जयपुर. राजस्थान में बजरी की किल्लत और बजरी माफिया कोई नई बात नहीं है. गत भाजपा सरकार के समय से ही बजरी खनन का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और बजरी खनन पर रोक के चलते ही बजरी माफिया राजस्थान में सक्रिय है. बजरी की कमी और माफिया के सक्रिय होने के चलते सरकार ने यह निर्णय लिया था कि अब बजरी की जगह प्रदेश में एम सैंड इस्तेमाल करे.
यही कारण था कि साल 2019-20 के बजट में भी सरकार ने एम सैंड पॉलिसी की घोषणा की थी. लेकिन अब तक इस पॉलिसी को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. जबकि विभाग की ओर से यह पॉलिसी सरकार को भेज भी दी गई है. बावजूद अब तक यह पॉलिसी सरकार के पास पेंडिंग पड़ी है. दरअसल बजरी की कमी को देखते हुए प्रदेश में एम सैंड इस्तेमाल करने की बात चली थी.
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जिसमें पत्थर पीसकर और खानों के बाहर लाखो टन पड़े ऐसे मलबे से यह बजरी तैयार होती है. जिसका उपयोग बद्री की जगह किया जा सकता है. एम सैंड बनाने वाली यूनिटों के लिए नियम भी इसी पॉलिसी में बनने थे. यहां तक की सरकारी प्रोजेक्टों में एमसेंट 50 फ़ीसदी तक उपयोग में लिए जाने का प्रावधान भी किया जाना था, लेकिन अब तक यह पॉलिसी ठंडे बस्ते में पड़ी है.