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अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस: राजस्थान के सरकारी मूकबधिर कॉलेज में नहीं सांकेतिक भाषा शिक्षक, न सर्टिफाइड संस्थान

आज हम अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मना रहे. इस वर्ष हम 'Sign Languages Unite Us' की थीम इसे सेलिब्रेट करने जा रहे हैं. लेकिन राजस्थान में सांकेतिक भाषा सिखाने के लिए प्रदेश में पर्याप्त व्यवस्था न होना चिंता का विषय है. प्रदेश में एक भी सर्टिफाइड सांकेतिक भाषा संस्थान नहीं है. खास बात ये है कि प्रदेश के एकमात्र सरकारी मूक बधिर कॉलेज में प्रोफेसर भी सांकेतिक भाषा से अंजान हैं. देखिए खास रिपोर्ट...

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस
अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस
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Published : Sep 23, 2022, 6:23 AM IST

Updated : Sep 23, 2022, 8:00 AM IST

जयपुर. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (international sign language day) घोषित किया है. यह दिन सभी मूक-बधिर लोगों और अन्य सांकेतिक भाषा का प्रयोग करने वालों की भाषाई पहचान और सांस्कृतिक विविधता का समर्थन करने और उनकी मदद और रक्षा करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है. इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस की थीम Sign Languages Unite Us है. यह विषय इस बात को रेखांकित करता है कि किस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति जीवन के सभी क्षेत्रों में सांकेतिक भाषाओं का प्रयोग कर मूक-बधिर व्यक्तियों के मानवाधिकारों को मजबूत कर सकता है.

राजस्थान के हालात देखने से लगता है कि प्रदेश में चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो, इन विशेष बच्चों से किसी को ज्यादा सरोकार नहीं रहा है. यही वजह है कि आज तक इतने प्रचार प्रसार के बावजूद प्रदेश में सांकेतिक भाषा सीखने का एक भी सर्टिफाइड संस्थान (Certified Sign Language Institute) नहीं है. खास बात ये है कि प्रदेश के एकमात्र सरकारी मूक बधिर कॉलेज में प्रोफेसर भी सांकेतिक भाषा से अंजान हैं. यहां भी इंटरप्रेटर के माध्यम से प्रोफेसर बच्चों को पढ़ा रहें हैं.

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस पर विशेष

पढ़ें. Jaipur: 8 साल बाद भी मूक बधिर कॉलेज को नहीं मिला स्थाई कैंपस, अब स्कूल में अलॉट किए जा रहे 8 कमरे

प्रदेश का सरकारी एक मात्र बधिर कॉलेज -
राज्य सरकार मूक बधिर विद्यार्थियों के लिए जयपुर में विश्वविद्यालय खोलने की तैयारी कर रही है, जबकि जयपुर में ही विद्यार्थियों के लिए 2014 से चल रहे कॉलेज में सांकेतिक भाषा के प्रोफेसर के पद स्वीकृत नहीं हैं. इन विद्यार्थियों की पढ़ाई डेपुटेशन पर लगे लेक्चरर के भरोसे चल रही है, इसमें खास बात ये है कि डेपुटेशन पर लगे प्रोफेसर को सांकेतिक भाषा का ज्ञान नहीं है.

इंटरप्रेटर के माध्यम से प्रोफेसर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. बड़ा सवाल उठता है कि सरकार ने 8-9 साल पहले शुरू किए कॉलेज में आज तक प्रोफेसर के पद स्वीकृत ही नहीं किए. जानकर बताते हैं कि स्कूली शिक्षा में सांकेतिक भाषा के शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है लेकिन यूपीएससी में कॉलेज लेक्चरर के पदों पर सांकेतिक भाषा के लेक्चरर लेने का कोई प्रावधान नहीं है. जब सांकेतिक भाषा के प्रोफेसर की भर्ती होगी ही नही तो कॉलेज या महाविद्यालय खोलने से इसका उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

