जयपुर. मध्य प्रदेश में जिस तरह से सियासी संकट चल रहा है और जिस तरह से सोमवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट से मुलाकात की थी, उसके बाद से राजस्थान को लेकर भी यह चर्चाएं शुरू हो गई थी कि कहीं राजस्थान में भी तो मध्य प्रदेश जैसी स्थिति नहीं बन जाएगी. लेकिन मंगलवार सुबह जैसे ही सचिन पायलट ने ट्वीट करके कहा कि मध्य प्रदेश का सियासी संकट जल्द दूर हो जाएगा और कांग्रेस नेता इसे सुलझा लेगें. इसके बाद साफ हो गई है कि उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में बने रहने का प्रयास किया था.
लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे देना और कांग्रेस पार्टी का उन्हें प्राथमिक सदस्यता से बाहर का रास्ता दिखा देना, यह तो साफ करता है की अब मध्यप्रदेश में बाजी कांग्रेस के हाथों से निकल गई है और ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा का दामन थाम लेंगे और मध्य प्रदेश की सरकार सियासी संकट में आ गया है.
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लेकिन राजस्थान में हालात मध्यप्रदेश जैसे नहीं है, क्योंकि सिंधिया वर्तमान में मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे और कांग्रेस की सीट पर वह राज्यसभा में भी जाना चाहते थे. यह दोनों बातें नहीं बनने पर ही उन्होंने इतना बड़ा कदम उठाया है, लेकिन राजस्थान में सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर संगठन के मुखिया हैं और सरकार में उपमुख्यमंत्री भी, लेकिन मध्यप्रदेश का असर राजस्थान में बिल्कुल ना पड़े यह भी संभव नहीं है, क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस गहलोत और पायलट दो खेमे बने हुए हैं, जो हर कोई जानता है और पायलट खुद कई मामलों में राजस्थान सरकार के निर्णय का विरोध बीते 1 साल में करते रहे हैं.
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ऐसे में एक बात तो साफ है कि अब कांग्रेस मध्य प्रदेश जैसे हालात राजस्थान में नहीं चाहेगी और ऐसे में शक्तियों का बंटवारा राजस्थान में होता हुआ दिखाई देगा. अब यह चर्चाएं बिल्कुल समाप्त हो जाएंगी कि राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष पर पायलट का कोई विकल्प कांग्रेस ढूंढेंगी. जिससे सचिन पायलट ही राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहेंगे. इसके साथ ही राज्यसभा में 2 सीटों पर जाने वाले प्रत्याशियों को भी पायलट से मशवरा लेकर ही तय किया जाएगा. तीसरा असर यह होगा कि कांग्रेस में राजनीतिक नियुक्तियां एक तो जल्द होगी और उनमें सचिन पायलट का पूरा ध्यान रखा जाएगा.
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इन 3 मामलों में तो राजस्थान में गहलोत और पायलट खेमों में अंदरूनी समझौता हो जाए और इसकी बात शायद बाहर भी ना आए लेकिन राजस्थान में आगामी महीनों में होने वाले कैबिनेट विस्तार को लेकर दोनों में टकराव हो सकता है, क्योंकि कहा जा रहा था की कैबिनेट विस्तार में बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले पायलट कैबिनेट में हिस्सेदारी देने के विरोध में है. ऐसे में इस मामले पर कोई बीच का रास्ता राजस्थान में पार्टी को निकालना पड़ेगा और लगभग साफ है कि आगामी कुछ महीनों तक अब यह कैबिनेट विस्तार की खबरें केवल खबरें बनकर ही रह जाएगी. इसके साथ यह भी तय हो गया है कि राजस्थान में कैबिनेट विस्तार अब हाल फिलहाल नहीं होगा.