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World Thalassemia Day 2022 : शादी से पहले कुंडली मिलान के साथ रक्त कुंडली मिलान भी जरूरी, हर साल पैदा हो रहे 10-15 हजार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे

थैलेसीमिया रोग से पीड़ित मरीजों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है. यहां हर साल 10 से 15 हजार बच्चे इस रोग के साथ पैदा होते हैं. आनुवांशिक रोग होने के चलते चिकित्सकों का कहना है कि इस रोग पर रोक के लिए अब कुंडली मिलान की तर्ज पर रक्त कुंडली मिलान भी होना (Match blood as Kundali matching before marriage) चाहिए.

World Thalassemia Day 2022
शादी से पहले कुंडली मिलान के साथ रक्त कुंडली मिलान भी जरूरी, हर साल पैदा हो रहे 10-15 हजार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे
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Published : May 8, 2022, 5:46 PM IST

जयपुर. थैलेसीमिया रोग एक अनुवांशिक रक्त विकार है. चिकित्सकों का कहना है कि आमतौर पर बच्चों में पाए जाने वाला थैलेसीमिया रोग माता-पिता के कारण ही बच्चों में पहुंचता है. ऐसे में शादी से पहले कुंडली मिलान के साथ-साथ रक्त मिलान भी अब जरूरी होना चाहिए ताकि देश को थैलेसीमिया मुक्त किया जा (Match blood as Kundali matching before marriage) सके. थैलेसीमिया बीमारी से जूझ रहे मरीजों को प्रोत्साहित करने के लिए 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है.

आंकड़ों की बात करें तो दुनिया भर में थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों की संख्या में इजाफा हो रहा है. विश्व में लगभग 280 मिलियन से अधिक लोग थैलीसीमिया रोग से पीड़ित हैं. दुनिया में थैलीसीमिया से पीड़ित बच्चों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है. जिनकी संख्या लगभग 1 से 1.5 लाख है. थैलेसीमिया बीमारी के साथ लगभग 10 से 15 हजार बच्चों का जन्म हर साल होता है. हिमेटोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश सिंह शेखावत का कहना है कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है जो माता-पिता से बच्चों में आती (Thalassemia is a hereditary disease) है. खास बात यह है कि थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी को इस रोग के बारे में लंबे समय तक पता नहीं होता. जिसके चलते यह रोग बच्चों में भी पहुंच जाता है.

डॉ. प्रकाश सिंह शेखावत हिमेटोलॉजिस्ट...

पढ़ें: मेरा प्रमाण पत्र मेरा सम्मान : चिकित्सा विभाग की नई पहल, थैलेसीमिया और हीमोफीलिया मरीजों को जारी होंगे दिव्यांग प्रमाण पत्र

डॉक्टर शेखावत का कहना है कि जिस तरह शादी से पहले लड़का और लड़की की कुंडली मिलाई जाती है, वैसे ही रक्त कुंडली भी यदि मिलाई जाए तो थैलेसीमिया जैसी बीमारी को रोका जा सकता है. थैलेसीमिया इलाज की बात की जाए, तो बच्चों के लिए उपलब्ध इलाज केवल बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन (बीएमटी) ही है. हालांकि, इस रोग से प्रभावित सभी बच्चों के माता-पिता के लिए बीएमटी बहुत ही मुश्किल और मंहगा है. इसलिए, उपचार का मुख्य स्वरूप बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन भी है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अध्ययन के अनुसार, थैलेसीमिया भारत में सबसे आम आनुवंशिक विकार है. यह अनुमान है कि भारत में हर साल 10 हजार से अधिक बच्चे हर साल थैलेसीमिया के रोग के साथ पैदा होते हैं.

