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International Transgender Day of Visibility: 'जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी तब तक समानता की बात बेईमानी'

इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी हर साल 31 मार्च को वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है. यह दिन ट्रांसजेंडर लोगों की सराहना के लिए और दुनिया भर में ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है. ईटीवी भारत ने ईटीवी भारत ने जयपुर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पुष्पा माई से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी तब तक समानता की बात नहीं की जा सकती है.

Mahamandaleshwar of Jaipur Kinnar akhara
जयपुर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पुष्पा माई
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Published : Mar 31, 2021, 8:40 PM IST

जयपुर. इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी हर साल वैश्विक स्तर पर 31 मार्च को मनाया जाता है. यह दिन ट्रांसजेंडर लोगों की सराहना के लिए और दुनिया भर में ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ समाज में उनके योगदान की प्रशंसा के लिए समर्पित है.

जयपुर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पुष्पा माई से खास बातचीत

पढ़ें- SPECIAL : कोरोना के साये में उपचुनाव प्रचार...सोशल मीडिया को भाजपा ने बनाया हथियार

ईटीवी भारत ने जयपुर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पुष्पा माई से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कागजों में तो ट्रांसजेंडर को समानता का अधिकार दे दिया, लेकिन समाज की सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक समानता की बात नहीं की जा सकती है.

लोगों में लानी होगी जागरूकता

पुष्पा माई ने कहा कि ट्रांसजेंडर लोगों को समाज में आम जीवन जी सकने का पूरा अधिकार दिलाने के लिए लोगों में इसकी जागरूकता लानी होगी. 6 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए समानता का अधिकार दिया था. उन्होंने कहा कि कई संगठन इसके बाद लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन असली बदलाव तो तभी आएगा जब हम सब अपना रवैया ठीक कर किसी भी महिला, पुरुष या ट्रांसजेंडर से लैंगिक भेदभाव नही बरतेंगे.

किराए पर मकान तक नहीं मिलता

महामंडलेश्वर पुष्पा माई ने कहा कि आज भी ट्रांसजेंडर को किसी कॉलोनी में किराए पर मकान तक नहीं मिलता. उन्होंने कहा कि हमारे साथ कोई बैठने से भी बचता है. इतना ही नहीं अगर कोई ट्रांसजेंडर बस स्टॉप पर बैठी है तो बाकी लोग उसको हीन भावना से देखते हैं. ऐसी स्थिति में समानता की बात करना बेईमानी सा लगता है.

आज भी ट्रांसजेंडर के पहचान पत्र नहीं बन रहे हैं

पुष्पा माई ने कहा कि ट्रांसजेंडर को लेकर सरकार के स्तर पर कुछ अच्छे फैसले हुए हैं. फिर चाहे सरकारी आवास योजना में 2 फीसदी रिजर्वेशन की बात हो या फिर खाद्य सुरक्षा में नाम जोड़ने की, लेकिन ट्रांसजेंडर का जब तक पहचान पत्र नहीं बनेगा इनका लाभ कैसे लेंगे. उन्होंने कहा कि लगातार कोशिशों के बाद आज भी ट्रांसजेंडर के पहचान पत्र नहीं बन रहे हैं.

पढ़ें- SPECIAL : कोरोना वैक्सीनेशन के बाद उचित तरीके से हो रहा है बायो वेस्ट का निस्तारण - चिकित्सा विभाग

बदलाव की शुरुआत समाज से होगी

उन्होंने कहा कि बदलाव की शुरुआत समाज से होगी. सरकार तो नियमों के आगे अपना काम करेगी, लेकिन समाज में सोच बदलने की जरूरत है. हम भी समाज के बीच का ही एक अंग हैं उसे स्वीकारने में किस बात का गुरेज.

2009 में हुई थी शुरुआत

इस दिन की स्थापना 2009 में मिशिगन के अमेरिका स्थित ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता रशेल क्रैंडल ने की थी. ​ट्रांसजेंडर लोगों की LGBT मान्यता की कमी के लिए एक प्रतिक्रिया के रूप में, इस निराशा का हवाला देते हुए कि केवल प्रसिद्ध ट्रांसजेंडर-केंद्रित दिन ट्रांसजेंडर डे ऑफ़ रेमेम्ब्रंस था, जिसने ट्रांसजेंडर लोगों की हत्याओं पर शोक व्यक्त किया.

