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भाजपा में प्रमुख पदों पर जाट समाज को प्राथमिकता, क्या इन क्षेत्रों में पार्टी हो पाएगी मजबूत ? - जाट बाहुल्य शेखावाटी अंचल

भाजपा ने जाट समाज को वोट के रूप में अपने पक्ष में करने के लिए महत्वपूर्ण पदों पर जाट नेताओं को बिठाया है. इनमें प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्र में मंत्री कैलाश चौधरी और अब उपराष्ट्रपति पद पर जगदीप धनखड़ को पहुंचाया है. इन बड़े पदों पर इन तीन जाट (BJP position in Jat dominated areas) नेताओं को प्रतिनिधित्व देकर सियासी मैसेज दिया है. लेकिन देखना होगा कि आने वाले समय में बीजेपी की ये रणनीति कितनी कारगर साबित होगी.

BJP strategy to attract Jat voters, Jat leaders on top posts, will this strategy work in elections
भाजपा ने प्रमुख पदों पर दी जाट समाज को प्राथमिकता, लेकिन क्या इन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में पार्टी हो पाएगी मजबूत!
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Published : Aug 11, 2022, 9:05 AM IST

Updated : Aug 11, 2022, 2:52 PM IST

जयपुर. मिशन 2023 में जुटी भाजपा राजस्थान में सियासी रूप से सबसे मजबूत माने जाने वाले जाट समाज को साधने में जुटी (BJP strategy to attract Jat voters) है. पिछले विधानसभा चुनाव में जाट बाहुल्य शेखावाटी अंचल से बीजेपी को करारी हार मिली. इसके बाद पार्टी ने लोकसभा चुनाव में RLP सुप्रीमो व जाट नेता हनुमान बेनीवाल से हाथ मिलाया तो वहीं प्रदेश अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री और अब उपराष्ट्रपति जैसे प्रमुख पदों पर जाट समाज को प्रतिनिधित्व देकर कई सियासी मैसेज दिया है. लेकिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में अब भी अपेक्षाकृत रूप से भाजपा कमजोर ही दिख रही है.

शेखावाटी अंचल में कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं : दरअसल, साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी अंचल में हुआ था. शेखावाटी अंचल में अधिकतर सीटें जाट बाहुल्य हैं, लेकिन यहां भाजपा को 21 में से महज 3 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. जबकि 18 सीटों पर कांग्रेस या उससे जुड़े समर्थित प्रत्याशी जीते थे. शेखावाटी अंचल में भाजपा के पास कोई बड़ा जाट चेहरा भी नहीं है. यही कारण है कि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद पर सतीश पूनिया और केंद्रीय मंत्री के रूप में राजस्थान से कैलाश चौधरी को जिम्मेदारी देने के बाद अब उपराष्ट्रपति पद पर झुंझुनू से ही आने वाले जगदीप धनखड़ को पहुंचा कर जाट वोट बैंक को रिझाने का प्रयास तेज कर दिया गया है.

पढ़ें: मुर्मू और धनखड़ को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने राजस्थान में आदिवासी-जाट समाज को साधा, लेकिन चर्चा ये भी...

शेखावाटी के इन 3 सीटों पर ही भाजपा, अन्य पर कांग्रेस का दबदबा : शेखावाटी अंचल में सीकर, झुंझुनू, चूरू में कुल 21 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 18 सीटों पर कांग्रेस पार्टी या उनसे जुड़े समर्थित निर्दलीयों का कब्जा है. जबकि बीजेपी के खाते में यहां 3 ही सीट हैं. इनमें सूरजगढ़, चूरू और रतनगढ़ विधानसभा सीटें शामिल है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी शेखावाटी अंचल से आते हैं. झुंझुनू से आने वाले जगदीप धनखड़ को भाजपा ने उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचा कर इस क्षेत्र में बीजेपी की पकड़ मजबूत बनाने का प्रयास किया है.

पढ़ें: उपराष्ट्रपति चुनाव जीते जगदीप धनखड़...पैतृक गांव में खुशियों का माहौल

भाजपा ने बड़े जाट लीडर की कमी इस तरह की पूरी : पिछले विधानसभा चुनाव में जिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी की हार हुई उसमें शेखावटी का इलाका सबसे प्रमुख है. यही कारण है कि पार्टी ने जाट समाज से ही प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सतीश पूनिया को जिम्मेदारी दी. सतीश पूनिया का निर्वाचन क्षेत्र (Rajasthan Mission 2023) जयपुर का आमेर है, लेकिन वो मूल रूप से शेखावाटी अंचल से ही आते हैं. इसके बाद बाड़मेर-जैसलमेर सांसद कैलाश चौधरी को राजस्थान के खाते से मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी गई.