पढ़ें. मूक बधिर छात्रों ने कुछ इस अंदाज में पेश किए देशभक्ति गीत, देखें वीडियो

दुभाषियों के सहारे उच्च शिक्षा
दरअसल 12वीं तक की पढ़ाई के बाद प्रदेश में कहीं भी इन बच्चों के लिए कॉलेज नहीं था. 2014 में एक लम्बी लड़ाई के बाद सरकार ने कॉलेज खोलने की मांग को मानते हुए अलग से कॉलेज तो नहीं खोला लेकिन गांधी सर्किल स्थित राजकीय पोद्दार सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चल रहे राजकीय कॉलेज में ही इन मूक-बधिर विद्यार्थियों के लिए अलग से सेक्शन खोल दिए और डेपुटेशन पर सामान्य लेक्चरर नियुक्त कर दिया. हालात ये हैं कि अब न लेक्चरर को इन मूक बधिर बच्चों की भाषा समझ आती है और न इन विद्यार्थियों को लेक्चरर की. कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. कमला तिवाड़ी कहती हैं कि वैसे तो बच्चों के साथ रहते-रहते काफी कुछ सांकेतिक भाषा समझ मे आने लग गई, लेकिन कोर्सेज के कंटेंट को समझाने के लिए इंटरप्रेटर लगा रखे हैं जो इन मूक-बधिर बच्चों को उनकी भाषा में समझाते हैं.

पढ़ें. खामोश पुकार! शिक्षा संकुल में मूक-बधिर छात्रों ने दिया धरना, स्थाई भवन को लेकर लगाई गुहार

सर्टिफाइड इंस्टीट्यूट नहीं
मूक बधिर बच्चों के लिए लंबे समय से काम कर रहे अजीत शेखावत कहते हैं कि आज हम सांकेतिक भाषा दिवस मना रहे हैं. इस दिन का प्रमुख उद्देश्य सांकेतिक भाषा का अधिक से अधिक प्रचार प्रसार करना और लोगों को इस भाषा के प्रति जागरूक करना है. दुर्भाग्य है कि राजस्थान में एक भी मान्यता प्राप्त इंस्टिट्यूट नहीं है जहां पर सांकेतिक भाषा सिखाई जाती हो. किसी को अगर सांकेतिक भाषा का विशेष कोर्स करना है तो इसके लिए उसे अन्य राज्यों में जाना पड़ेगा. ज्यादातर लोग दिल्ली में जाकर सांकेतिक भाषा सीखते हैं. राजस्थान में सांकेतिक भाषा दिवस का महत्व तब पूरा होगा जब यहां पर भी सरकार के स्तर पर सांकेतिक भाषा प्रोत्साहित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा इंस्टीट्यूट खोले जाएं.

वीडियो स्टडी पर फोकस
मूक बधिर बच्चों के लिए काम करने वाले मनोज भारद्वाज कहते हैं कि कॉलेज में इन बच्चों के लिए राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन और ड्राइंग एंड पेंटिंग के सब्जेक्ट हैं. इन सब्जेक्ट को पढ़ाने के लिए डेपुटेशन पर लगे असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसरों के भरोसे ही इनकी शिक्षा चल रही है. समझ में नहीं आये तो इसके लिए इंटरप्रेटर कॉन्ट्रेक्ट पर लगा रखे हैं, लेकिन इस पर कोई अध्ययन नहीं करना चाहता कि इन बच्चों की रिक्वायरमेंट क्या है. इन बच्चों को विजुअल सब्जेक्ट की जरूरत है. ये बोल और सुन नहीं सकते लेकिन देख सकते हैं . सब्जेक्ट को वीडियो के जरिये समझाया जाए तो इन्हें आसानी से समझ आएगा.

जयपुर. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (international sign language day) घोषित किया है. यह दिन सभी मूक-बधिर लोगों और अन्य सांकेतिक भाषा का प्रयोग करने वालों की भाषाई पहचान और सांस्कृतिक विविधता का समर्थन करने और उनकी मदद और रक्षा करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है. इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस की थीम Sign Languages Unite Us है. यह विषय इस बात को रेखांकित करता है कि किस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति जीवन के सभी क्षेत्रों में सांकेतिक भाषाओं का प्रयोग कर मूक-बधिर व्यक्तियों के मानवाधिकारों को मजबूत कर सकता है.

राजस्थान के हालात देखने से लगता है कि प्रदेश में चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो, इन विशेष बच्चों से किसी को ज्यादा सरोकार नहीं रहा है. यही वजह है कि आज तक इतने प्रचार प्रसार के बावजूद प्रदेश में सांकेतिक भाषा सीखने का एक भी सर्टिफाइड संस्थान (Certified Sign Language Institute) नहीं है. खास बात ये है कि प्रदेश के एकमात्र सरकारी मूक बधिर कॉलेज में प्रोफेसर भी सांकेतिक भाषा से अंजान हैं. यहां भी इंटरप्रेटर के माध्यम से प्रोफेसर बच्चों को पढ़ा रहें हैं.

