जयपुर. मानसून में जल महल से निकलने वाला वेस्ट वाटर लालवास के नालों से होता (Jal Mahal Of Jaipur) हुआ कानोता बांध में पहुंचता है. इस पानी को यदि सुकली नदी तक पहुंचाया जाए, तो करीब 50 गांव की प्यास बुझ सकती है. सुकली नदी तक जाने वाली 8 किलोमीटर लंबी नहर को सही करा दिया जाए, तो मानसून में इन गांवों का भूजल स्तर सुधर सकता है. इसे लेकर स्थानीय लोगों की ओर से जिला कलेक्टर से लेकर पीएचईडी मंत्री तक गुहार लगाई जा चुकी है. लेकिन सिवाय आश्वासन के अब तक कोई पहल नहीं की गई.
नाहरगढ़ के पश्चिमी हिस्से से बहने वाली द्रव्यवती नदी को अमानीशाह नाले से वापस नदी बनवाने के लिए सरकार ने 1470.85 करोड़ खर्च कर दिए. लेकिन इसी नाहरगढ़ की पहाड़ी के पूर्वी हिस्से में बहने वाली सुकली नदी का अस्तित्व खत्म सा हो गया है. ये वही नदी है जिससे करीब 5 ग्राम पंचायत के किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिलता था, लेकिन आज ये नदी सूख चुकी है. जिसे नया जीवनदान देने की लोगों की ओर से कोशिश की जा रही है.
कच्ची नहर को पक्की करने से सिचांई के लिए मिलेगा पानी: दरअसल, मानसून में जल महल से करोड़ों लीटर पानी ओवरफ्लो होकर व्यर्थ बह जाता है. जल महल के पीछे दो नहर हैं, इनमें से एक कानोता बांध और दूसरी सुकली नदी तक जाती है. सुकली नदी की तरफ 8 किलोमीटर लंबी नहर 5 किलोमीटर तक तो पक्की है, लेकिन आगे 3 किलोमीटर कच्ची है. इससे नहर का पानी खेतों में भर जाता है, और खड़ी फसल भी बर्बाद हो जाती है. यदि जल संसाधन विभाग सुकली नदी की तरफ जाने वाली 3 किलोमीटर की कच्ची नहर को पक्की करवा दें, तो न सिर्फ फसल बर्बाद होने से बचेगी बल्कि 50 से ज्यादा गांव के किसानों को सिंचाई के लिए पानी भी मिलेगा. साथ ही क्षेत्र का भूजल स्तर भी सुधरेगा.
शहर के उत्तर पूर्व में बहने वाली इस आधी कच्ची-आधी पक्की नहर के रिकंस्ट्रक्शन के लिए आमेर रोड विकास समिति बीते 5 साल से संघर्ष कर रही है. इस संबंध में जिला कलेक्टर से लेकर पीएचईडी मंत्री तक ज्ञापन भी दिया जा चुका है. लेकिन इसे लेकर अब तक कोई पहल नहीं की गई. स्थानीय लोगों की माने तो मानसून के दौरान यदि इस नहर को संवार दिया जाए, तो जल संकट से त्रस्त ग्रामीणों की समस्या का समाधान हो जाएगा.
सुधार की जरुरत: वर्तमान में जल महल का ओवरफ्लो पानी कानोता बांध की ओर नहर से गुजरता है. लेकिन आगे बांडी नदी में अतिक्रमण पसरा होने की वजह से इस पानी से सड़वा, लालवास, नाई की थड़ी और आसपास के क्षेत्र में स्थानीय लोगों को जलभराव की समस्या का सामना करना पड़ता है. लेकिन यदि यही पानी सुकली नदी में डालने का प्रयास किया जाए, तो ये स्थानीय लोगों के लिए वरदान साबित होगा.