चौधरी भी जाट समाज से ही आते हैं और इसके बाद अब उपराष्ट्रपति जैसे सबसे महत्वपूर्ण पद पर झुंझुनू से आने वाले जाट समाज के जगदीप धनखड़ को मौका देकर पार्टी ने जाट समाज को पूरी तरह अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है. हालांकि लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने जाट समाज से आने वाले आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल से भी गठबंधन का हाथ मिलाया था. जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिला, लेकिन अब यह गठबंधन टूट चुका है.

पढ़ें: Rajasthan Rajyasabha Election : आदिवासी-गैर आदिवासी का मुद्दा ही नहीं...गुर्जर, ब्राह्मण, राजपूत और जाट समाज भी चाहता है अपने लिए राज्यसभा

महत्वपूर्ण पदों पर जाट, लेकिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ कमजोर : वर्तमान में भाजपा ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष से लेकर केंद्रीय मंत्री और अब उपराष्ट्रपति तक राजस्थान के जाट समाज से ही बनाया, लेकिन जिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ मजबूत होनी चाहिए थी, वहां नहीं हो पाई. उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि जाट समाज अब तक खुलकर किसी एक राजनीतिक पार्टी के साथ नहीं जुड़ा है. वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भी सियासी मैदान में उतर कर इस समाज को काफी हद तक अपने पक्ष में करने का काम किया है. दूसरी ओर भाजपा ने जाट समाज को प्रमुख पदों पर प्रतिनिधित्व दिया तो सही, लेकिन उसका उतना सियासी फायदा लेने के लिए प्रचार-प्रसार नहीं किया गया जितना राजनीति में आवश्यक होता है.

पढ़ें: Bjp Color politics भाजपा का दुपट्टा हुआ भगवामय, हरा रंग धीरे-धीरे गायब..क्या है वजह!

शेखावटी अंचल में बढ़ेंगे सियासी दौरे, जाट नेताओं पर रहेगी जिम्मेदारी : पार्टी इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अब लगातार इन इलाकों में अपने राजनीतिक कार्यक्रम और गतिविधियां बढ़ाएगीं. वहीं, पार्टी से जुड़े जाट समाज के प्रमुख नेताओं को भी यहां अलग-अलग जिम्मेदारी देकर समाज से जुड़े मतदाताओं को बीजेपी के पक्ष में जुटाने का काम किया जाएगा. इसके लिए पार्टी स्तर पर रणनीति भी तैयार की जा रही है.

जयपुर. मिशन 2023 में जुटी भाजपा राजस्थान में सियासी रूप से सबसे मजबूत माने जाने वाले जाट समाज को साधने में जुटी (BJP strategy to attract Jat voters) है. पिछले विधानसभा चुनाव में जाट बाहुल्य शेखावाटी अंचल से बीजेपी को करारी हार मिली. इसके बाद पार्टी ने लोकसभा चुनाव में RLP सुप्रीमो व जाट नेता हनुमान बेनीवाल से हाथ मिलाया तो वहीं प्रदेश अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री और अब उपराष्ट्रपति जैसे प्रमुख पदों पर जाट समाज को प्रतिनिधित्व देकर कई सियासी मैसेज दिया है. लेकिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में अब भी अपेक्षाकृत रूप से भाजपा कमजोर ही दिख रही है.

शेखावाटी अंचल में कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं : दरअसल, साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी अंचल में हुआ था. शेखावाटी अंचल में अधिकतर सीटें जाट बाहुल्य हैं, लेकिन यहां भाजपा को 21 में से महज 3 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. जबकि 18 सीटों पर कांग्रेस या उससे जुड़े समर्थित प्रत्याशी जीते थे. शेखावाटी अंचल में भाजपा के पास कोई बड़ा जाट चेहरा भी नहीं है. यही कारण है कि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद पर सतीश पूनिया और केंद्रीय मंत्री के रूप में राजस्थान से कैलाश चौधरी को जिम्मेदारी देने के बाद अब उपराष्ट्रपति पद पर झुंझुनू से ही आने वाले जगदीप धनखड़ को पहुंचा कर जाट वोट बैंक को रिझाने का प्रयास तेज कर दिया गया है.

