जयपुर. देश में राजस्थान ऐसा पहला राज्य है जहां की सत्ता में अब दिव्यांगों की भागीदारी सुनिश्चित हो गई है. इसके लिए एक माह पहले राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने दिव्यांगजनों के लिए क्रांतिकारी कदम भी उठाया, लेकिन यह भी सच है कि इसके लिए वर्षों से दिव्यांग अधिकार महासंघ ने संघर्ष किया. आज विशेष योग्यजन दिवस अवसर पर यह जानने की कोशिश की गई कि दिव्यांगों के लिए ये महासंघ आगे किस तरह से पैरवी कर रहा है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने दिव्यांगों के लिए महासंघ के संघर्ष की कहानी पर चर्चा की.
विगत एक दशक से दिव्यांग अधिकार महासंघ दिव्यांगजनों को सत्ता और राजनीति में समान भागीदारी देने की पैरवी कर रहा था. इसको लेकर महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेमंत भाई गोयल ने अनेक बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा और विशेष योग्यजन न्यायालय में परिवाद भी दायर किया. उसी का नतीजा है कि अब दिव्यांग भी सत्ता में पक्की भागीदारी निभा सकते हैं.
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ईटीवी भारत से खास बातचीत में महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेमंत भाई गोयल ने बताया कि वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिव्यांग अधिकारों के किए प्रस्ताव पारित किए गए और दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 के तहत दिव्यांगों के लिए समाज में समान अवसर व महत्वपूर्ण भागीदारी होने के साथ उनके अधिकारों का संरक्षण भी होना चाहिए.
इसी के तहत दिव्यांग अधिकार महासंघ ने दिव्यांगों को सत्ता में भी भागीदारी मिलने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था. उसी का नतीजा है कि हाल ही में सीएम गहलोत ने राजस्थान की नगर पालिका, नगर परिषद और नगर निगम में एक दिव्यांग को पार्षद के तौर पर मनोनीत करने का निर्णय लिया है.
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हालांकि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के समय अपने जन घोषणा पत्र में दिव्यांग जनों और उनके परिवारजनों को BPL परिवारों की तरह सभी सुविधाएं देने का वादा किया था, जो कि अभी अधूरा है. हेमंत भाई गोयल ने कहा कि इसको लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा गया है. चूंकि दिव्यांगजनों के सामने मेडिकल ट्रीटमेंट में समस्याएं आए दिन आती है. ऐसे में आगे उन्हें बीपीएल की तरह सुविधाएं दी जाएंगी तो वहीं केंद्र सरकार के आयुष्मान भारत योजना के तहत पांच लाख रुपये का मेडीक्लेम कवर का तोहफा भी मिलेगा.
![Divyang will also participate in politics](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/9749624_thu.png)
समाज में दिव्यांगजनों को अलग नजरिए से देखा जाता है, जिसके चलते उन्हें कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. इसको लेकर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट साहिल त्रिवेदी ने कहा कि मनोविज्ञान ने अपने रिसर्च में यह जाना है कि जो भी दिव्यांगजन हैं उन्हें दिव्यांग ना बोलकर हम डिफरेंटली एबल बोलते हैं. उनके अंदर एक विशेष हुनर होता है. अगर हम उन्हें मौका दें तो वो समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकते हैं लेकिन हमारा समाज उन्हें अपना हिस्सा नहीं समझता है.
बदलाव विचारों से आता है, ऐसे में दिव्यांंगजनों को अपने से अलग समझने का विचार अगर मन से निकाल दें तो वे हमारे जैसे ही आम प्राणी हो जाएंगे और समाज की मूल धारा से जुड़ जाएंगे. समाज और सरकार अपने स्तर पर दिव्यांग बच्चों और लोगों के विकास में सहयोग कर रहे हैं, लेकिन आम आदमी भी इस पर अपना नजरिया बदले तो निश्चित ही ये भी विशेष से सामान्य बन जाएंगे.