लेकिन, ट्रांसजेंडर समुदाय के जीवित सदस्यों को स्वीकार और प्रशंसा नहीं की, इस दिन की स्थापना की गई. पहला इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी 31 मार्च, 2009 को मनाया गया था. इसके बाद से यूएस आधारित युवा वकालत संगठन ट्रांस स्टूडेंट एजुकेशनल रिसोर्सेज की ओर से इसका नेतृत्व किया गया.

जयपुर. इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी हर साल वैश्विक स्तर पर 31 मार्च को मनाया जाता है. यह दिन ट्रांसजेंडर लोगों की सराहना के लिए और दुनिया भर में ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ समाज में उनके योगदान की प्रशंसा के लिए समर्पित है.

जयपुर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पुष्पा माई से खास बातचीत

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ईटीवी भारत ने जयपुर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पुष्पा माई से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कागजों में तो ट्रांसजेंडर को समानता का अधिकार दे दिया, लेकिन समाज की सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक समानता की बात नहीं की जा सकती है.

लोगों में लानी होगी जागरूकता

पुष्पा माई ने कहा कि ट्रांसजेंडर लोगों को समाज में आम जीवन जी सकने का पूरा अधिकार दिलाने के लिए लोगों में इसकी जागरूकता लानी होगी. 6 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए समानता का अधिकार दिया था. उन्होंने कहा कि कई संगठन इसके बाद लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन असली बदलाव तो तभी आएगा जब हम सब अपना रवैया ठीक कर किसी भी महिला, पुरुष या ट्रांसजेंडर से लैंगिक भेदभाव नही बरतेंगे.

किराए पर मकान तक नहीं मिलता

महामंडलेश्वर पुष्पा माई ने कहा कि आज भी ट्रांसजेंडर को किसी कॉलोनी में किराए पर मकान तक नहीं मिलता. उन्होंने कहा कि हमारे साथ कोई बैठने से भी बचता है. इतना ही नहीं अगर कोई ट्रांसजेंडर बस स्टॉप पर बैठी है तो बाकी लोग उसको हीन भावना से देखते हैं. ऐसी स्थिति में समानता की बात करना बेईमानी सा लगता है.

आज भी ट्रांसजेंडर के पहचान पत्र नहीं बन रहे हैं

पुष्पा माई ने कहा कि ट्रांसजेंडर को लेकर सरकार के स्तर पर कुछ अच्छे फैसले हुए हैं. फिर चाहे सरकारी आवास योजना में 2 फीसदी रिजर्वेशन की बात हो या फिर खाद्य सुरक्षा में नाम जोड़ने की, लेकिन ट्रांसजेंडर का जब तक पहचान पत्र नहीं बनेगा इनका लाभ कैसे लेंगे. उन्होंने कहा कि लगातार कोशिशों के बाद आज भी ट्रांसजेंडर के पहचान पत्र नहीं बन रहे हैं.

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बदलाव की शुरुआत समाज से होगी

उन्होंने कहा कि बदलाव की शुरुआत समाज से होगी. सरकार तो नियमों के आगे अपना काम करेगी, लेकिन समाज में सोच बदलने की जरूरत है. हम भी समाज के बीच का ही एक अंग हैं उसे स्वीकारने में किस बात का गुरेज.

2009 में हुई थी शुरुआत

इस दिन की स्थापना 2009 में मिशिगन के अमेरिका स्थित ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता रशेल क्रैंडल ने की थी. ​ट्रांसजेंडर लोगों की LGBT मान्यता की कमी के लिए एक प्रतिक्रिया के रूप में, इस निराशा का हवाला देते हुए कि केवल प्रसिद्ध ट्रांसजेंडर-केंद्रित दिन ट्रांसजेंडर डे ऑफ़ रेमेम्ब्रंस था, जिसने ट्रांसजेंडर लोगों की हत्याओं पर शोक व्यक्त किया.

लेकिन, ट्रांसजेंडर समुदाय के जीवित सदस्यों को स्वीकार और प्रशंसा नहीं की, इस दिन की स्थापना की गई. पहला इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी 31 मार्च, 2009 को मनाया गया था. इसके बाद से यूएस आधारित युवा वकालत संगठन ट्रांस स्टूडेंट एजुकेशनल रिसोर्सेज की ओर से इसका नेतृत्व किया गया.

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