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वन विभाग की लापरवाही से करोड़ों का प्रोजेक्ट फेल, अब फिर 15 करोड़ खर्च कर लगेंगे टावर

वन विभाग की ओर से लगातार वन्यजीव अभ्यारण में अपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन वह विभाग की लापरवाही से प्रोजेक्ट फेल हो जाता है. वन विभाग एक बार फिर अपनी खामियों को छुपाने के लिए 15 करोड़ खर्च करने जा रहा है. देखिए यह रिपोर्ट...

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Published : Dec 11, 2020, 8:21 PM IST

वन विभाग की लापरवाही, Negligence of forest department, वन्यजीव पर अपराधिक घटनाओं को रोकना, सरिस्का और मुकुंदरा नेशनल पार्क
वन विभाग की लापरवाही से करोड़ों का प्रोजेक्ट फेल

जयपुर. वन और वन्यजीव अभ्यारण में अपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए करोड़ों के बजट तो आए, लेकिन प्रोजेक्ट सफल नहीं हो पाए. जंगलों में वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए 50 करोड़ का मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट वन विभाग की लापरवाही से फेल हो गया. वन विभाग अपनी ही खामी को छुपाने के लिए 15 करोड़ और खर्च करने जा रहा है, लेकिन वन विशेषज्ञों की मानें तो इसके बजाय वन क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए संसाधन, नफरी, चेक पोस्ट, मुखबरी बढ़ाने की आवश्यकता है.

वन विभाग की लापरवाही से करोड़ों का प्रोजेक्ट फेल

50 करोड़ खर्चकर जंगलों में वाइल्डलाइफ सर्विलांस और एंटी पोचिंग सिस्टम के टावर लगाए गए, लेकिन करीब 6 महीने से एंटी पोचिंग सिस्टम के टावर बंद पड़े हैं. 50 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट में संबंधित फर्म के आगे वन विभाग के अफसर भी असहाय बने बैठे हैं. वन अभ्यारणों में टाइगर पैंथर समेत अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा और शिकार की घटनाओं को रोकथाम के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन फिर भी वाइल्डलाइफ सर्विलेंस और एंटी पोचिंग सिस्टम का उपयोग नहीं हो पा रहा.

पढ़ें- प्रतापगढ़: भाजपा और कांग्रेस के गठबंधन से बीटीपी फिर चूकी, निर्दलीय प्रत्याशी श्यामा बाई ने दर्ज की जीत

वन विभाग की ओर से संबंधित फर्म को भी कई बार कहा गया, लेकिन फर्म ने कोई ध्यान नहीं दिया. वन विभाग में पहले से ही तकनीकी स्टाफ की कमी चल रही है. ऐसे में मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट फेल होने से वन्यजीवों की सुरक्षा को भी खतरा हो गया है. लगातार वन्यजीवों के शिकार के मामले भी सामने आ रहे हैं. हाल ही में रणथंबोर में टाइगर टी-108 के गले में तार का फंदा भी मिला था. जिसके बाद वन विभाग ने रेड अलर्ट जारी कर दिया.

रणथंबोर नेशनल पार्क, सरिस्का और मुकुंदरा में भी शिकारियों की गतिविधियां तेज हो रही है. वन्यजीवों के शिकार के साथ ही अवैध माइनिंग की घटनाएं भी हो रही है. वन विभाग के अफसर भी मानते हैं कि यह प्रोजेक्ट टाइगर मॉनिटरिंग में फेल हो गया है. प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होने से राजस्व का दुरुपयोग हुआ है. हालांकि वन विभाग की ओर से इस प्रोजेक्ट का उपयोग सुनिश्चित कराने के बजाय अब 15 करोड रुपए और खर्च किए जा रहे हैं. फर्मो को फायदा पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपए फिजूल खर्च हो रहे हैं.

