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स्पेशल: पद्मश्री से सम्मानित किसान ने कहा- कम लागत से ज्यादा उत्पादन का पर्याय है जैविक खेती

'कम लागत से ज्यादा उत्पादन' यही जैविक खेती की पहचान है. यह कहना है पद्मश्री जगदीश पारीक का. पारीक ने गुरुवार को जैविक खेती को लेकर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला में किसानों को संबोधित किया. जयपुर के एक निजी होटल में कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें कृषि विशेषज्ञ और किसान मौजूद रहे.

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Published : Nov 28, 2019, 9:30 AM IST

Updated : Nov 28, 2019, 9:40 AM IST

जयपुर की खबर, Organic farming, पद्मश्री जगदीश पारीक
कार्यशाला को संबोधित करते हुए एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डीन बीएस यादव

जयपुर. खेती में रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता उपयोग चिंता का विषय है. इसे ध्यान में रखते हुए अब देश भर में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी क्रम में गुरुवार को प्रदेश के किसानों को गाइड करने के लिए जैविक किसान पद्मश्री जगदीश पारीक ने कार्यशाला को संबोधित किया.

जैविक खेती से किसानों की आत्महत्या की संख्या में आयेगी कमी- पद्मश्री जगदीश पारीक

इस दौरान उन्होंने बताया कि किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं की संख्या को जैविक खेती के माध्यम से कम किया जा सकता है. इसके साथ ही जगदीश पारीक ने जैविक खेती से होने वाले फायदे और खेती के तरीकों के बारे में भी जानकारी दी. उन्होंने कहा कि मिट्टी की उर्वरता घट रही है. रासायनिक उर्वरकों पर आधारित उत्पाद मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं, इसलिए ऑर्गेनिक उत्पादन और खपत बढ़ाने की आवश्यकता है.

पद्मश्री जगदीश पारीक के बारे में...

सीकर जिले के अजीतगढ़ निवासी जगदीश पारीक एक जैविक किसान हैं, जिन्हें कृषि के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. जैविक खेती में नवाचार करने पर जगदीश पारीक को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कृषि के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था. कहने को तो जगदीस एक किसान हैं, लेकिन इन्होंने खेती में नए-नए प्रयोग करके किसान वैज्ञानिक की दर्जा प्राप्त कर लिया है.

नियमित नवाचार तथा कीटनाशक मुक्त खेती की वजह से इन्होंने अपना तथा अपने क्षेत्र का नाम देश में नहीं, बल्कि विदेशों में भी रोशन किया है. अपने निरंतर प्रयोग तथा कार्यों के प्रोत्सान स्वरुप इन्हें साल 2000 में श्रष्टि सम्मान तथा साल 2001 में पहला नेशनल ग्रास रुट इनोवेशन अवार्ड मिल चुका है. इसके अलावा साल 2001 में ही इन्हें 15 किलो की गोभी उत्पादन के लिए इनका नाम लिम्का बुक में दर्ज हो चुका है.

पढ़ें: Special: 7 दशक बाद भी नाड़ा गांव में नहीं पहुंचा 'विकास', आज भी लोग नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर

कार्यशाला में एसकेएन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डीन बीएस यादव भी मौजूद रहे. मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंवे उन्होंने कहा कि यह समय की मांग है कि संतुलित दृष्टिकोण के साथ आधुनिक तकनीकों को जैविक खेती के साथ समन्वय करके थाली में आने वाले जेल की मात्रा कम करने की आवश्यकता है. इसके अलावा उन्होंने किसानों के साथ तालमेल स्थापित करने की आवश्यकता और प्रभावी नीतियों की रूपरेखा तैयार करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि कृषि में रासायनिक उर्वरक का बढ़ता उपयोग चिंता का विषय है. रसायनिक उर्वरकों का उपयोग उत्पादन के बदले में 25 गुना बढ़ गया है. विशेषज्ञों के मुताबिक 2025 तक देश की आबादी का पेट भरने के लिए 30 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी. इसके लिए फसलों में रासायनिक उर्वरकों की खपत बढ़ते स्वास्थ्य खतरों की ओर संकेत करती है.

जयपुर. खेती में रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता उपयोग चिंता का विषय है. इसे ध्यान में रखते हुए अब देश भर में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी क्रम में गुरुवार को प्रदेश के किसानों को गाइड करने के लिए जैविक किसान पद्मश्री जगदीश पारीक ने कार्यशाला को संबोधित किया.

जैविक खेती से किसानों की आत्महत्या की संख्या में आयेगी कमी- पद्मश्री जगदीश पारीक

इस दौरान उन्होंने बताया कि किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं की संख्या को जैविक खेती के माध्यम से कम किया जा सकता है. इसके साथ ही जगदीश पारीक ने जैविक खेती से होने वाले फायदे और खेती के तरीकों के बारे में भी जानकारी दी. उन्होंने कहा कि मिट्टी की उर्वरता घट रही है. रासायनिक उर्वरकों पर आधारित उत्पाद मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं, इसलिए ऑर्गेनिक उत्पादन और खपत बढ़ाने की आवश्यकता है.