पढ़ें: मुर्मू और धनखड़ को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने राजस्थान में आदिवासी-जाट समाज को साधा, लेकिन चर्चा ये भी...

शेखावाटी के इन 3 सीटों पर ही भाजपा, अन्य पर कांग्रेस का दबदबा : शेखावाटी अंचल में सीकर, झुंझुनू, चूरू में कुल 21 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 18 सीटों पर कांग्रेस पार्टी या उनसे जुड़े समर्थित निर्दलीयों का कब्जा है. जबकि बीजेपी के खाते में यहां 3 ही सीट हैं. इनमें सूरजगढ़, चूरू और रतनगढ़ विधानसभा सीटें शामिल है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी शेखावाटी अंचल से आते हैं. झुंझुनू से आने वाले जगदीप धनखड़ को भाजपा ने उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचा कर इस क्षेत्र में बीजेपी की पकड़ मजबूत बनाने का प्रयास किया है.

पढ़ें: उपराष्ट्रपति चुनाव जीते जगदीप धनखड़...पैतृक गांव में खुशियों का माहौल

भाजपा ने बड़े जाट लीडर की कमी इस तरह की पूरी : पिछले विधानसभा चुनाव में जिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी की हार हुई उसमें शेखावटी का इलाका सबसे प्रमुख है. यही कारण है कि पार्टी ने जाट समाज से ही प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सतीश पूनिया को जिम्मेदारी दी. सतीश पूनिया का निर्वाचन क्षेत्र (Rajasthan Mission 2023) जयपुर का आमेर है, लेकिन वो मूल रूप से शेखावाटी अंचल से ही आते हैं. इसके बाद बाड़मेर-जैसलमेर सांसद कैलाश चौधरी को राजस्थान के खाते से मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी गई.

चौधरी भी जाट समाज से ही आते हैं और इसके बाद अब उपराष्ट्रपति जैसे सबसे महत्वपूर्ण पद पर झुंझुनू से आने वाले जाट समाज के जगदीप धनखड़ को मौका देकर पार्टी ने जाट समाज को पूरी तरह अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है. हालांकि लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने जाट समाज से आने वाले आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल से भी गठबंधन का हाथ मिलाया था. जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिला, लेकिन अब यह गठबंधन टूट चुका है.

पढ़ें: Rajasthan Rajyasabha Election : आदिवासी-गैर आदिवासी का मुद्दा ही नहीं...गुर्जर, ब्राह्मण, राजपूत और जाट समाज भी चाहता है अपने लिए राज्यसभा

महत्वपूर्ण पदों पर जाट, लेकिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ कमजोर : वर्तमान में भाजपा ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष से लेकर केंद्रीय मंत्री और अब उपराष्ट्रपति तक राजस्थान के जाट समाज से ही बनाया, लेकिन जिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ मजबूत होनी चाहिए थी, वहां नहीं हो पाई. उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि जाट समाज अब तक खुलकर किसी एक राजनीतिक पार्टी के साथ नहीं जुड़ा है. वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भी सियासी मैदान में उतर कर इस समाज को काफी हद तक अपने पक्ष में करने का काम किया है. दूसरी ओर भाजपा ने जाट समाज को प्रमुख पदों पर प्रतिनिधित्व दिया तो सही, लेकिन उसका उतना सियासी फायदा लेने के लिए प्रचार-प्रसार नहीं किया गया जितना राजनीति में आवश्यक होता है.

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शेखावटी अंचल में बढ़ेंगे सियासी दौरे, जाट नेताओं पर रहेगी जिम्मेदारी : पार्टी इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अब लगातार इन इलाकों में अपने राजनीतिक कार्यक्रम और गतिविधियां बढ़ाएगीं. वहीं, पार्टी से जुड़े जाट समाज के प्रमुख नेताओं को भी यहां अलग-अलग जिम्मेदारी देकर समाज से जुड़े मतदाताओं को बीजेपी के पक्ष में जुटाने का काम किया जाएगा. इसके लिए पार्टी स्तर पर रणनीति भी तैयार की जा रही है.

Last Updated : Aug 11, 2022, 2:52 PM IST
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