जयपुर. सूबे में बेरोजगारी (Unemployment) बरकरार है और सरकारी विभागों (Rajasthan Government Department) में नियुक्ति और भर्ती को लेकर खींचतान की स्थिति बनी हुई है. प्रदेश के विभिन्न विभागों में 6 हजार से अधिक त्यागपत्रित पद खाली हैं. जिनमें पद रिक्त रह जाने के बावजूद भी किसी न किसी वजह से पदों को भरा नहीं जा रहा है और युवा वर्ग 'अच्छे दिनों' का इंतजार कर रहा है. क्या है यह पूरा मामला देखिए इस खास रिपोर्ट में...
दरअसल, कोरोना संकट (Corona Pandemic) के इस विकट दौर में भर्ती परीक्षाओं (Recruitment) की प्रक्रिया अटकने से प्रदेश के लाखों बेरोजगारों के सपनों पर 'लॉक' लग गया है. भर्ती परीक्षाओं के अटकने से बेरोजगार युवा मायूस हैं. इसके साथ ही कई पुरानी भर्तियां ऐसी भी हैं, जिनमें काफी पद रिक्त हैं. इसके बावजूद भी बेरोजगार युवा नियुक्ति से वंचित हैं. ऐसा ही एक मामला त्यागपत्रित पदों पर नियुक्ति से जुड़ा हुआ है. जिसके चलते प्रदेश के हजारों बेरोजगार नियुक्ति की राह देख रहे हैं. इस संबंध में एक नियम बनने से हजारों युवाओं का नौकरी का सपना भी 'अनलॉक' हो सकता है.
ये है पूरा मामला
जिन पदों पर चयन होने के बाद कोई अभ्यर्थी किसी भी कारण से वह नौकरी छोड़ देता है या उसका निधन हो जाता है, तो ऐसे पदों को त्यागपत्रित कहा जाता है. ऐसे रिक्त हुए पदों पर वरीयता सूची में जगह बनाने वाले अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन अभी तक सरकार ने इस संबंध में कोई रुचि नहीं दिखाई है. ऐसे में हजारों युवाओं का सरकारी नौकरी पाने का सपना अभी पूरा नहीं हो पाया है. त्यागपत्रित पद और उन पर नियुक्ति की बेरोजगारों की मांग को एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है.
राज्य सरकार ने 2018 में वरिष्ठ अध्यापक भर्ती और स्कूल व्याख्याता भर्ती एक साथ निकाली थी. पूरी प्रक्रिया संपन्न होने के बाद सरकार की ओर से वरिष्ठ अध्यापक के पदों पर पहले नियुक्ति दे दी गई. इसके बाद स्कूल व्याख्याता के पदों पर नियुक्ति दी गई. वरिष्ठ अध्यापक की नियुक्ति लेने वाले कई अभ्यर्थी ऐसे थे जिनका स्कूल व्याख्याता के पद पर चयन हो गया. ऐसे में उन्होंने वरिष्ठ अध्यापक के पद से त्यागपत्र देकर स्कूल व्याख्याता के पद पर ज्वॉइनिंग ले ली.
इसके चलते वरिष्ठ शिक्षक के करीब 1352 पद खाली रह गए. इन पदों पर प्रतीक्षा सूची जारी करने की मांग लगातार की जा रही है और सोशल मीडिया पर अभियान भी चलाया जा रहा है. फिलहाल इन अभ्यर्थियों की सुनवाई नहीं हुई है. जानकर बताते हैं कि प्रदेश की विभिन्न भर्तियों पर त्यागपत्रित वेटिंग का नियम लागू किया जाए, तो महज 11 भर्तियों में ही 6 हजार पद भरे जा सकते हैं.
यह भी पढ़ें: SPECIAL : लॉकडाउन के कारण शुद्ध हुई शहरों की आबोहवा...अनलॉक के साथ बढ़ने लगा वायु प्रदूषण का स्तर
आखिर क्यों आती है यह समस्या
जानकर बताते हैं कि सरकार कई भर्ती परीक्षाओं की प्रक्रिया एक साथ पूरी करवाती है. ऐसे में कई अभ्यर्थी एक से ज्यादा परीक्षाओं में आवेदन कर देते हैं. ऐसे में किसी अभ्यर्थी को जिस भर्ती में पहले नियुक्ति मिलती है, वह ज्वॉइन कर लेता है. फिर यदि उसका चयन किसी अन्य भर्ती परीक्षा में भी हो जाता है तो वह त्यागपत्र देकर दूसरी नौकरी ज्वॉइन कर लेता है. ऐसे में उसका पहले वाला पद रिक्त होता है और वह लंबे समय तक खाली ही पड़ा रहता है.
इस तरह सुलझा सकते हैं यह समस्या
राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेन यादव का कहना है कि सरकार को एक निश्चित क्रम और तय कैलेंडर के अनुसार भर्ती परीक्षाओं का आयोजन करना चाहिए. मसलन पहले आरएएस, स्कूल व्याख्याता, वरिष्ठ शिक्षक और अंत में शिक्षक ग्रेड-3 की भर्ती होनी चाहिए. इससे एक भर्ती में चयनित अभ्यर्थी के त्यागपत्र देकर दूसरी भर्ती में जाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा.
यह भी पढ़ें: Special : अयोध्या में स्थापित होगी महाराणा प्रताप की विशालकाय प्रतिमा, राजस्थान की बढ़ेगी शौर्य गाथा
पड़ोसी राज्यों से सबक लेने की जरूरत
राजस्थान के पड़ोसी राज्यों जैसे हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह नियम है कि नियुक्ति से एक साल के भीतर कोई त्याग पत्र देता है, तो उन पदों को प्रतीक्षा सूची से भरा जाता है. इसी तरह का नियम राजस्थान में भी बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है. इसे लेकर बेरोजगार पहले धरातल पर संघर्ष कर रहे थे और अब कोरोना संकट के चलते सोशल मीडिया पर अभियान छेड़ रखा है. इसके साथ ही बेरोजगार अभ्यर्थी कांग्रेस के विधायकों से मिलकर उनसे मुख्यमंत्री को इस संबंध में नियम बनाने के लिए पत्र भी लिखवा रहे हैं. इन बेरोजगारों का दावा है कि अब तक वे कांग्रेस के 55 विधायकों से पत्र लिखवा चुके हैं. जिनमें प्रदेश में भी त्यागपत्रित पदों पर वरीयता सूची के माध्यम से बेरोजगारों को नियुक्ति देने की मांग की गई है.