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नवरात्रि विशेष: शिला माता मंदिर की रोचक कहानी...बंगाल से लाकर राजा मानसिंह प्रथम ने आमेर में की स्थापित

शारदीय नवरात्रि 29 सितंबर से शुरू हो रहे है. नवरात्रि में माता के दर्शन करने के लिए मंदिर में भक्तों की भीड़ देखते ही उमड़ती है. इस नवरात्रि पर घट स्थापना सुबह 6 बजकर 35 मिनिट पर होगी. नवरात्र पर आज हम आपकों राजधानी जयपुर के आमेर महल में विराजमान शिला माता मंदिर की ऐतिहासिक और रोचक कहानी बताने जा रहे है.

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Published : Sep 28, 2019, 11:15 PM IST

जयपुर. नवरात्रि यानी देवी के नौ दिन. शारदीय नवरात्र हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक हैं. नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है. ऐसे में राजस्थान में भी मां दुर्गा के कई ऐसे मंदिर है. जो ऐतिहासिक है साथ ही उनका इतिहास भी काफी पुराना है. ऐसा ही जयपुर के आमेर महल में विराजमान शिला माता मंदिर भी है.

आमेर शिला माता मंदिर की रोचक कहानी

शिला देवी को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से लाए आमेर
आमेर में मां काली के बारे में आज भी ढूंढाड अंचल इतिहास पर आधारित बहुत सी किवदंतिया प्रचलित है. शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को राजा मानसिंह जसोल बंगाल से 1604 ईस्वी में लेकर आए थे. बताया जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयत्न में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद मांगा. इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की. इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया.

पढ़ें- नवरात्रि विशेष: राजस्थान में देवी का एकमात्र मंदिर जहां हर दिन दूध से होता है अभिषेक...5000 साल से भी पुराना है इतिहास

इस मंदिर को महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में बनवाया था. इससे पहले यह मंदिर चूने का बना हुआ था. मंदिर के प्रवेश दरवाजे पर एक पुरातत्वीय विवरण लिखा हुआ है. जिसमें बताया गया है कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से सौलहवीं सदी में आमेर लेकर आए थे.

शिला देवी की ऐतिहासिक मूर्ति की कहानी
आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा के टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है. बताया जाता है की माता स्वयं-भू राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी. यहां देवी को नर बलि दी जाती थी. लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नरबलि के जगह पशु बलि देने की बात कही. जिससे माता रुष्ठ हो गयी और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली. तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है.

माता के गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है. जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिके के छोटी-छोटी प्रतिमा बनी हुई है. शिला देवी की प्रतिमा के एक तरफ खड़े हुए गणेश जी की प्रतिमा है. जो तंत्र का रूप है तो वहीं दूसरी तरफ मीणा शासकों के समय की हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है. देवी को खुश करने के लिए इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती थी. जो कि बाद में बंद कर दी गर्इ. शिला देवी मंदिर संगमरमर के पत्थरों से बना है. राज परिवार भी आता है और मंदिर में पूजा पाठ होते है. मां को ऋतु फल का भोग लगाया जाता.

नवरात्रि में लगती है श्रदालुओं की कतार
आमेर की ऊंचाई पर मौजूद शिला देवी मंदिर में नवरात्रि में मंदिर में काफी संख्या में माता के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते है. श्रदालुओं का कहना है की शिला देवी से जो भी मनोकामना मांगे वो पूर्ण होती है. वहीं कई श्रदालु रोजाना कई किलोमीटर ऊंचाई पर चढ़कर माता के मंदिर में पहुंचते है और मनोकामना मांगते है. इतना ही नहीं 20 से 25 साल पुराने श्रदालुओं का कहना है को मां के दरबार हर काम पूर्ण होते है.

पढ़ें- बंगाली परंपराओं की तर्ज पर अजमेर में बन रही दुर्गा प्रतिमाएं

मंदिर महंत ने बताया कि इस बार घट स्थापना 6 बजकर 35 मिनिट पर की जाएगी. वहीं पहले नवरात्रा पर दर्शनार्थी के लिए दर्शन 7.25 पर खोले जाएंगे. जो 12 बजकर 30 मिनिट तक खुले रहेंगे. शाम को 4 बजे से 8.30 बजे तक पट खुले रहेंगे. अन्य दिनों में पट 6.35 से 12.30 बजे तक खुले रहेंगे और शाम का समय यथावत रहेगा.

जयपुर. नवरात्रि यानी देवी के नौ दिन. शारदीय नवरात्र हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक हैं. नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है. ऐसे में राजस्थान में भी मां दुर्गा के कई ऐसे मंदिर है. जो ऐतिहासिक है साथ ही उनका इतिहास भी काफी पुराना है. ऐसा ही जयपुर के आमेर महल में विराजमान शिला माता मंदिर भी है.

आमेर शिला माता मंदिर की रोचक कहानी

शिला देवी को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से लाए आमेर
आमेर में मां काली के बारे में आज भी ढूंढाड अंचल इतिहास पर आधारित बहुत सी किवदंतिया प्रचलित है. शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को राजा मानसिंह जसोल बंगाल से 1604 ईस्वी में लेकर आए थे. बताया जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयत्न में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद मांगा. इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की. इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया.

पढ़ें- नवरात्रि विशेष: राजस्थान में देवी का एकमात्र मंदिर जहां हर दिन दूध से होता है अभिषेक...5000 साल से भी पुराना है इतिहास

इस मंदिर को महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में बनवाया था. इससे पहले यह मंदिर चूने का बना हुआ था. मंदिर के प्रवेश दरवाजे पर एक पुरातत्वीय विवरण लिखा हुआ है. जिसमें बताया गया है कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से सौलहवीं सदी में आमेर लेकर आए थे.

