जयपुर. आर्थिक तंगी से जूझ रहा जयपुर नगर निगम प्रशासन अपने राजस्व अधिकारियों पर निर्भर नहीं रह कर अब प्राइवेट फर्म के साथ नगरीय विकास कर की वसूली करेगा. इसके बेहतर प्राइवेट कंपनी को अब निगम परिसर में बैठने की जगह दी गई है. इस जहां से पहले सर्वे और फिर टैक्स कलेक्शन का काम करेगी. हालांकि प्राइवेट कंपनी से टैक्स कलेक्शन को लेकर विरोध के स्वर भी उठे. जिसे निगम कमिश्नर गलतफहमी का नाम दे रहे हैं.
निगम की रेवेन्यू टीम ने बीते साल 73.94 करोड़ यूडी टैक्स वसूल किया था. हालांकि इसमें 2019-20 के महज 33 करोड़, जबकि करीब 40 करोड़ 2007 से अब तक का एरियल शामिल था. जो आगामी वर्षों में नहीं मिलने वाला और अब इससे कहीं ज्यादा टारगेट प्राइवेट फर्म को दिया गया है. बीते 5 सालों के औसत 64 करोड़ वसूली की तुलना में निगम ने प्राइवेट फर्म को 2020-21 का टारगेट 80 करोड़, जबकि इसके बाद आगामी 5 वर्ष एसेसमेंट का 75 फ़ीसदी वसूलने का टारगेट दिया गया है. साथ ही निगम अधिकारियों से कॉर्डिनेशन के लिए निगम परिसर में ही कमरे भी अलॉट कर दिए हैं.
इस संबंध में ग्रेटर नगर निगम कमिश्नर दिनेश यादव ने कहा कि काफी हैंडलिंग सरकारी रिकॉर्ड से रिलेटेड होती है. ऐसे में कंट्रोल के लिए प्राइवेट कंपनी को निगम में स्थान देना जरूरी है. सर्वे के बाद वसूली की कार्रवाई के दौरान बहुत सी ऐसी शक्तियां हैं, जो सिर्फ निगम रेवेन्यू ऑफिसर्स के पास ही है. ऐसे सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक स्थान उपलब्ध कराया गया है. उन्होंने बताया कि नगर निगम क्षेत्र में तकरीबन साढ़े चार लाख प्रॉपर्टी टैक्स के दायरे में होनी चाहिए. अंतिम सर्वे में सवा लाख प्रॉपर्टी टैक्स के दायरे में आ रही हैं. इनमें से भी महज 25 हज़ार प्रॉपर्टी का टैक्स ही निगम के पास आ रहा है.
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निगम के पास इतना स्टाफ नहीं है कि इस गैप की भरपाई की जा सके. यही वजह है कि अब प्राइवेट कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी गई है. वहीं निगम की रेवेन्यू टीम के द्वारा प्राइवेट कंपनी के विरोध पर दिनेश यादव ने कहा कि किसी तरह की गलतफहमी की वजह से ही विरोध हो रहा होगा. क्योंकि रेवेन्यू ऑफिसर्स की कमेटी के द्वारा सहमति दिए जाने पर ही प्राइवेट कंपनी को लगाया गया है.
जानकारी के अनुसार पिछली बार 2005 में हाउस टैक्स के नाते सर्वे कराया गया था. हाउस टैक्स समाप्त करने के बाद 2007 में नगरीय विकास कर लागू किया गया. बीते 15 साल से हाउस टैक्स सर्विस डाटा को ही यूडी टैक्स वसूलने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था. लेकिन बीते 15 सालों में संपत्तियों में काफी बदलाव हुए हैं. ऐसे में प्राइवेट कंपनी से दोबारा हाईटेक तरीके से सर्वे कराया जा रहा है.