जयपुर. राजस्थान कांग्रेस में अध्यक्ष और प्रभारी बदलने के साथ ही पुरानी परंपरा भी बदल गई है. अब प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में जनसुनवाई नहीं होगी, क्योंकि जनसुनवाई की पूरी रूपरेखा बदल दी गई है. सबसे अच्छी बात ये है कि अपनी समस्या को लेकर कार्यकर्ताओं और आमजन को जयपुर पहुंचना पड़ता था, अब इससे उन्हें निजात मिल जाएगी.
राजनीति में परंपराएं और नियम कायदे नेताओं की भूमिका बदलने के साथ ही बदलते जाते हैं. एक समय था जब कोरोना संक्रमण से पहले राजस्थान कांग्रेस मुख्यालय पर सप्ताह में 5 दिन मंत्री जन सुनवाई करते थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में इस जनसुनवाई को बंद कर दिया गया था. अब जनसुनवाई फिर से राजस्थान कांग्रेस मुख्यालय में हो, ये मुश्किल है. कारण यह है कि राजस्थान में अब प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर गोविंद सिंह डोटासरा ने और प्रदेश प्रभारी के तौर पर अजय माकन ने चार्ज ले लिया है. अपने सबसे पहले और प्रमुख निर्णय के तौर पर उन्होंने यह फैसला किया है कि प्रभारी मंत्री अपने जिलों में ही जाएंगे. वे महीने में एक दिन अपने जिले में ही जनसुनवाई करेंगे.
मंत्रियों को आवंटित हो गए जिले...
23 मंत्रियों को अब उनके जिले आवंटित भी कर दिए गए हैं. ऐसे में एक मंत्री 1 दिन अपने प्रभार वाले जिले में जाएंगे तो कहा जा सकता है कि 23 दिन तक राजस्थान के अलग-अलग जिलों में यह जनसुनवाई की जाएगी. ऐसे में यह भी साफ हो गया है कि अब राजस्थान कांग्रेस मुख्यालय पर होने वाली जनसुनवाई कार्यक्रम जिलों में ही किया जाएगा.
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पहले फरियादी को जयपुर आने में थी परेशानी...
वहीं राजस्थान कांग्रेस मुख्यालय पर अब प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी बैठकर मंत्रियों से फीडबैक लेंगे कि उन्हें जिलों में क्या कुछ शिकायतें मिल रही है और उन्हें दूर करने के लिए क्या नए प्रयास करने चाहिए. पहले कांग्रेस मुख्यालय में जनसुनवाई के दौरान शिकायतें तो खूब आई लेकिन सुदूर जिलों में बैठे कार्यकर्ताओं और आमजन को जयपुर आना पड़ता था. अब नई परंपरा के साथ इससे भी आमजन और कार्यकर्ताओं को निजात मिली है.
कई बार उठी थी जिलों में सुनवाई करने की मांग...
बता दें कि प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर 7 अक्टूबर 2019 से जनसुनवाई का कार्यक्रम शुरू हुआ था. जनसुनवाई फरवरी 2020 तक चली. जिसमें करीब 10 हजार से ज्यादा लोगों की फरियाद कांग्रेस मुख्यालय पहुंची लेकिन मुख्यालय तक फरियाद लेकर पहुंचने में कार्यकर्ता और आमजन के लिए पहुंचना मुश्किल था. अगर वे पहुंचते भी थे तो उस जनसुनवाई का क्या हुआ, इसके बारे में जानकारी लेना टेढ़ी खीर साबित होता था. ऐसे में उस समय भी कांग्रेस मुख्यालय पर जनसुनवाई पर सवाल खड़े होते थे.
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कई नेताओं का यह कहना था कि समस्याएं अगर जिलों में ही दूर हो जाए तो लोगों को दूरी तय करके जयपुर आना ही क्यों पड़े. वैसे भी अगर कोई नेता या कार्यकर्ता अपनी समस्या को लेकर जयपुर पहुंचता था तो फिर वह सीधे मुख्यमंत्री आवास की तरफ ही रूख करता था. ऐसे में कांग्रेस कार्यालय में होने वाली जनसुनवाई का कोई मतलब नहीं रह गया था.
प्रभारी मंत्री अपने प्रभार वाले जिले में करेंगे जनसुनवाई...
इस नई कवायद से कांग्रेस कार्यकर्ता और नेताओं के साथ ही आम जनता की भी समस्याओं पर नजर रहेगी. वहीं हर विभाग के जिले के अधिकारी भी मंत्री के साथ मौजूद रहेंगे. हर मंत्री जिले में हर विधानसभा के में जन सुनवाई करेंगे. जनसुनवाई के दौरान मंत्रियों के साथ स्थानीय विधायक भी मौजूद रहेंगे और कांग्रेस के उस विधानसभा या ब्लॉक से जुड़े नेता भी मौजूद होंगे. ऐसे में लोगों की जिले से संबंधित समस्या जिले में ही दूर हो जाएगी और उन्हें अपनी समस्याएं लेकर जयपुर नहीं आना पड़ेगा.