पद्मश्री जगदीश पारीक के बारे में...

सीकर जिले के अजीतगढ़ निवासी जगदीश पारीक एक जैविक किसान हैं, जिन्हें कृषि के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. जैविक खेती में नवाचार करने पर जगदीश पारीक को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कृषि के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था. कहने को तो जगदीस एक किसान हैं, लेकिन इन्होंने खेती में नए-नए प्रयोग करके किसान वैज्ञानिक की दर्जा प्राप्त कर लिया है.

नियमित नवाचार तथा कीटनाशक मुक्त खेती की वजह से इन्होंने अपना तथा अपने क्षेत्र का नाम देश में नहीं, बल्कि विदेशों में भी रोशन किया है. अपने निरंतर प्रयोग तथा कार्यों के प्रोत्सान स्वरुप इन्हें साल 2000 में श्रष्टि सम्मान तथा साल 2001 में पहला नेशनल ग्रास रुट इनोवेशन अवार्ड मिल चुका है. इसके अलावा साल 2001 में ही इन्हें 15 किलो की गोभी उत्पादन के लिए इनका नाम लिम्का बुक में दर्ज हो चुका है.

पढ़ें: Special: 7 दशक बाद भी नाड़ा गांव में नहीं पहुंचा 'विकास', आज भी लोग नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर

कार्यशाला में एसकेएन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डीन बीएस यादव भी मौजूद रहे. मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंवे उन्होंने कहा कि यह समय की मांग है कि संतुलित दृष्टिकोण के साथ आधुनिक तकनीकों को जैविक खेती के साथ समन्वय करके थाली में आने वाले जेल की मात्रा कम करने की आवश्यकता है. इसके अलावा उन्होंने किसानों के साथ तालमेल स्थापित करने की आवश्यकता और प्रभावी नीतियों की रूपरेखा तैयार करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि कृषि में रासायनिक उर्वरक का बढ़ता उपयोग चिंता का विषय है. रसायनिक उर्वरकों का उपयोग उत्पादन के बदले में 25 गुना बढ़ गया है. विशेषज्ञों के मुताबिक 2025 तक देश की आबादी का पेट भरने के लिए 30 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी. इसके लिए फसलों में रासायनिक उर्वरकों की खपत बढ़ते स्वास्थ्य खतरों की ओर संकेत करती है.

Intro:जयपुर
एंकर- कम लागत से ज्यादा उत्पादन यही जैविक खेती की पहचान है यह कहना है पदमश्री जगदीश पारीक का। पारीक आज जैविक खेती को लेकर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला में किसानों को संबोधित करने जयपुर पहुंचे। जयपुर के एक निजी होटल में कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें कृषि विशेषज्ञ और किसान मौजूद रहे।


Body:खेती में रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता उपयोग चिंता का विषय बना हुआ है। इसको ध्यान में रखते हुए अब देश भर में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस क्रम में आज प्रदेश के किसानों को गाइड करने के लिए जैविक किसान जगदीश पारीक ने कार्यशाला को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने बताया कि किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं की संख्या को जैविक खेती के माध्यम से कम किया जा सकता है। इसके साथ ही जगदीश पारीक ने जैविक खेती से होने वाले फायदे और खेती के तरीकों के बारे में भी जानकारी दी। साथ ही उन्होंने कहा कि मिट्टी की उर्वरता घट रही है। रासायनिक उर्वरकों पर आधारित उत्पाद मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। इसलिए ऑर्गेनिक उत्पादन और खपत बढ़ाने की आवश्यकता है।
इस मौके पर एसकेएन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डीन बीएस यादव ने कहा कि यह समय की मांग है कि संतुलित दृष्टिकोण के साथ आधुनिक तकनीकों को जैविक खेती के साथ समन्वय करके थाली में आने वाले जेल की मात्रा कम करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने किसानों के साथ तालमेल स्थापित करने की आवश्यकता और प्रभावी नीतियों की रूपरेखा तैयार करने पर जोर दिया। कृषि में रासायनिक उर्वरक का का बढ़ता उपयोग चिंता का विषय है। रसायनिक उर्वरकों का उपयोग उत्पादन के बदले में 25 गुना बढ़ गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक 2025 तक देश की आबादी का पेट भरने के लिए 30 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी इसके लिए फसलों में रासायनिक उर्वरको की खपत बढ़ते स्वास्थ्य खतरों की ओर संकेत करती है।

बता दे कि सीकर जिले के अजीतगढ़ निवासी जगदीश पारीक एक जैविक किसान है। जिन्हें कृषि के क्षेत्र में पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जैविक खेती में नवाचार करने पर जगदीश पारीक को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कृषि के क्षेत्र में पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।

बाईट- जगदीश पारीक, पदमश्री जैविक किसान
बाईट- दीपक सक्सेना, आयोजककर्ता




Conclusion:
Last Updated : Nov 28, 2019, 9:40 AM IST
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