पढ़ें: Free Bone marrow transplant: कोटा के 7 थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का होगा जयपुर में बोन मैरो ट्रांसप्लांट, सरकार उठाएगी खर्च

थैलेसीमिया के लक्षण : थैलेसीमिया के मरीजों में बहुत ज्यादा रक्त की कमी होने लगती है. इसलिए बाहरी खून चढ़ाना होता है. कमजोरी महसूस होना, त्वचा का पीला पड़ना, हड्डियों की विकृति, गहरे रंग का पेशाब, लगातार थकान, धीमी गति से विकास और पेट में दर्द थैलेसीमिया के ज्ञात लक्षण हैं. स्क्रीनिंग, आनुवंशिक परामर्श और जन्म से पूर्व निदान के माध्यम से हीमोग्लोबिनोपैथी से प्रभावित बच्चों के जन्म को रोका जा सकता है. थैलेसीमिया का इलाज बीमारी के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है. थैलेसीमिया के लक्षण वाले रोगियों को यह जानना जरूरी होता है कि यदि वे थैलेसीमिया के लक्षण वाले किसी व्यक्ति से शादी करते हैं, ऐसी स्थिति में उनसे होने वाले बच्चे को इस बीमारी के होने की आशंका रहती है.

जयपुर. थैलेसीमिया रोग एक अनुवांशिक रक्त विकार है. चिकित्सकों का कहना है कि आमतौर पर बच्चों में पाए जाने वाला थैलेसीमिया रोग माता-पिता के कारण ही बच्चों में पहुंचता है. ऐसे में शादी से पहले कुंडली मिलान के साथ-साथ रक्त मिलान भी अब जरूरी होना चाहिए ताकि देश को थैलेसीमिया मुक्त किया जा (Match blood as Kundali matching before marriage) सके. थैलेसीमिया बीमारी से जूझ रहे मरीजों को प्रोत्साहित करने के लिए 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है.

आंकड़ों की बात करें तो दुनिया भर में थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों की संख्या में इजाफा हो रहा है. विश्व में लगभग 280 मिलियन से अधिक लोग थैलीसीमिया रोग से पीड़ित हैं. दुनिया में थैलीसीमिया से पीड़ित बच्चों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है. जिनकी संख्या लगभग 1 से 1.5 लाख है. थैलेसीमिया बीमारी के साथ लगभग 10 से 15 हजार बच्चों का जन्म हर साल होता है. हिमेटोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश सिंह शेखावत का कहना है कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है जो माता-पिता से बच्चों में आती (Thalassemia is a hereditary disease) है. खास बात यह है कि थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी को इस रोग के बारे में लंबे समय तक पता नहीं होता. जिसके चलते यह रोग बच्चों में भी पहुंच जाता है.

डॉ. प्रकाश सिंह शेखावत हिमेटोलॉजिस्ट...

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डॉक्टर शेखावत का कहना है कि जिस तरह शादी से पहले लड़का और लड़की की कुंडली मिलाई जाती है, वैसे ही रक्त कुंडली भी यदि मिलाई जाए तो थैलेसीमिया जैसी बीमारी को रोका जा सकता है. थैलेसीमिया इलाज की बात की जाए, तो बच्चों के लिए उपलब्ध इलाज केवल बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन (बीएमटी) ही है. हालांकि, इस रोग से प्रभावित सभी बच्चों के माता-पिता के लिए बीएमटी बहुत ही मुश्किल और मंहगा है. इसलिए, उपचार का मुख्य स्वरूप बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन भी है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अध्ययन के अनुसार, थैलेसीमिया भारत में सबसे आम आनुवंशिक विकार है. यह अनुमान है कि भारत में हर साल 10 हजार से अधिक बच्चे हर साल थैलेसीमिया के रोग के साथ पैदा होते हैं.

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थैलेसीमिया के लक्षण : थैलेसीमिया के मरीजों में बहुत ज्यादा रक्त की कमी होने लगती है. इसलिए बाहरी खून चढ़ाना होता है. कमजोरी महसूस होना, त्वचा का पीला पड़ना, हड्डियों की विकृति, गहरे रंग का पेशाब, लगातार थकान, धीमी गति से विकास और पेट में दर्द थैलेसीमिया के ज्ञात लक्षण हैं. स्क्रीनिंग, आनुवंशिक परामर्श और जन्म से पूर्व निदान के माध्यम से हीमोग्लोबिनोपैथी से प्रभावित बच्चों के जन्म को रोका जा सकता है. थैलेसीमिया का इलाज बीमारी के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है. थैलेसीमिया के लक्षण वाले रोगियों को यह जानना जरूरी होता है कि यदि वे थैलेसीमिया के लक्षण वाले किसी व्यक्ति से शादी करते हैं, ऐसी स्थिति में उनसे होने वाले बच्चे को इस बीमारी के होने की आशंका रहती है.

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