जयपुर. प्रदेश में बिजली संकट (power crisis) जारी है. इसके समाधान के बजाय अब इस पर सियासत हावी होती जा रही है. आलम ये है कि ग्रामीण इलाकों के साथ अब शहरी इलाकों में भी अघोषित बिजली की कटौती (unannounced power cut) शुरू हो गई है.
हालांकि ऊर्जा मंत्री डॉ. बी.डी कल्ला कोयले की कमी और पिछली भाजपा सरकार के कुप्रबंधन को इस संकट का कारण बता रहे हैं, वहीं प्रदेश में बिजली संकट के मुद्दे पर भाजपा भी राज्य सरकार को घेर रही है. बीते दो सप्ताहों से राजस्थान में बिजली संकट चल रहा है.
ऊर्जा मंत्री डॉ बीडी कल्ला ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कुप्रबंधन को इस संकट का कारण बताया था और मौजूदा खराब वित्तीय हालत के लिए भी भाजपा को जिम्मेदार ठहराया था. अब भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ (Rajendra Rathod) ने कहा है कि ऊर्जा मंत्री के पास विभाग ज्यादा हैं और समय बेहद कम. एक ही मंत्री के पास ऊर्जा, जल व कला संस्कृति जैसे बड़े विभागों की जिम्मेदारी है. जिसके चलते वे ऊर्जा विभाग पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. राठौड ने कहा कि विभाग में महंगी बिजली खरीद के नाम पर केवल कमीशनखोरी का खेल चल रहा है.
खपत बढ़ी लेकिन कोयले की आपूर्ति में कमी
प्रदेश में मानसून की बेरुखी के चलते बिजली की खपत अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है. राजस्थान ऊर्जा विकास निगम में सितंबर माह में 14-15 हजार मेगावाट तक बिजली की डिमांड का आंकलन किया गया था, लेकिन मौजूदा हालात में इसकी पूर्ति प्रदेश के स्तर पर संभव नहीं हो पा रही है. 29 अगस्त को प्रदेश में 1 दिन में सर्वाधिक 14696 मेगावाट बिजली की मांग रही. हालांकि 30 अगस्त को कुछ इलाकों में बरसात होने के कारण डिमांड में कमी आई. मंगलवार को भी इंद्रदेव की मेहरबानी के चलते बिजली की खपत में कुछ गिरावट देखी गई. बताया जा रहा है कि अभी भी स्थिति सामान्य होने में करीब 1 सप्ताह का समय लगेगा.
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कोयले के 12 रैक की रोजाना डिमांड, सप्लाई 3-4 रैक
प्रदेश की कोयला आधारित थर्मल इकाइयों (thermal unit) में 1 सप्ताह से अधिक समय से कोयले की कमी चल रही है. हाल ही में ऊर्जा मंत्री डॉ बीडी कल्ला दिल्ली गए थे और कोयला मंत्रालय (ministry of coal ) से राजस्थान के लिए प्रतिदिन 11 से 12 रैक कोयला देने की मांग की थी. वर्तमान में राजस्थान को 3-4 रैक कोयला ही मिल रहा है. ऐसे में विद्युत उत्पादन निगम की कोयले पर आधारित अधिकतर इकाइयां या तो बंद है या पूरी क्षमता से विद्युत उत्पादन नहीं कर पा रही हैं.
कोयले की कमी के चलते कालीसिंध की 660 मेगावाट की 1 इकाई, छबड़ा की 250 मेगावाट की 2 इकाइयां बंद पड़ी हैं. वहीं सूरतगढ़ थर्मल पावर प्लांट की सभी 6 इकाई बंद हैं, जिनसे करीब 1250 मेगावाट का उत्पादन (power generation) होता था. हालांकि प्रदेश सरकार पावर एक्सचेंज के तहत उत्तर प्रदेश और पंजाब को करीब 480 मेगावाट बिजली दे रही थी, जो अब बंद कर दी गई है.
गांवों में 2-3 घंटे बिजली कटौती, शहरों में भी आपूर्ति प्रभावित
प्रदेश में बिजली संकट का असर ग्रामीण के साथ अब शहरी इलाकों में भी दिखने लगा है. बिजली की कमी के चलते ग्रामीण इलाकों में 2 से 3 घंटे की अघोषित बिजली की कटौती की जा रही थी, लेकिन अब शहरी इलाकों में भी यह बिजली की कटौती शुरू हो गई है. हालांकि डिस्कॉम के अधिकारी शहरी इलाकों में बिजली की कटौती की बात से इनकार करते हैं. राजधानी जयपुर में ही बुधवार को अलग-अलग इलाकों में अघोषित बिजली की कटौती की गई थी.
डिस्कॉम नहीं कर पाया उत्पादन निगम को भुगतान
प्रदेश में डिस्कॉम की माली हालत बेहद खराब है. प्रदेश सरकार ने बीपीएल और कृषि कनेक्शनों सहित जिन बिजली उपभोक्ताओं को सब्सिडी देने की घोषणा की थी, वह उपभोक्ताओं को मिल रही है, लेकिन डिस्कॉम को इसके लिए 18 हजार करोड़ का भुगतान किया जाना है, वह सरकार नहीं कर पा रही है. इसके अलावा 1900 करोड़ रुपए सरकारी भवन और कार्यालयों के बिजली के बिल के बकाया चल रहे हैं. उधर डिस्कॉम को यह भुगतान नहीं मिला तो उसने विद्युत उत्पादन निगम को भी बिजली से जुड़ा भुगतान नहीं किया. यह भुगतान करीब 20 हजार करोड़ का है. ऐसे में उत्पादन निगम ने कोयले खरीद का भुगतान समय पर नहीं किया और प्रदेश में कोयले की कमी का संकट गहरा गया.
पिछली सरकार से घाटे में मिली बिजली कंपनियां- ऊर्जा मंत्री
ऊर्जा मंत्री डॉ. बी.डी कल्ला डिस्कॉम की मौजूदा हालत के लिए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को दोषी ठहराते हैं. ऊर्जा मंत्री कहते हैं कि हमारी सरकार को पिछली सरकार से घाटे में ही बिजली कंपनियां मिली थीं. भाजपा के लगाए गए आरोपों पर ऊर्जा मंत्री ने कहा कि सरकार ने पूर्व में हुए महंगी दरों पर बिजली खरीद के अनुबंध को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू की है. लेकिन इसमें आगे जो भी निर्णय होना है वह कानूनी और विधिक रुप से ही होगा. वहीं बिजली की छीजत कम करने के प्रयासों की जानकारी भी ऊर्जा मंत्री ने दी.