वन विभाग की यूनियन के पदाधिकारियों की मानें तो कंपनी ने जंगलों में टावर लगाते समय ना तो वहां के स्टाफ से सही लोकेशन के बारे में जानकारी ली, ना ही जंगल और वन्यजीवों के ट्रैकिंग के स्थान की संबंधित स्टाफ से जानकारी जुटाई गई. जिसका खामियाजा वन और वन्यजीवो को भुगतना पड़ रहा है. जंगलों में होने वाली तस्करी और वन्यजीवों के साथ शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए प्रॉपर्ली ट्रैकिंग नहीं हो पा रही है.

आए दिन जंगल से पेड़ पौधों की कटाई और वन्यजीवों की शिकार होने की घटनाएं भी मीडिया के माध्यम से सामने आ रही है, जो कैमरे ट्रैकिंग के लिए लगाए गए थे, वह भी रात के समय सही ट्रैक नहीं कर पा रहे हैं. जिससे आए दिन वन क्षेत्रों में अपराधिक घटनाएं बढ़ रही है. ऐसे ही जयपुर के कई वन क्षेत्रों में गलत ट्रैकिंग कैमरे लगाए गए हैं. जैसे चूलगिरी झालाना समेत अन्य वन अभ्यारण में कैमरे लगाए गए थे. जो कि सही तरह से पूरा एरिया कवर नहीं कर पाते. चूलगिरी में कैमरे के ऊपर की जगह को कवर कर पाते हैं, लेकिन नीचे कवर नहीं कर पा रहे, जिसकी वजह से अपराध की घटनाएं बढ़ रही है. अगर कैमरा को सही जगह पर लगाया जाता तो वह पूरे एरिया को कवर कर पाते. कैमरे लगाना ही पर्याप्त नहीं है, कैमरे की ट्रेकिंग के लिए पर्याप्त स्टाफ होना भी आवश्यक है.

संपूर्ण संसाधनों के साथ उड़नदस्ता भी होना उपयोगी होता. 50 करोड़ खर्च करने के बजाय नफरी और स्टाफ बढ़ाया जाता तो यह कैमरे से ज्यादा उपयोगी साबित होता. इसके साथ ही स्टाफ को मुखबरी बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. वन मुख्यालय और झालाना में कैमरा ट्रेकिंग सिस्टम के लिए कंट्रोल रूम तो बनाया गया है, लेकिन शाम होने के बाद वहां भी कोई नहीं रहता. वन क्षेत्र के फील्ड स्टाफ को मोबाइल उपलब्ध करवाए जाए और उन मोबाइलों को ट्रैकिंग कैमरों से जोड़ा जाए. जिससे बीट अधिकारी अपने मोबाइल में वन क्षेत्रों की स्थिति देख सके और गतिविधियों पर मॉनिटरिंग कर सकें. जिससे जंगलों में होने वाली अपराधिक गतिविधियों पर लगाम लग सके. वन विभाग में मॉनिटरिंग सिस्टम मजबूत होना चाहिए.

जंगलों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए तकनीकी स्टाफ की तैनाती बहुत आवश्यक है. इसके साथ ही वन नाको पर चेक पोस्ट बनाकर चेकिंग अभियान चलाया जाए. शाम के बाद जंगलों के रास्तों और आसपास लोगों की आवाज आई पर मॉनिटरिंग हो. इसके साथ ही गश्ती दल बढ़ाया जाए. वन कर्मियों को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करवाए जाए. जिससे जंगलों में होने वाले शिकार और तस्करी को रोका जा सके. जंगलों में अधिकतर रात के समय ही अपराधिक घटनाएं होती है. खास तौर पर सर्दियों के मौसम में ज्यादा शिकार और तस्करी की घटनाएं होती है.

