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इंडिया को 'कनेक्ट' करने वाले जब हुए 'डिसकनेक्ट', किसी की छलक पड़ी आंखें तो किसी ने यूं बांटा अपना दर्द

बीएसएनएल (BSNL) का नाम आते ही ट्रिन-ट्रिन की वो घंटी आज भी कानों में सुनाई देती है...वहीं, लैंडलाइन फोन जिसे लेने के लिए सिफारिशें की जाती थी और इसमें काम करने वाले कर्मचारियों-अधिकारियों की तूती बोलती थी. लेकिन आज उसी बीएसएनल ने अपने हजारों कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी है. सरकार के इस फैसले पर कोई खुश है तो किसी को मलाल भी. देखिए ये खास रिपोर्ट...

Rajasthan BSNL employee, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति
voluntary retirement from bsnl in rajasthan
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Published : Feb 4, 2020, 11:59 PM IST

जयपुर. एक समय था जब फोन की घंटी बजने का इंतजार किया करते थे. लगता था कि किसी अपने से बात हो जाएगी तो दिल को तस्सली मिलेगी. इस अपनापन को साकार रूप देने की जिम्मेदारी BSNL ने ली और उसे बाखूबी निभाया भी...एक दौर ऐसा भी था, जब यह चर्चा होती थी....वो तो बड़े आदमी हैं, उनके घर में तो लैंडलाइन फोन भी लगा है... यही नहीं BSNL के टेलीफोन कनेक्शन लेने के लिए लंबी लाइनें भी लगा करती थीं.

किसी की छलक पड़ी आंखें, किसी ने मनाया जश्न...तो किसी ने यूं बांटा अपना दर्द

महीनों इंतजार के बाद एक कनेक्शन मिल पाता था. कुछ लोगों का रुतबा ऐसा भी था कि मंत्री या विधायक की सिफारिश के बाद उनके घर, ऑफिस या दुकान-प्रतिष्ठान में टेलीफोन लग जाता था. इस बात का हल्ला भी पूरे मोहल्ले में होता था. धीरे-धीरे समय ने रुख बदला, टेक्नोलॉजी ने अपने जलवे दिखाए, मोबाइल फोन ने अपने पैर पैसारे और अब हालात यह हैं कि लैंडलाइन फोन केवल फॉरमेलिटी बन गया है.

पढ़ेंः मैं हूं 292 साल से विरासत को संजोए रखने वाला जयपुर...यूं ही नहीं मिल गया वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा

बीएसएनएल की इतनी सारी बातें और यादों को आज इसलिए संजोया जा रहा है कि राजस्थान से एक साथ 3763 लोगों ने सामूहिक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है. यह दुख की घड़ी है. न केवल उन लोगों के लिए बल्कि उनके परिवारजनों के लिए और उस गौरवमयी सरकारी व्यवस्था के लिए, जो कभी अपने शिखर पर थी.

उदयपुर के जीएम आनंद परिहार से बात करने की कोशिश की तो उनकी आंखें छलक पड़ी, बोले कि हम तो यही चाहेंगे कि बीएसएनएल रूप वृक्ष को सींचने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी बितायी है. जाहिर है इसके स्वर्णिम भविष्य की कामना ही करेंगे, लेकिन निजीकरण और आउटसोर्सिंग के लिए जो यह कदम केन्द्र सरकार ने उठाया है, वह सोचने लायक है.

पिछले 3 महीने से वेतन भी नहीं
केंद्र सरकार के इस फैसले से जहां प्रदेश के कई अधिकारी कर्मचारी खुश नजर आए तो वहीं कई ने इसे केंद्र सरकार की एक भूल करार दिया और बीएसएनएल को निजीकरण की ओर धकेलने की कोशिश भी बताया. वहीं कुछ कर्मचारियों का कहना था कि बीएसएनएल पर केंद्र सरकार अगर यह ध्यान पहले देती तो आज बीएसएनएल की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती और कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति जैसे फैसले नहीं लेने पड़ते.

