जयपुर. पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य अब सीएम गहलोत के सलाहकार टीम का हिस्सा हैं. मुख्यमंत्री के ताज की शोभा 9 रत्न बढ़ा (Nine Gems Of CM Gehlot) रहे हैं. सलाहकारों की फेहरिस्त को लेकर विपक्ष मुखर है. उन गलत फैसलों को बार बार उछाला जा रहा है जो सरकार की छवि को मटियामेट कर गए. गलत या जल्द बाजी में फैसले हुए जिसमें सरकार को यूटर्न लेना पड़ा. आइए आप को बताते है वो कौन से फैसले हैं जिनकी वजह से सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा.
सोमवार को एक और रिटायर्ड आईएएस का नाम जुड़ने के साथ ही इनकी संख्या 9 (Nine Gems Of CM Gehlot) हो गई . इनमें छह विधायक और दो सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारियों को पहले से ही अपना सलाहकार नियुक्त किया हुआ है. अब निरंजन आर्य को भी सलाहकार बनाया गया है. सभी को सरकारी सुविधाएं दी गईं हैं. बता दें कि सीएम गहलोत ने सरकार बनने के साथ आईएएस अरविंद मायाराम को आर्थिक , गोविंद शर्मा को सलाहकार नियुक्त किया साथ ही पूर्व मुख्य सचिव डीबी गुप्ता को कुछ समय के लिए सलाहकार बनाया गया. बाद में उन्हें सूचना आयुक्त बना दिया गया.
इस साल नवंबर में कांग्रेस विधायक दानिश अबरार, राजकुमार शर्मा और जितेंद्र सिंह के साथ ही सरकार को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा और बाबूलाल नागर को सलाहकार नियुक्त किया था. इस तरह से सीएम अशोक गहलोत के सलाहकारों में तीन सेवानिवृत अधिकारी और छह विधायक हो गए हैं. सभी को सरकारी सुविधाएं दी गई हैं .
सलाहकार इतने फिर भी फैसलों पर घिरी सरकार: प्रदेश में गहलोत सरकार बने 3 साल से ज्यादा हो गए हैं. ये तीन साल सरकार के लिए आसान नहीं रहे चुनौतियां कई रहीं. सियासी उठापटक में अपने ही लोगों की बगावत और फिर कोरोना काल मानो अशोक गहलोत का यह कार्यकाल संघर्ष और मुसीबतों से घिरा ही रहा , लेकिन सरकार से भी कई ऐसे फैसले हुए जिससे उनकी खूब किरकिरी हुई. सरकार के सलाहकार भी सही तरीके से सलाह नहीं दे पाए जिसकी वजह से सरकार को अपने फैसलों पर बैकफुट पर आना पड़ा.
राजे सरकार का बदला फैसला: सत्ता में आने के साथ ही गहलोत सरकार ने पूर्व की राजे सरकार का फैसला पलटते हुए नगर निगमों के मेयर, नगरपालिका चेयरमैन, नगर परिषद सभापति के चुनाव पार्षदों की जगह सीधे जनता से करवाने का फैसला लिया. सरकार के इस फैसले का विरोध पार्टी के भीतर ही होने लगा. फिर यूटर्न लिया (U Turn Of Gehlot Government) अक्टूबर 2019 में अपने ही फैसले को पलटते हुए वापस पार्षदों के जरिए ही निकाय प्रमुखों के चुनाव करवाने का प्रावधान कर दिया .
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साल 2019 में उपचुनाव के दौरान शहरी निकायों में गैर पार्षद के भी चेयरमैन और मेयर बनने का प्रावधान रखा गया , लेकिन इनका भी डिप्टी सीएम रहते सचिन पायलट सहित पार्टी के कुछ नेताओं ने विरोध किया. बैकडोर एंट्री का हवाला दिया. पार्टी में अंदरखाने विरोध होने के बाद सरकार को अपना फैसला तुरंत वापस लेना पड़ा.
और झेलनी पड़ी सरपंचों की नाराजगी: साल 2021 में ही प्रदेश भर में ग्राम पंचायतों को उनके अकाउंट की जगह नए पीडी अकाउंट खुलवाने का आदेश जारी किया , लेकिन प्रदेश के हजारों सरपंच इस फैसले के विरोध में उतर आए. सरपंचों के बढ़ते विरोध की बीच सरकार को अपना फैसला बदलना (U Turn Of Gehlot Government) पड़ा .
