जयपुर. लॉकडाउन के बाद स्कूल-कॉलेजों के बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षण शुरू किया गया, लेकिन मदरसों में पढ़ाई बिल्कुल बंद है. पहले ही मदरसों में शिक्षण की व्यवस्था अच्छी नहीं थी. अब तो ऑनलाइन शिक्षा नहीं मिलने से तीन लाख से ज्यादा बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं.
प्रदेश के मदरसा बोर्ड से 5 हजार से ज्यादा मदरसे रजिस्टर्ड हैं. अब ऐसे बच्चों की लॉकडाउन के कारण पढ़ाई का स्तर गिरता जा रहा है. एक ओर जहां स्कूल-कॉलेजों में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है तो दूसरी ओर मदरसे के बच्चों की पढ़ाई बंद है. इस मामले में ईटीवी भारत ने राजस्थान मदरसा शिक्षा सहयोगी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सैय्यद मसूद अख्तर से बात की. इस बातचीत में मसूद अख्तर ने बताया कि सरकार और मदरसा बोर्ड पंजीकृत मदरसों के स्टूडेंट्स और मदरसा पैराटीचर्स के हितों के प्रति गंभीर नहीं है. अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को गुणवत्ता की शिक्षा मिल सके, इसके लिए सरकार को दखल देना चाहिए.
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सैय्यद मसूद अख्तर ने कहा कि प्रदेश में तीन लाख से ज्यादा बच्चे मदरसों में शिक्षा ग्रहण करते हैं. ऐसे में मदरसा पैराटीचर्स इन्हें धार्मिक शिक्षा के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान आदि विषयों की शिक्षा भी दे रहे हैं. अगर बात की जाए कंप्यूटर शिक्षा की तो आधुनिक उपकरण तो दूर, ज्यादातर मदरसों में टेबल और कुर्सी नहीं होने पर बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं.
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वहीं, राजस्थान मदरसा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन हिदायत खां धोलिया ने कहा कि लॉकडाउन के बाद स्कूल-कॉलेजों में ऑनलाइन शिक्षण की व्यवस्था तो की गई है, लेकिन मदरसों के बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर राज्य सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. राजधानी जयपुर के विद्याधर नगर विधानसभा क्षेत्र में तकरीबन 25 से 30 मदरसे हैं. कोरोना महामारी से पहले भी इन मदरसों के हाल-बेहाल थे. इन मदरसों में बच्चे अपनी पढ़ाई जमीन पर बैठकर करते थे.
साथ ही उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार की ओर से राज्य के रजिस्टर्ड मदरसों को स्कूल सुविधा अनुदान की राशि मुख्यमंत्री की ओर से पिछले साल बजट घोषणा में की गई थी, लेकिन यह सत्र खत्म होने के बाद इस पर अमल नहीं हो पाया है. मदरसों को दो सत्रों से अनुदान राशि नहीं मिल पाई है. यही अनुदान की राशि राज्य की स्कूलों को दी जाती है, जो नियमित मिल रही हैं, लेकिन मदरसे इंतजार में ही हैं.