पढ़ें- जेके लोन अस्पताल: नवजात बच्चों की मौत के मामले में चिकित्सा मंत्री ने गठित की जांच कमेटी, तीन दिन में सौंपेगी रिपोर्ट

कंपनी के प्रतिनिधि भी जंगल के सेंटर पर ताला लगा कर निकल जाते हैं. जिसके बाद कोई खैर खबर लेने वाला नहीं है. ऐसे में वन विभाग भी चुप्पी साधे हुए हैं. पहले 50 करोड़ रुपये खर्च कर दिया गए, जो प्रोजेक्ट भी फेल हो चुका है. अब फिर से 15 करोड़ रुपये खर्च कर वही काम किया जा रहा है. इस बजट में सरिस्का में 14 रणथंबोर, मुकुंदरा और जैसलमेर में 4-4 टावर लगाए जाएंगे. जिसके वर्क आर्डर भी किए जा चुके हैं.

जयपुर. वन और वन्यजीव अभ्यारण में अपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए करोड़ों के बजट तो आए, लेकिन प्रोजेक्ट सफल नहीं हो पाए. जंगलों में वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए 50 करोड़ का मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट वन विभाग की लापरवाही से फेल हो गया. वन विभाग अपनी ही खामी को छुपाने के लिए 15 करोड़ और खर्च करने जा रहा है, लेकिन वन विशेषज्ञों की मानें तो इसके बजाय वन क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए संसाधन, नफरी, चेक पोस्ट, मुखबरी बढ़ाने की आवश्यकता है.

वन विभाग की लापरवाही से करोड़ों का प्रोजेक्ट फेल

50 करोड़ खर्चकर जंगलों में वाइल्डलाइफ सर्विलांस और एंटी पोचिंग सिस्टम के टावर लगाए गए, लेकिन करीब 6 महीने से एंटी पोचिंग सिस्टम के टावर बंद पड़े हैं. 50 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट में संबंधित फर्म के आगे वन विभाग के अफसर भी असहाय बने बैठे हैं. वन अभ्यारणों में टाइगर पैंथर समेत अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा और शिकार की घटनाओं को रोकथाम के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन फिर भी वाइल्डलाइफ सर्विलेंस और एंटी पोचिंग सिस्टम का उपयोग नहीं हो पा रहा.

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वन विभाग की ओर से संबंधित फर्म को भी कई बार कहा गया, लेकिन फर्म ने कोई ध्यान नहीं दिया. वन विभाग में पहले से ही तकनीकी स्टाफ की कमी चल रही है. ऐसे में मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट फेल होने से वन्यजीवों की सुरक्षा को भी खतरा हो गया है. लगातार वन्यजीवों के शिकार के मामले भी सामने आ रहे हैं. हाल ही में रणथंबोर में टाइगर टी-108 के गले में तार का फंदा भी मिला था. जिसके बाद वन विभाग ने रेड अलर्ट जारी कर दिया.

रणथंबोर नेशनल पार्क, सरिस्का और मुकुंदरा में भी शिकारियों की गतिविधियां तेज हो रही है. वन्यजीवों के शिकार के साथ ही अवैध माइनिंग की घटनाएं भी हो रही है. वन विभाग के अफसर भी मानते हैं कि यह प्रोजेक्ट टाइगर मॉनिटरिंग में फेल हो गया है. प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होने से राजस्व का दुरुपयोग हुआ है. हालांकि वन विभाग की ओर से इस प्रोजेक्ट का उपयोग सुनिश्चित कराने के बजाय अब 15 करोड रुपए और खर्च किए जा रहे हैं. फर्मो को फायदा पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपए फिजूल खर्च हो रहे हैं.

वन विभाग की यूनियन के पदाधिकारियों की मानें तो कंपनी ने जंगलों में टावर लगाते समय ना तो वहां के स्टाफ से सही लोकेशन के बारे में जानकारी ली, ना ही जंगल और वन्यजीवों के ट्रैकिंग के स्थान की संबंधित स्टाफ से जानकारी जुटाई गई. जिसका खामियाजा वन और वन्यजीवो को भुगतना पड़ रहा है. जंगलों में होने वाली तस्करी और वन्यजीवों के साथ शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए प्रॉपर्ली ट्रैकिंग नहीं हो पा रही है.

