जयपुर. 28 नवंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस के रूप में (International Day of Forests) मनाने का फैसला किया था. इसके बाद हर बरस जंगल और जंगल के बीच बसी जिंदगी को बचाने के लिए जागरूकता के मकसद से 21 मार्च को वानिकी दिवस मनाया जाता है. जाहिर है कि जंगल बचेगा तो जिंदगी बचेगी और आने वाले कल की परिकल्पना की जा सकती है.
जंगल के लिहाज से तीन बातें खास हो जाती हैं, जिनमें पहला जंगल को बचाना, बचे हुए जंगल का विकास और इसका मानव के साथ संतुलन (Jhalana Forest of Jaipur) बेहद जरूरी होता है. जंगल पेड़ और ऑक्सीजन का जरिया या जंगली जानवरों का घर नहीं है, बल्कि इस धरती पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रजातियों के जीव-जंतु पेड़-पौधे कीट पतंग और मानवीय जीवन का आधार भी है.
इस मौके पर ईटीवी भारत ने जयपुर की झालाना वन्य जीव अभ्यारण की तस्वीर आप तक पहुंचाने की कोशिश की है. जहां न सिर्फ लेपर्ड संरक्षण किया जा रहा है बल्कि पर्यटन और खास तौर पर बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के बीच में पेड़ और पेड़ के जरिए एक बड़े जंगल को बचाने की कोशिश की जा रही है. झालाना का वन क्षेत्र करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जहां विभिन्न प्रजातियों के लाखों वृक्ष स्थापित हैं, जिनसे लाखों टन ऑक्सीजन शहर को मिलती है तो तापमान भी नियंत्रित रहता है.
पेड़ों की पुनर्स्थापना की मिसाल: झालाना वन क्षेत्र में इन दिनों वन विभाग ने पहल करते हुए शहरी विकास की भेंट चढ़ने वाले पेड़ों को प्रत्यारोपित करने की पहल की है. जिसके तहत शहरी इलाकों से विशेष तौर पर बरगद और पीपल के वृक्षों का रिप्लांटेशन इस क्षेत्र में किया जा रहा है. वन क्षेत्र में अब तक लगभग एक दर्जन वृक्षों का प्लांटेशन किया जा चुका है. आमतौर पर नीम, गूलर, बरगद और पीपल के पेड़ों का प्लांटेशन आसानी से किया जा सकता है और वातावरण में हवा की शुद्धता में भी उन पौधों की भूमिका अहम होती है.
इसी तरह से लोगों को यह समझाइश भी की जा रही है कि अगर आप किसी पेड़ को काटने की कोशिश करते हैं तो झालाना स्थित वन विभाग से संपर्क (Jhalana Wildlife Sanctuary) करके इस पेड़ की जिंदगी को बचाया जा सकता है. जहां कटे हुए पेड़ों को अनुकूल वातावरण दिया जाता है ताकि वे जल्दी प्रस्फुटित होकर फिर से अपनी जड़ों को विकसित कर सकें. वन विभाग जयपुर के लोगों से अपील भी कर रहा है कि वे लोग अगर इस मुहिम में भागीदार बने, तो फिर इस जंगल को और घना और विकसित करने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. रेंजर जनेश्वर चौधरी ने बताया कि इस साल से जारी इस प्रयास में उन्हें 90 फीसदी तक कामयाबी हाथ लगी है.
ग्रास लैंड का विकास, जीवन के लिए वरदान : झालाना के जंगलों में न सिर्फ पेड़ों को बचाया जा रहा है, बल्कि यहां ग्रास लैंड का भी विकास किया जा रहा है. इस कवायद का मकसद अधिकारियों के मुताबिक यह है कि आज का आहार बनाने वाले जीवों को अगर यहां विकसित किया जाएगा तो जंगल के संरक्षण में यह काफी मददगार साबित हो सकता है. पक्षी और अन्य जीव लगातार क्षेत्र को अपने आवास के रूप में भोजन की उपलब्धता के आधार पर चयन कर सकते हैं और यह जंगली यह जीवन के लिए बेहतर उदाहरण पेश कर सकता है.
आंकड़ों के मुताबिक करीब 220 प्रकार की पेड़ पौधों की प्रजातियां फिलहाल झालाना के जंगलों में है, जो न सिर्फ जंगली जीवों के आधार आहार का हिस्सा है, बल्कि जड़ी बूटियां और दुर्लभ वनस्पतियां भी इसमें शामिल है. कुछ ऐसी वनस्पतियां भी है जो कि प्रदेश में लुप्त प्राय होने के कगार पर है. जयपुर के इन जंगलों में 33 प्रकार के वन्य जीव प्राणी की स्तनधारी प्राणी और 125 के करीब अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी भी निवास कर रहे हैं. यह सब जाहिर करता है कि जयपुर शहर की आबादी से सटे इलाके में भी अगर इच्छा हो तो फिर जंगल को बचाकर संरक्षित किया जा सकता है.
पर्यावरण के लिए चिंतन करने वाले ये शिकायत अक्सर करते हैं कि पिछले कुछ दशकों में जिस तरह से मनुष्य ने अपने लालच की पूर्ति के लिए जंगलों का वध करना शुरू किया है, उससे जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग, ग्लेशियर का पिघलना जैसी विकट समस्याएं शुरू हुई हैं. अगर हमने अभी भी ध्यान नहीं दिया तो समस्त प्रकृति व जीव खतरे में पड़ जाएंगे.