजनीति में सिरमौर बन गए हैं. आज हम बात करेंगे पिछली वसुंधरा राजे सरकार में शामिल उन दिग्गज मंत्रियों (Ministers during Vasundhara Raje tenure as CM) की जो आज भाजपा पार्टी और संगठन से साइडलाइन (EX BJP ministers sidelined from party organization) हैं. हालांकि उनमें से कुछ के पास पार्टी संगठन में जिम्मेदारियां हैं, लेकिन अधिकतर संगठनात्मक गतिविधियों से लगभग गायब हैं. ऐसे में भाजपा के मिशन 2023 की सफलता पर सवाल उठना लाजमी है.
इन नेताओं को पार्टी संगठन में अहम जिम्मेदारी: पिछली सरकार में मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे वर्तमान में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और राजस्थान प्रदेश कोर कमेटी में सदस्य भी हैं. वही वसुंधरा सरकार में गृह मंत्री रहे गुलाबचंद कटारिया और ग्रामीण विकास मंत्री रहे राजेंद्र राठौड़ वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष और उप नेता की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. साथ ही ये दोनों नेता राजस्थान भाजपा कोर कमेटी के सदस्य भी हैं और पार्टी संगठन की हर गतिविधि और कार्यक्रमों में इन्हें आगे रखा जाता है. इसी तरह पूर्व महिला बाल विकास मंत्री रही अनिता भदेल वर्तमान में राजस्थान भाजपा की प्रदेश प्रवक्ता हैं और पूर्व मंत्री सुशील कटारा बीजेपी के प्रदेश महामंत्री हैं.
पूर्व में शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी को भी पार्टी ने जोधपुर जिले का प्रभारी बनाने के साथ ही सरकार के सुशासन के समन्वयक विभाग सहित कुछ जिम्मेदारी दे रखी है. इसके अलावा पूर्व मंत्री और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ अरुण चतुर्वेदी को भी राष्ट्रीय कार्य समिति का सदस्य बनाया गया है. साथ ही प्रदेश भाजपा संगठन की गतिविधियों में भी उन्हें विभिन्न जिम्मेदारियां देकर आगे रखा जाता है. ये वो नाम हैं जिनको डॉ सतीश पूनिया के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए पार्टी संगठन में काफी महत्व दिया गया. वहीं पूर्व कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी को भी पार्टी में कभी कभार संगठनात्मक रूप से कुछ काम मिल जाता है. लेकिन उन्हें कोई स्थाई दायित्व नहीं दिया गया.
ये पूर्व मंत्री पार्टी और संगठन से साइड लाइन: कुछ पूर्व मंत्रियों को मौजूदा समय में पार्टी और संगठन में पूरी तवज्जो और सम्मान मिल रहा है. लेकिन अधिकतर पूर्व मंत्री ऐसे हैं जो खुद के राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार संघर्षरत है या फिर कहें कि वे अपने स्तर पर ही राजनीतिक सक्रियता बनाए रखे हैं. लेकिन पार्टी या संगठन में उन्हें कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं मिल पाया. इनमें पूर्व परिवहन व पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान, पूर्व चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ, पूर्व नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी, पूर्व उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत, पूर्व ऊर्जा मंत्री पुष्पेंद्र सिंह, पूर्व खेल मंत्री गजेंद्र सिंह, पूर्व श्रम मंत्री जसवंत यादव, पूर्व सहकारिता मंत्री अजय सिंह किलक, पूर्व खान मंत्री सुरेंद्र पाल टीटी, पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा, कमसा मेघवाल, कृष्णेंद्र कौर दीपा और ओटाराम देवासी व बंशीधर खंडेला के नाम शामिल हैं, जिनके पास पार्टी संगठन में फिलहाल कोई जिम्मेदारी नहीं है.
ये बताए जा रहे है कारण: राजनीति में समय के साथ बदलाव आम बात है. पार्टी संगठन की कमान जब प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया के पास गई तो उन्होंने अपनी नई टीम में पुराने अनुभवी चेहरों के साथ ही नए और सक्रिय पार्टी कार्यकर्ताओं को भी पूरी तवज्जो दी. भाजपा का विशाल परिवार है लेकिन जिस प्रकार के कार्यक्रम और गतिविधियां पार्टी में चलती हैं, उसमें सैकड़ों नेताओं को विभिन्न दायित्व और पद देकर पार्टी संगठन के करीब रखा जाता है. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी नेताओं से प्रदेश संगठन ने लंबे समय से परहेज ही (Why few ministers sidelined in BJP state organization) रखा. अधिकतर नेता दबी जुबान से इस बात को स्वीकार भी करते हैं. उन पर नेता विशेष के नजदीकी होने का ठप्पा है जिसके चलते वे पार्टी संगठन की गतिविधियों और दायित्वों से साइलाइन रखे जाते हैं.
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सबके साथ के बिना कैसे पूरा होगा मिशन 2023: पार्टी और संगठन की गतिविधियों से वर्तमान में जो पूर्व मंत्री साइडलाइन हैं उनमें से अधिकतर वर्तमान में विधायक भी हैं, लेकिन संगठन के स्तर पर उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं मिली. जिसके चलते वे खुद को भी पार्टी संगठन से अलग-थलग ही महसूस कर रहे हैं. यही कारण है कि मौजूदा समय में भाजपा के कार्यक्रमों में उनकी सक्रियता कम ही दिखती है. लेकिन इससे नुकसान इन नेताओं के साथ खुद पार्टी संगठन को भी है. क्योंकि पार्टी मिशन 2023 लेकर चल रही है. इसे पूरा करने में पार्टी को सबका साथ लेना बेहद जरूरी होगा.