जयपुर. वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर शनिवार को भगवान नरसिंह की जयंती मनाई जा रही है. छोटी काशी में भी नरसिंह भगवान और विष्णु भगवान के मंदिरों में भगवान का अभिषेक और शृंगार किया जा रहा है. इस दौरान सुबह भगवान का दूध, पंचगव्य और फलों के रस से अभिषेक किया गया. वहीं शाम को नरसिंह लीलाओं का आयोजन होगा. बता दें कि कोरोना की वजह से मंदिरों में दो साल से नरसिंह लीला का आयोजन नहीं हुआ था. ताड़केश्वर मंदिर के सामने नरसिंह अवतार की सवारी निकाली जाएगी.
आज वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि दोपहर 3:22 बजे शुरू होगी और 15 मई की दोपहर 12:45 बजे तक मान्य रहेगी. ऐसे में जयपुर के प्रमुख गोनेर स्थित श्री लक्ष्मी जगदीश मंदिर, बगरू वालों के रास्ते से बंशी वाले बाबा की बगीची, खजाने वालों का रास्ता स्थित नरसिंह मंदिर और पांच बत्ती स्थित देवस्थान विभाग के प्राचीन नरसिंह भगवान मंदिर में भगवान का पंचामृत अभिषेक कर नवीन पोशाक धारण करवाई जाएगी. शहर के प्राचीन ताड़केश्वर मंदिर में करीब 200 साल पुरानी नरसिंह लीला महोत्सव मनाया जाएगा. जिसमें नरसिंह भगवान खंभे को फाड़ कर प्रकट होंगे और लीलाएं करेंगे.
पौराणिक कथा के अनुसार, अपने भाई हिरण्याक्ष के वध से नाराज हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था. उसने अपने कठोर तप से अजेय होने जैसा वरदान प्राप्त कर लिया था. उसे वरदान प्राप्त था कि उसे कोई नर या पशु नहीं मार सकता, उसे घर में या बाहर, जमीन पर या आसमान में नहीं मारा जा सकता, उसे अस्त्र या शस्त्र से, दिन या रात में भी नहीं मारा जा सकता है. इसी वरदान के कारण वे खुद को ही भगवान समझने लगा और तीनों लोकों पर अत्याचार करने लगा. उसका आतंक इतना बढ़ गया था कि देवता भी भय खाने लगे थे.
हालांकि, हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही विष्णु भक्त था. वह असुरों के बच्चों को भी विष्णु भक्ति के लिए प्रेरित करता था. जब इस बात की पता हिरण्यकश्यप को चली तो उसने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति छोड़ने को कहा, उसके मना करने पर हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को कई प्रकार की यातनाएं दीं. एक दिन उसने प्रह्लाद को समझाने के लिए राज दरबार में बुलाया और कहा कि यदि तुम्हारे भगवान हर जगह मौजूद हैं, तो इस खंभे में क्यों नहीं हैं? उसने उस खंभे पर प्रहार किया. तभी उस खंभे में से भगवान नरसिंह प्रकट हुए. उनका आधा शरीर सिंह और आधा नर का था.
उन्होंने हिरण्यकश्यप को पकड़ लिया और घर की दहलीज पर ले जाकर उसे अपने पैरों पर लेटा कर, अपने तेज नाखुनों से उसका वध कर दिया. उस समय गोधूलि वेला थी. हिरण्यकश्यप का जब वध हुआ तो न उस समय दिन था न रात, शाम होने वाली थी, वो न घर के अंदर था और न ही बाहर, उसे अस्त्र या शस्त्र से नहीं नाखुनों से मारा गया. किसी नर या पशु ने नहीं, आधे नर और आधे सिंह स्वरूप भगवान नरसिंह ने मारा. न वो जमीन पर मरा और न ही आकाश में, उस समय वह नरसिंह भगवान के पैरों पर लेटा हुआ था.