जयपुर. पूरे देश को कोरोना महामारी ने अपनी चपेट में ले रखा है. लेकिन इस बीच पुलिस ने कोरोना वॉरियर्स के रूप में अपनी जिम्मेदारी बखुबी निभाई. लोगों की रक्षा करने के साथ सेवाएं भी प्रदान की. अपराधियों पर लगाम लगाना हो या कानून व्यवस्था को बनाए रखना हो, कई जगह हमें खाकी का एक मददगार चेहरा नजर आता है.
कुछ ऐसा ही हुआ है जयपुर में, जहां ट्रैफिक पुलिस में तैनात एएसआई नरेश सिंह ने 10 साल पहले अपने परिवार से बिछड़े एक व्यक्ति को अपनी सूझबूझ और साथियों के सहयोग से फिर से उसके बिछड़े हुए परिवार से मिला दिया.
सुनने में यह एक फिल्म की कहानी जैसा लग रहा होगा, लेकिन यह हकीकत है. दरअसल 50 साल का छोटे तिवारी नामक एक व्यक्ति जो मानसिक रूप से अस्वस्थ है. वह 22 गोदाम सर्किल पर पिछले 10 सालों से बदहवास हालत में रह रहा था. आते-जाते कोई उसे कुछ खाने को दे देता तो उसी से अपना पेट भर लेता और कुछ खाने को नहीं मिलता तो पानी पीकर भूखा सो जाता.
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4 महीने पहले 22 गोदाम सर्किल पर एएसआई नरेश सिंह की ड्यूटी लगी. एक दिन उनकी निगाह दिमागी रूप से कमजोर छोटे तिवारी पर पड़ गई. एएसआई नरेश सिंह ने छोटे तिवारी को रोज खाना खिलाना शुरू कर दिया. फिर उससे बातचीत करनी शुरू की. छोटे तिवारी ने नरेश सिंह को सिर्फ यह बताया कि वह गोरखपुर का रहने वाला है. नरेश सिंह ने गोरखपुर पुलिस से संपर्क साधा लेकिन छोटे तिवारी के बारे में कोई जानकारी हाथ नहीं लग पाई. फिर भी नरेश सिंह ने हार नहीं मानी और छोटे तिवारी को इतना स्नेह दिया कि उसकी याददाश्त वापस आने लगी.
एएसआई ने बताया कि एक दिन जब उनकी कार में स्पीकर पर गाना बज रहा था तो उस दौरान छोटे तिवारी ने नारा लगाया "जीतेगा भाई जीतेगा शंकर तिवारी जीतेगा". जिसे सुनकर नरेश सिंह ने गूगल पर शंकर तिवारी को सर्च किया. गोरखपुर पुलिस से संपर्क साध कर शंकर तिवारी के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की. पड़ताल में यह बात सामने आई कि 10 साल पूर्व गोरखपुर के पास बास गांव से शंकर तिवारी ने प्रधान का चुनाव लड़ा था.
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इस पर गोरखपुर पुलिस कंट्रोल रूम से नरेश सिंह को प्रधान दिलीप और अनिल त्रिपाठी का नंबर मिला. जिन से संपर्क साध कर नरेश ने छोटे तिवारी की फोटो और वीडियो उन्हें भेजें. नरेश सिंह की ओर से भेजे गए वीडियो और फोटो को प्रधान अनिल त्रिपाठी ने अपने क्षेत्र के लोकल व्हाट्सएप ग्रुप पर सर्कुलेट किया जिसे छोटे तिवारी के परिवार वालों ने पहचान लिया. जिस पर प्रधान अनिल त्रिपाठी ने एएसआई नरेश सिंह को फोन कर यह जानकारी दी कि आज से 11 साल पहले छोटे तिवारी नाम का एक व्यक्ति लापता हो गया था, जिसे ढूंढने के लिए उसके परिवार की तरफ से अनेक प्रयत्न किए गए, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं लग पाया.
एएसआई नरेश सिंह ने बताया कि जब छोटे तिवारी 22 गोदाम ट्रैफिक प्वाइंट पर तैनात पुलिसकर्मियों से पूरी तरह घुलमिल गया तो फिर उनसे वह रोज खाने की फरमाइश भी करने लगा. नरेश सिंह अपने घर से छोटे तिवारी की फरमाइश पर उसका मनपसंद खाना भी बनवा कर लाते थे. ट्रैफिक पुलिसकर्मी कृष्ण कुमार ने बताया कि जब नरेश सिंह ड्यूटी खत्म कर अपने घर लौट रहे होते तो वह ट्रैफिक प्वाइंट पर तैनात अन्य पुलिसकर्मियों को छोटे तिवारी का ध्यान रखने के लिए कहकर जाते.
यही नहीं नरेश अपनी पत्नी से छोटे तिवारी के लिए खाना भी बनवा कर लाते थे. वह छोटे तिवारी का पूरा ध्यान भी रखते थे. 10 सालों से फुटपाथ पर जीवन बसर करने वाले छोटे तिवारी के बढ़े बालों को भी नरेश सिंह ने कटवाया और फिर उसे नहला-धुलाकर साफ कपड़े भी पहनने को दिए.
बिछड़े भाई से मिलकर छलक उठे आंसू
छोटे तिवारी के परिवार का पता लगने के बाद जब उसे लेने के लिए छोटा भाई प्रमोद तिवारी जयपुर आया तो 10 साल पहले बिछड़े भाई को देख कर उसे गले लगा लिया. उसके आंसू छलक पड़े और वह फूट-फूट कर रोने लगा. एएसआई नरेश सिंह ने बताया कि छोटे तिवारी के भाई प्रमोद ने बताया कि अपने भाई की तलाश में वह ना जाने कहां-कहां नहीं भटका, लेकिन कोई सुराग नहीं लग सका था.
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10 साल पहले प्रमोद अपने भाई के साथ रोजगार के सिलसिले में उत्तर प्रदेश से राजस्थान आ रहे थे. इसी दौरान कोटा जंक्शन पर छोटे तिवारी ट्रेन से नीचे उतर गया और लापता हो गया. तब से लेकर प्रमोद और उनके परिजन उनकी तलाश में राजस्थान के अनेक शहरों में भटके लेकिन हर जगह निराशा ही हाथ लगी.
पुलिस अधिकारियों ने थपथपाई एएसआई की पीठ:
पिछले 10 साल से फुटपाथ पर गुमनामी की जिंदगी बिताने वाले छोटे तिवारी को उसके परिवार से मिलाने पर एएसआई नरेश सिंह की कमिश्नरेट के आला अधिकारियों ने भी पीठ थपथपाई. डीसीपी ट्रैफिक आदर्श सिधु नरेश सिंह और उनके साथियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया. इसके साथ ही छोटे तिवारी और उनके भाई प्रमोद तिवारी को माला पहनाकर सम्मान के साथ बस में बैठा कर गोरखपुर में उनके गांव के लिए रवाना किया गया.
नरेश सिंह कहते हैं कि 10 साल से अपने परिवार से बिछड़े हुए एक 50 साल के व्यक्ति को फिर से उनके परिवार से मिला कर जो खुशी उन्हें और उनके साथियों को मिली है उसको शब्दों में बयान कर पाना मुश्किल है.