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प्रदेश का सरकारी एक मात्र बधिर कॉलेज -
राज्य सरकार मूक बधिर विद्यार्थियों के लिए जयपुर में विश्वविद्यालय खोलने की तैयारी कर रही है, जबकि जयपुर में ही विद्यार्थियों के लिए 2014 से चल रहे कॉलेज में सांकेतिक भाषा के प्रोफेसर के पद स्वीकृत नहीं हैं. इन विद्यार्थियों की पढ़ाई डेपुटेशन पर लगे लेक्चरर के भरोसे चल रही है, इसमें खास बात ये है कि डेपुटेशन पर लगे प्रोफेसर को सांकेतिक भाषा का ज्ञान नहीं है.

इंटरप्रेटर के माध्यम से प्रोफेसर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. बड़ा सवाल उठता है कि सरकार ने 8-9 साल पहले शुरू किए कॉलेज में आज तक प्रोफेसर के पद स्वीकृत ही नहीं किए. जानकर बताते हैं कि स्कूली शिक्षा में सांकेतिक भाषा के शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है लेकिन यूपीएससी में कॉलेज लेक्चरर के पदों पर सांकेतिक भाषा के लेक्चरर लेने का कोई प्रावधान नहीं है. जब सांकेतिक भाषा के प्रोफेसर की भर्ती होगी ही नही तो कॉलेज या महाविद्यालय खोलने से इसका उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

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दुभाषियों के सहारे उच्च शिक्षा
दरअसल 12वीं तक की पढ़ाई के बाद प्रदेश में कहीं भी इन बच्चों के लिए कॉलेज नहीं था. 2014 में एक लम्बी लड़ाई के बाद सरकार ने कॉलेज खोलने की मांग को मानते हुए अलग से कॉलेज तो नहीं खोला लेकिन गांधी सर्किल स्थित राजकीय पोद्दार सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चल रहे राजकीय कॉलेज में ही इन मूक-बधिर विद्यार्थियों के लिए अलग से सेक्शन खोल दिए और डेपुटेशन पर सामान्य लेक्चरर नियुक्त कर दिया. हालात ये हैं कि अब न लेक्चरर को इन मूक बधिर बच्चों की भाषा समझ आती है और न इन विद्यार्थियों को लेक्चरर की. कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. कमला तिवाड़ी कहती हैं कि वैसे तो बच्चों के साथ रहते-रहते काफी कुछ सांकेतिक भाषा समझ मे आने लग गई, लेकिन कोर्सेज के कंटेंट को समझाने के लिए इंटरप्रेटर लगा रखे हैं जो इन मूक-बधिर बच्चों को उनकी भाषा में समझाते हैं.

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सर्टिफाइड इंस्टीट्यूट नहीं
मूक बधिर बच्चों के लिए लंबे समय से काम कर रहे अजीत शेखावत कहते हैं कि आज हम सांकेतिक भाषा दिवस मना रहे हैं. इस दिन का प्रमुख उद्देश्य सांकेतिक भाषा का अधिक से अधिक प्रचार प्रसार करना और लोगों को इस भाषा के प्रति जागरूक करना है. दुर्भाग्य है कि राजस्थान में एक भी मान्यता प्राप्त इंस्टिट्यूट नहीं है जहां पर सांकेतिक भाषा सिखाई जाती हो. किसी को अगर सांकेतिक भाषा का विशेष कोर्स करना है तो इसके लिए उसे अन्य राज्यों में जाना पड़ेगा. ज्यादातर लोग दिल्ली में जाकर सांकेतिक भाषा सीखते हैं. राजस्थान में सांकेतिक भाषा दिवस का महत्व तब पूरा होगा जब यहां पर भी सरकार के स्तर पर सांकेतिक भाषा प्रोत्साहित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा इंस्टीट्यूट खोले जाएं.

वीडियो स्टडी पर फोकस
मूक बधिर बच्चों के लिए काम करने वाले मनोज भारद्वाज कहते हैं कि कॉलेज में इन बच्चों के लिए राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन और ड्राइंग एंड पेंटिंग के सब्जेक्ट हैं. इन सब्जेक्ट को पढ़ाने के लिए डेपुटेशन पर लगे असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसरों के भरोसे ही इनकी शिक्षा चल रही है. समझ में नहीं आये तो इसके लिए इंटरप्रेटर कॉन्ट्रेक्ट पर लगा रखे हैं, लेकिन इस पर कोई अध्ययन नहीं करना चाहता कि इन बच्चों की रिक्वायरमेंट क्या है. इन बच्चों को विजुअल सब्जेक्ट की जरूरत है. ये बोल और सुन नहीं सकते लेकिन देख सकते हैं . सब्जेक्ट को वीडियो के जरिये समझाया जाए तो इन्हें आसानी से समझ आएगा.

Last Updated : Sep 23, 2022, 8:00 AM IST
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