शिला देवी की ऐतिहासिक मूर्ति की कहानी
आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा के टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है. बताया जाता है की माता स्वयं-भू राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी. यहां देवी को नर बलि दी जाती थी. लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नरबलि के जगह पशु बलि देने की बात कही. जिससे माता रुष्ठ हो गयी और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली. तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है.

माता के गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है. जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिके के छोटी-छोटी प्रतिमा बनी हुई है. शिला देवी की प्रतिमा के एक तरफ खड़े हुए गणेश जी की प्रतिमा है. जो तंत्र का रूप है तो वहीं दूसरी तरफ मीणा शासकों के समय की हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है. देवी को खुश करने के लिए इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती थी. जो कि बाद में बंद कर दी गर्इ. शिला देवी मंदिर संगमरमर के पत्थरों से बना है. राज परिवार भी आता है और मंदिर में पूजा पाठ होते है. मां को ऋतु फल का भोग लगाया जाता.

नवरात्रि में लगती है श्रदालुओं की कतार
आमेर की ऊंचाई पर मौजूद शिला देवी मंदिर में नवरात्रि में मंदिर में काफी संख्या में माता के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते है. श्रदालुओं का कहना है की शिला देवी से जो भी मनोकामना मांगे वो पूर्ण होती है. वहीं कई श्रदालु रोजाना कई किलोमीटर ऊंचाई पर चढ़कर माता के मंदिर में पहुंचते है और मनोकामना मांगते है. इतना ही नहीं 20 से 25 साल पुराने श्रदालुओं का कहना है को मां के दरबार हर काम पूर्ण होते है.

पढ़ें- बंगाली परंपराओं की तर्ज पर अजमेर में बन रही दुर्गा प्रतिमाएं

मंदिर महंत ने बताया कि इस बार घट स्थापना 6 बजकर 35 मिनिट पर की जाएगी. वहीं पहले नवरात्रा पर दर्शनार्थी के लिए दर्शन 7.25 पर खोले जाएंगे. जो 12 बजकर 30 मिनिट तक खुले रहेंगे. शाम को 4 बजे से 8.30 बजे तक पट खुले रहेंगे. अन्य दिनों में पट 6.35 से 12.30 बजे तक खुले रहेंगे और शाम का समय यथावत रहेगा.

Intro:जयपुर- शारदीय नवरात्रा 29 सितंबर से शुरू हो रहे है। नवरात्रा में माता के दर्शन करने के लिए मंदिर में भक्तों की भीड़ देखते ही उमड़ती है। इस नवरात्रा घट स्थापना सुबह 6 बजकर 35 मिनिट पर होगी। नवरात्रा पर आज हम आपको राजधानी जयपुर के आमेर महल में विराजमान शिला माता मंदिर की ऐतिहासिक और रोचक कहानी बताने जा रहे है।





Body:शिला देवी को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से लाए आमेर

आमेर में माँ काली के बारे में आज भी ढूंढाड अंचल इतिहास पर आधारित बहुत सी किवदंतिया प्रचलित है। शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को राजा मानसिंह जसोल बंगाल से 1604 ईस्वी में लेकर आए थे। बताया जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयत्न में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद माँगा। इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की। इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया। इस मंदिर काे महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में बनवाया था। इससे पहले यह मंदिर चूने का बना हुआ था। मंदिर के प्रवेश दवाजे पर एक पुरातत्वीय विवरण लिखा हुआ है जिसमें बताया गया है कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से सौलहवीं सदी में आमेर लेकर आए थे।

शिला देवी की ऐतिहासिक मूर्ति की कहानी
आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा के टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है। बताया जाता है की माता स्वयं-भू राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी। यहाँ देवी को नर बलि दी जाती थी। लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नरबलि के जगह पशु बलि देने की बात कही। जिससे माता रुष्ठ हो गयी और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली। तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है। माता के गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है जिसमें ब्रहमा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिके के छोटी छोटी प्रतिमा बनी हुई है। शिला देवी की प्रतिमा के एक तरफ खड़े हुए गणेश जी की प्रतिमा है जो तंत्र का रूप है तो वही दूसरी तरफ मीणा शासकों के समय की हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है। देवी को खुश करने के लिए इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती थी जाे कि बाद में बंद कर दी गर्इ। शिला देवी मंदिर संगमरमर के पत्थराें से बना है। राज परिवार भी आता है और मंदिर में पूजा पाठ होते है। माँ को ऋतु फल का भोग लगाया जाता

नवरात्रा में लगती है श्रदालुओं की कतार
आमेर की ऊँचाई पर मौजूद शिला देवी मंदिर में नवरात्रि में मंदिर में काफी संख्या में माता के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते है। श्रदालुओं का कहना है की शिला देवी से जो भी मनोकामना मांगे वो पूर्ण होती है। वही कई श्रदालु रोजाना कई किलोमीटर ऊँचाई को चढ़कर माता के मंदिर में पहुँचते है और मनोकामना मांगते है। इतना ही नहीं 20 से 25 साल पुराने श्रदालुओं का कहना है को माँ के दरबार हर काम पूर्ण होते है।

मंदिर महंत ने बताया कि इस बार घट स्थापना 6 बजकर 35 मिनिट पर की जाएगी। वही पहले नवरात्रा पर दर्शनार्थी के लिए दर्शन 7.25 पर खोले जाएंगे जो 12 बजकर 30 मिनिट तक खुले रहेंगे। शाम को 4 बजे से 8.30 बजे तक पट खुले रहेंगे। अन्य दिनों में पट 6.35 से 12.30 बजे तक खुले रहेंगे और शाम का समय यथावत रहेगा।

बाईट- बनवारी लाल शास्त्री, पुजारी


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