जयपुर. राजस्थानी भाषा को मान्यता दिए जाने के संबंध में लगातार उठ रही मांग के बाद एक बार फिर केंद्र के गृह और भाषा मंत्रालय ने इस मामले में प्रक्रिया शुरू की है (recognition of Rajasthani language). मंत्रालय ने राजस्थान मानव अधिकार आयोग को पत्र भेज कर इस बारे में अवगत कराया है. आयोग ने इस साल जनवरी में सामाजिक संस्था सत्यमेव जयते के पदाधिकारियों की ओर से आयोग में दी गई परिवेदना के बाद इस संबंध में केंद्र के गृह मंत्रालय और राजभाषा विभाग को नोटिस जारी किए थे.
राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह: आयोग अध्यक्ष जस्टिस जी. के. व्यास ने बताया कि आयोग के समक्ष जनवरी माह में जोधपुर की सामाजिक संस्था सत्यमेव जयते की अध्यक्ष विमला गट्टानी, पदाधिकारी ललित सुराणा और प्रवीण मेढ़ ने एक प्रार्थना पत्र पेश कर राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल किए जाने और मान्यता दिए जाने का आग्रह किया था. संस्था ने यह भी तर्क दिया था कि राजस्थान की 10 करोड़ जनता चाहती है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिले. उन्होंने कहा कि आयोग में यह भी बताया गया था कि 25 अगस्त 2003 को राजस्थान की सरकार ने राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजा था. लेकिन केंद्रीय सरकार ने आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की.
सामाजिक संस्था ने राजस्थानी भाषा को मान्यता देने और राजस्थान की 10 करोड़ जनता के मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए आयोग से निवेदन किया था कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें. इसके बाद आयोग ने केंद्र के राजभाषा विभाग को नोटिस जारी किया था. आयोग अध्यक्ष जी के व्यास कहते हैं कि इस नोटिस के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से उन्हें जानकारी मिली है कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में जो आयोग ने नोटिस दिया था. उस पर उचित कार्रवाई के लिए यह विषय गृह विभाग के संबंधित अनुभाग को अंतरित कर दिया गया है.