आए दिन जंगल से पेड़ पौधों की कटाई और वन्यजीवों की शिकार होने की घटनाएं भी मीडिया के माध्यम से सामने आ रही है, जो कैमरे ट्रैकिंग के लिए लगाए गए थे, वह भी रात के समय सही ट्रैक नहीं कर पा रहे हैं. जिससे आए दिन वन क्षेत्रों में अपराधिक घटनाएं बढ़ रही है. ऐसे ही जयपुर के कई वन क्षेत्रों में गलत ट्रैकिंग कैमरे लगाए गए हैं. जैसे चूलगिरी झालाना समेत अन्य वन अभ्यारण में कैमरे लगाए गए थे. जो कि सही तरह से पूरा एरिया कवर नहीं कर पाते. चूलगिरी में कैमरे के ऊपर की जगह को कवर कर पाते हैं, लेकिन नीचे कवर नहीं कर पा रहे, जिसकी वजह से अपराध की घटनाएं बढ़ रही है. अगर कैमरा को सही जगह पर लगाया जाता तो वह पूरे एरिया को कवर कर पाते. कैमरे लगाना ही पर्याप्त नहीं है, कैमरे की ट्रेकिंग के लिए पर्याप्त स्टाफ होना भी आवश्यक है.

संपूर्ण संसाधनों के साथ उड़नदस्ता भी होना उपयोगी होता. 50 करोड़ खर्च करने के बजाय नफरी और स्टाफ बढ़ाया जाता तो यह कैमरे से ज्यादा उपयोगी साबित होता. इसके साथ ही स्टाफ को मुखबरी बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. वन मुख्यालय और झालाना में कैमरा ट्रेकिंग सिस्टम के लिए कंट्रोल रूम तो बनाया गया है, लेकिन शाम होने के बाद वहां भी कोई नहीं रहता. वन क्षेत्र के फील्ड स्टाफ को मोबाइल उपलब्ध करवाए जाए और उन मोबाइलों को ट्रैकिंग कैमरों से जोड़ा जाए. जिससे बीट अधिकारी अपने मोबाइल में वन क्षेत्रों की स्थिति देख सके और गतिविधियों पर मॉनिटरिंग कर सकें. जिससे जंगलों में होने वाली अपराधिक गतिविधियों पर लगाम लग सके. वन विभाग में मॉनिटरिंग सिस्टम मजबूत होना चाहिए.

जंगलों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए तकनीकी स्टाफ की तैनाती बहुत आवश्यक है. इसके साथ ही वन नाको पर चेक पोस्ट बनाकर चेकिंग अभियान चलाया जाए. शाम के बाद जंगलों के रास्तों और आसपास लोगों की आवाज आई पर मॉनिटरिंग हो. इसके साथ ही गश्ती दल बढ़ाया जाए. वन कर्मियों को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करवाए जाए. जिससे जंगलों में होने वाले शिकार और तस्करी को रोका जा सके. जंगलों में अधिकतर रात के समय ही अपराधिक घटनाएं होती है. खास तौर पर सर्दियों के मौसम में ज्यादा शिकार और तस्करी की घटनाएं होती है.

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कंपनी के प्रतिनिधि भी जंगल के सेंटर पर ताला लगा कर निकल जाते हैं. जिसके बाद कोई खैर खबर लेने वाला नहीं है. ऐसे में वन विभाग भी चुप्पी साधे हुए हैं. पहले 50 करोड़ रुपये खर्च कर दिया गए, जो प्रोजेक्ट भी फेल हो चुका है. अब फिर से 15 करोड़ रुपये खर्च कर वही काम किया जा रहा है. इस बजट में सरिस्का में 14 रणथंबोर, मुकुंदरा और जैसलमेर में 4-4 टावर लगाए जाएंगे. जिसके वर्क आर्डर भी किए जा चुके हैं.

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