VAT पर U Turn: केंद्र सरकार के पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम कर सस्ता करने के फैसले के बाद गहलोत ने प्रदेश में वैट कम करने से साफ मना कर दिया. लेकिन कांग्रेस समर्थित राज्यों ने (जिसमें पंजाब सबसे पहले शामिल था) एक्साइज ड्यूटी कम करने का निर्णय लिया . वैट कम नहीं करने से राजस्थान उन राज्यों की फेहरिस्त में पहले पायदान पर आ गया जहां सबसे ज्यादा महंगा पेट्रोल-डीजल मिलता था. आखिरकार, चौतरफा घिरी गहलोत सरकार को भी पेट्रोल-डीजल रेट में 5 रुपए की कमी करनी पड़ी .
खेमेबाजी का दंश: सचिन पायलट कैंप की बगावत के वक्त विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा को मंत्री पद से हटा दिया , लेकिन बाद में जब मंत्रिमंडल विस्तार के समय 16 माह बाद फिर से दोनों विधायकों को मंत्री बना दिया. विश्वेंद्र सिंह को तो उनका पुराना पर्यटन विभाग ही देना पड़ा.
बाल विवाह बिल पर किरकिरी: मानसून सत्र के दौरान सितंबर महीने में बाल विवाह रजिस्ट्रेशन संबंधी बिल गहलोत सरकार ने भारी विरोध के बीच पारित करवाया. बिल पारित होने के साथ सरकार को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा. विपक्ष के साथ सामाजिक संगठनों ने भी सरकार के इस फैसले की जम कर मुखालफत की. मामला हाईकार्ट तक पहुंचा, सरकार की छवि खराब होते देख सीएम अशोक गहलोत ने इस बिल को वापस लेने का निर्णय किया.
REET पर रार: भर्ती परीक्षाओं पर घिरी रही गहलोत सरकार , प्रदेश की गहलोत सरकार ने भले ही रीट (Reet Exam 2021) और पटवारी परीक्षा एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कराने का रिकॉर्ड बनाया हो लेकिन इन परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी ने गहलोत सरकार की छवि को धूमिल कर दिया. इससे पहले आरएएस भर्ती (RAS Entrance Exam) में सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. यहां तक कि रीट परीक्षा की जांच तो एसओजी (SOG Probe In Reet Exam) को सौंपनी पड़ी.
अलवर मामले में फजीहत (Alwar Atrocity Case): अलवर विमंदित बच्ची के मामले में भी गहलोत सरकार को काफी किरकिरी झेलनी पड़ी. मामले में कभी पुलिस दुष्कर्म तो फिर एक्सीडेंट बताती रही. हालात यह है कि इस मामले की जांच सीबीआई को देनी पड़ी.
लाइव वीसी में मंत्री में मतभेद: कोरोना काल के दौरान कई बार ऐसा हुआ जब कई फैसलों पर सरकार के मंत्री ही आपस में उलझे. चाहें स्कूल खोलने का मामला हो या शादियों में छूट देने का मामला यहां तक कि दीपावली पर आतिशबाजी के फैसले पर भी सरकार को यू टर्न लेना पड़ा.
किसानों की कर्जमाफी पर आलोचना: प्रदेश में कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले किसानों की सम्पूर्ण कर्ज माफी की बात कही थी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो सरकार बनने के 10 दिन में ही किसानों के कर्ज माफ का एलान किया, लेकिन सहकारी समितियों के अलावा सरकार ने कोई कर्ज माफ नही किया. इसे लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
किसानों की जमीन नीलामी पर घिरी: एक तरफ तो किसानों की कर्ज माफी का वादा दूसरी तरफ कर्ज नहीं चुकाने पर किसानों की जमीन नीलामी ने गहलोत सरकार चौतरफा घेर दिया. बाद में सरकार को प्रदेश में जमीन नीलामी पर रोक लगानी पड़ी.
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सलाहकारों पर विपक्ष का भी निशाना: गहलोत सरकार में नो सलाहकार होने के बाद भाजपा ने जमकर निशाना साधा है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हो या फिर उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ , यहां तक बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी सलाहकारों की फ़ौज पर निशाना साधा और कहा की अकबर के दरबार में 9 रत्न तो एकत्रित कर लिए लेकिन इनमें से कोई सरकार को सही मार्ग नही दिखा पा रहा.