पढ़ेंः स्पेशल: जयपुर मेट्रो को घाटे से उबारने में विफल रहे तमाम प्रयास, अब शुरु किया ये कॉन्सेप्ट

बता दे कि बीएसएनएल कर्मचारियों को पिछले 3 महीने से वेतन भी नहीं दिया जा रहा था जबकि मेंटेनेंस के तौर पर भी सरकार फंड जारी नहीं कर रही थी. ऐसे में केंद्र सरकार का यह फैसला कई सवाल खड़े करता है. तो वहीं, केंद्र सरकार द्वारा अब बीएसएनएल के 50 वर्ष की आयु से अधिक कर्मचारियों के तौर पर ठेका प्रथा शुरू की जाएगी और बाहरी व्यक्ति संविदा पर काम कर बीएसएनएल की बागडोर संभालेंगे. इस फैसले को जहां बीएसएनल के पूर्व कर्मचारी एक लापरवाही करार दे रहे हैं जबकि कुछ का कहना है कि जो काम हम लोगों ने सालों तक किया अब नए लोगों को उस काम को सीखने में ही सालों का वक्त लग जाएगा.

जयपुर. एक समय था जब फोन की घंटी बजने का इंतजार किया करते थे. लगता था कि किसी अपने से बात हो जाएगी तो दिल को तस्सली मिलेगी. इस अपनापन को साकार रूप देने की जिम्मेदारी BSNL ने ली और उसे बाखूबी निभाया भी...एक दौर ऐसा भी था, जब यह चर्चा होती थी....वो तो बड़े आदमी हैं, उनके घर में तो लैंडलाइन फोन भी लगा है... यही नहीं BSNL के टेलीफोन कनेक्शन लेने के लिए लंबी लाइनें भी लगा करती थीं.

किसी की छलक पड़ी आंखें, किसी ने मनाया जश्न...तो किसी ने यूं बांटा अपना दर्द

महीनों इंतजार के बाद एक कनेक्शन मिल पाता था. कुछ लोगों का रुतबा ऐसा भी था कि मंत्री या विधायक की सिफारिश के बाद उनके घर, ऑफिस या दुकान-प्रतिष्ठान में टेलीफोन लग जाता था. इस बात का हल्ला भी पूरे मोहल्ले में होता था. धीरे-धीरे समय ने रुख बदला, टेक्नोलॉजी ने अपने जलवे दिखाए, मोबाइल फोन ने अपने पैर पैसारे और अब हालात यह हैं कि लैंडलाइन फोन केवल फॉरमेलिटी बन गया है.

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बीएसएनएल की इतनी सारी बातें और यादों को आज इसलिए संजोया जा रहा है कि राजस्थान से एक साथ 3763 लोगों ने सामूहिक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है. यह दुख की घड़ी है. न केवल उन लोगों के लिए बल्कि उनके परिवारजनों के लिए और उस गौरवमयी सरकारी व्यवस्था के लिए, जो कभी अपने शिखर पर थी.

उदयपुर के जीएम आनंद परिहार से बात करने की कोशिश की तो उनकी आंखें छलक पड़ी, बोले कि हम तो यही चाहेंगे कि बीएसएनएल रूप वृक्ष को सींचने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी बितायी है. जाहिर है इसके स्वर्णिम भविष्य की कामना ही करेंगे, लेकिन निजीकरण और आउटसोर्सिंग के लिए जो यह कदम केन्द्र सरकार ने उठाया है, वह सोचने लायक है.

पिछले 3 महीने से वेतन भी नहीं
केंद्र सरकार के इस फैसले से जहां प्रदेश के कई अधिकारी कर्मचारी खुश नजर आए तो वहीं कई ने इसे केंद्र सरकार की एक भूल करार दिया और बीएसएनएल को निजीकरण की ओर धकेलने की कोशिश भी बताया. वहीं कुछ कर्मचारियों का कहना था कि बीएसएनएल पर केंद्र सरकार अगर यह ध्यान पहले देती तो आज बीएसएनएल की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती और कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति जैसे फैसले नहीं लेने पड़ते.

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बता दे कि बीएसएनएल कर्मचारियों को पिछले 3 महीने से वेतन भी नहीं दिया जा रहा था जबकि मेंटेनेंस के तौर पर भी सरकार फंड जारी नहीं कर रही थी. ऐसे में केंद्र सरकार का यह फैसला कई सवाल खड़े करता है. तो वहीं, केंद्र सरकार द्वारा अब बीएसएनएल के 50 वर्ष की आयु से अधिक कर्मचारियों के तौर पर ठेका प्रथा शुरू की जाएगी और बाहरी व्यक्ति संविदा पर काम कर बीएसएनएल की बागडोर संभालेंगे. इस फैसले को जहां बीएसएनल के पूर्व कर्मचारी एक लापरवाही करार दे रहे हैं जबकि कुछ का कहना है कि जो काम हम लोगों ने सालों तक किया अब नए लोगों को उस काम को सीखने में ही सालों का वक्त लग जाएगा.

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vikram


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