जयपुर. राष्ट्रमंडल संसदीय संघ राजस्थान शाखा के तत्वाधान में आज विधानसभा में संसदीय प्रणाली और जन अपेक्षाओं को लेकर आयोजित हुई सेमिनार में पहले सत्र में बोलते हुए जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने कहा कि देश में विधान मंडल सबसे ज्यादा मजबूत होता है. ऐसे में उसे सीखने की ललक होनी चाहिए.
इस दौरान गुलाम नबी ने इशारों ही इशारों में यह कह दिया कि सदन में दूसरी पार्टी के नेताओं में संबंध होने चाहिए, लेकिन कभी-कभी इसका गलत अर्थ निकल जाता है. यही कारण था कि मेरे बारे में भी यह कहा गया कि मैं भाजपा ज्वाइन कर रहा हूं, लेकिन मैं भाजपा ज्वाइन नहीं कर रहा.
गुलाम नबी ने कहा कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका देश के संविधान के तीन पिलर हैं. लोकतंत्र आगे बढ़े इसलिए शक्ति का विभाजन किया गया ताकि कोई भी एक ताकत किसी एक के हाथ में न रहे. शक्ति का विभाजन का मतलब है एक इंस्टिट्यूशन दूसरे इंस्टिट्यूशन में दखल न दे.
उन्होंने कहा कि जब तीनो संस्थाएं भ्रष्टाचार को रोकना, भाई-भतीजावाद को रोकना और ताकत का प्रयोग कर देश और जनता के लिए काम करती है तो ऑटोक्रेसी खत्म होती है और डेमोक्रेसी मजबूत होती है. इसके साथ ही गुलाम नबी ने कहा कि विधायिका लोकतंत्र की सबसे ज्यादा मजबूत कड़ी है क्योंकि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कैबिनेट हुकूमत कर सकते हैं, लेकिन कानून नहीं बना सकते.
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कानून को देख सकती है, लेकिन कानून नहीं बना सकती. कानून केवल विधायिका ही बना सकता है. इन तीनों में नंबर वन कौन है तो यह कहा जाता है कि अगर विधायिका नहीं होगी तो न कार्यपालिका होगी और न ही न्यायपालिका होगी. अगर हम कानून नहीं बनाएंगे तो सुप्रीम कोर्ट क्या जजमेंट देगा, सरकार क्या लागू करेगी. ऐसे में सबसे बड़ा पिलर विधायिका है जो कानून बनाता है. इस लोकतंत्र में जो सिस्टम है उसमें विधायिका पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव का काम करता है.
आजाद ने कहा कि विधायक हजारों रहे हैं लेकिन लोग कितनों को याद रखते हैं. ऐसे में सबसे जरूरी बात है कि हम एक दूसरे को सदन में और सदन के बाहर विधायक समझे. अगर हम यह समझ लेंगे तो 90 फीसदी परेशानी दूर हो जाएगी. उन्होंने कहा कि हमारे जो झगड़े हैं, वह इलेक्शन के वक्त दिखने चाहिए और उसके अलावा नहीं.
उन्होंने खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि मैंने आज तक अपने इलेक्शन में चाहे विधानसभा हो चाहे लोकसभा अपनी पार्टी के प्रचार में विपक्ष के कैंडिडेट का नाम नहीं पूछा क्योंकि मुझे उसके बारे में बोलना ही नहीं होता. आजाद ने खुद के और भूतपूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के बेहतरीन संबंधों को लेकर कहा कि उनके भूतपूर्व प्रधानमंत्री से बेहतर संबंध रहे. इन संबंधों का कभी-कभी इंटरप्रिटेशन गलत हो जाता है.
गुलाम नबी ने कहा कि अभी भी हमारे यहां यह माहौल था कि लोगों ने यह समझा कि मैं बीजेपी जा रहा हूं, लेकिन मैं कहीं नहीं जा रहा था. उन्होंने कहा कि लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष में अंडरस्टैंडिंग नहीं होगी तो लोकतंत्र नहीं चल सकता है. गुलाम नबी ने कहा कि एक विधायक के लिए मेहनत और डिग्निटी ऑफ द हाउस बहुत जरूरी है, जो अपने इंस्टिट्यूशन की डिग्निटी नहीं रखता है वह अपनी डिग्निटी नहीं रख सकता.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि विधायक का सदन के रूल पढ़ना जरूरी है और उसे सीखने चाहिए क्योंकि लेजिस्लेटर का एक काम और है कि वह अपने आप में एक टीचर है. लेकिन वह बेहतर टीचर तब बनेगा जब वह खुद सीखेगा, क्योंकि आज के समय में जो सरकार की योजनाएं लागू होती है उसके बारे में एक चौथाई लोगों को भी पता नहीं होता है. ऐसे में विधायक को ही जनता के लिए एक टीचर बनना होता है.
विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी ने पंचायत चुनावों में धन के इस्तेमाल को बताया लोकतंत्र के लिए खतरा
राष्ट्रमंडल संसदीय संघ राजस्थान शाखा के तत्वाधान में सोमवार को विधानसभा में (संसदीय प्रणाली और जन अपेक्षाओं) सेमिनार आयोजित हुई. सेमिनार में राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी ने कहा कि हम सब जो संसदीय लोकतंत्र के माध्यम से जनप्रतिनिधि सदन में आते हैं, उनसे अपेक्षाएं होती है कि संसदीय लोकतंत्र में पक्ष में हो या विपक्ष में हो अपनी भूमिका को सार्थक करते हुए जनता की अपेक्षाओं को पूरा करें. जोशी ने कहा कि हमारे संविधान में साफ लिखा है कि कौन सा सब्जेक्ट लोकल पंचायत हैंडल करेगी, कौन से सब्जेक्ट केंद्र हैंडल करेगा और कौन स्टेट करेगा.
एक पंचायत के सरपंच से जनता की अपेक्षा अलग है, विधायक से अलग है और केंद्र से अलग हैं, लेकिन अब तक इस बात को लेकर एजुकेट नहीं किया गया. जिसके चलते आज स्थिति यह बन गई कि एमएलए और एमपी से यह अपेक्षा होती है कि नाली का काम भी यही करेगा और सड़क का काम भी यही करेगा.
जबकि हकीकत यह है कि केंद्र कितनी भी अच्छी योजना क्यों ना बना दे अगर राज्य उसे एग्जीक्यूट नहीं करेगा तो जनता को फायदा नहीं होगा और राज्य कितनी भी अच्छी पॉलिसी क्यों ना बना दे जब तक पंचायत में बैठा व्यक्ति उसे एग्जीक्यूट नहीं करेगा तो जनता को कोई फायदा नहीं होगा.
जोशी ने कहा कि मैं जब 1980 में चुनाव जीता तो सरपंच को सरपंच साहब कहते थे आज सरपंच केवल सरपंच रह गया है. उन्होंने कहा कि आज जितना पैसा पंचायत चुनाव में खर्च होता है अगर धन के प्रभाव में आकर पंचायत चुनाव प्रभावित होते रहे तो लोकतंत्र कमजोर होगा.
सीपी जोशी ने कहा कि अगर देश में संसदीय लोकतंत्र नहीं होता तो इंटीग्रेशन भी नहीं होता. सरकारों को यह पता लगाने की आवश्यकता है कि क्या कारण थे कि देश में जेपी आंदोलन हुआ, किस कारण अन्ना हजारे आंदोलन हुआ और किस कारण आज किसान आंदोलन खड़ा हुआ है. अगर हम जन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते हैं तभी संसदीय लोकतंत्र के सामने प्रश्न खड़े हो जाएंगे.
देश के हित में हम सब से अपेक्षा है कि लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए साथ ही जन अपेक्षाओं को पूरा करने का उत्तरदायित्व भी हम पर निर्भर करता है. इसके साथ ही जोशी ने कहा कि आज कोरोना के बाद सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को शिक्षा देने की है. कोरोना महामारी के बाद 18 महीने से स्कूल बंद है. गांव में स्मार्टफोन से पढ़ाई नहीं हो पाती है.
ऑनलाइन पढ़ाई होने की वजह से स्कूल खोलने के बाद सातवीं और आठवीं का बच्चा बैठेगा तो कुछ बच्चों को ऑनलाइन की जानकारी होगी कुछ तो नहीं होगी, अध्यापक को हमने ट्रेंड नहीं किया कि बच्चों को कैसे ऑनलाइन पढ़ाये. सीपी जोशी ने इस मामले को लेकर नीति बनाने की मांग करते हुए कहा कि जब तक हम अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करेंगे जन आकांक्षाएं पूरी नहीं होंगी. इसके साथ ही सीपी जोशी ने कहा कि जब तक राज्यों को वित्तीय संसाधन नहीं मिलेंगे तब तक विकास के काम कैसे हो पाएंगे.
भैरोंसिंह शेखावत, अटल बिहारी वाजपेयी से रहे बेहतरीन रिश्ते
राजस्थान विधानसभा में आज हुई सीपीए की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाम नबी आजाद ने विपक्षी दलों के साथ अपने संबंधों को लेकर कहा कि मैं जब राजस्थान में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के विरोध में उनकी विधानसभा में ही जाकर प्रचार करने वाला था, तो रास्ते में मुझे भैरों सिंह शेखावत मिले. उस समय भैरों सिंह शेखावत ने कहा कि आप तो कश्मीर के हो यहां आपको गोश्त नहीं मिलेगा. ऐसे में मैं अपने आदमी को कह रहा हूं वह आपको हेलीकॉप्टर में ही भोजन उपलब्ध करवा देंगे और हुआ भी ऐसा ही.
वहीं गुलाम नबी ने यह भी कहा कि उनके संबंध पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से भी बेहतरीन रहे. जब अटल बिहारी वाजपेई दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पहला फोन मुझे ही किया और कहा था कि मैं मदन लाल खुराना को आपके पास भेज रहा हूं, उन्हें संसदीय कार्य की जानकारी देना. इस तरीके का भरोसा पहले विपक्षी दलों में आपस में नेताओं में होता था.