जयपुर. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की ओर से भारतीय सेना के जवानों को हनीट्रैप में फंसा कर उनसे सैन्य गतिविधियों और सामरिक महत्व की अन्य सूचनाएं प्राप्त करने के अनेक मामले उजागर होने के बाद सुरक्षा को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की ओर से बकायदा युवतियों की एक विशेष सेल का गठन किया गया है, जो भारतीय सेना के जवानों और सैनिक एरिया में काम करने वाले अन्य लोगों को हनी ट्रैप के जाल में फंसाकर उनसे महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त कर रही हैं. इसके साथ ही विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से सेना के जवानों के मोबाइल में कुछ ऐप्स डाउनलोड करवाकर भी उनकी तमाम गतिविधियों पर निगरानी रखी जा रही है.
राजस्थान में हनी ट्रैप में फंसे सेना के जवान
- केस स्टडी- 1
जनवरी 2019 में राजस्थान पुलिस की इंटेलिजेंस शाखा की ओर से जैसलमेर से सेना के एक जवान को गिरफ्तार किया गया था. सेना के जवान को आईएसआई की महिला एजेंट की ओर से हनी ट्रैप में फंसा कर सैन्य ठिकानों और सैन्य गतिविधियों सहित अन्य सामरिक महत्व की सूचनाएं प्राप्त की गईं थी.
- केस स्टडी- 2
नवंबर 2019 में राजस्थान पुलिस की इंटेलिजेंस शाखा ने सीमावर्ती क्षेत्र से सेना के जवानों को गिरफ्तार किया था. पूछताछ में सेना के जवानों ने यह बात कबूली थी कि हनी ट्रैप में फंसने के बाद उन्होंने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को पिछले डेढ़ साल से सामरिक महत्व की अनेक सूचनाएं मुहैया करवाई है. दोनों जवानों ने पाकिस्तान से सटी राजस्थान की 1070 किलोमीटर लंबी सीमा के बारे में, बीएसएफ की चौकियों के बारे में, सीमावर्ती क्षेत्र में तैनात जवानों के बारे में, थल सेना और वायुसेना के युद्धाभ्यास, सेना के पास मौजूद हथियार आदि कई महत्वपूर्ण सूचनाएं आईएसआई तक पहुंचाई थी.
- केस स्टडी- 3
सितंबर 2020 में मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज में तैनात एक कर्मचारी को जयपुर से गिरफ्तार किया गया था. हनी ट्रैप में फंसने के बाद कर्मचारी की ओर से सैनिक गतिविधियों से संबंधित जानकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी तक पहुंचाई गई था.
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- केस स्टडी- 4
नवंबर 2020 में राजस्थान पुलिस की इंटेलिजेंस शाखा ने एमईएस में कार्यरत सिविल डिफेंस कर्मचारी को हनी ट्रैप के मामले में गिरफ्तार किया था, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के साथ भारतीय सैन्य ठिकानों, सैन्य गतिविधियों से संबंधित सामरिक महत्व की सूचनाएं साझा की थी.
- केस स्टडी- 5
जनवरी 2021 में राजस्थान पुलिस की इंटेलिजेंट शाखा ने जैसलमेर से एक युवक को गिरफ्तार किया था, जो हनी ट्रैप में फंसकर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को देश की सबसे बड़ी पोकरण फायरिंग रेंज की सैनिक गतिविधियों की तमाम जानकारी पाकिस्तान भेज रहा था.
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पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की ओर से ना केवल भारतीय सेना के जवानों बल्कि सीमावर्ती क्षेत्र में रहने वाले या फिर सैनिक एरिया में काम करने वाले लोगों को भी हनी ट्रैप का शिकार बनाया जा रहा है. राजस्थान में ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं, जहां पर सिविलियंस को भी हनी ट्रैप के जाल में फंसा कर सीमावर्ती क्षेत्र में होने वाली सैन्य गतिविधियों की जानकारी मांगी जा रही है. ऐसे में हनी ट्रैप से बचने के लिए और सामरिक महत्व की सूचनाएं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी तक ना पहुंचे इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने बेहद आवश्यक हैं.
इस तरह से हनी ट्रैप में फंसाया जाता है
- फेक प्रोफाइल बनाकर सोशल नेटवर्किंग साइट पर भेजी जाती है रिक्वेस्ट
साइबर सिक्योरिटी एक्सपोर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि भारतीय सेना का मैकेनिज्म काफी मजबूत है और भारतीय सेना के जवान भी देश के साथ गद्दारी नहीं करते हैं. ऐसे में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने सेना के जवानों को अपने जाल में फंसाने का नया तरीका अपनाया है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की ओर से युवतियों की एक सेल बनाई गई है, जो कि विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट पर फेक प्रोफाइल बनाकर सेना के जवानों और सीमावर्ती क्षेत्र में रहने वाले लोगों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजती हैं. फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के बाद युवतियों की ओर से वीडियो कॉल की जाती है और अपने जाल में फंसा कर सीमावर्ती क्षेत्र में होने वाली सैनिक गतिविधियों और अन्य सामरिक महत्व की सूचनाओं की मांग की जाती है.
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- ऐप के जरिए मोबाइल में डाला जाता है मॉल वेयर
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि हनी ट्रैप में फसाने के बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की ओर से व्यक्ति को उसके मोबाइल पर ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा जाता है. ऐप कोई भी हो सकती है. उस ऐप के माध्यम से उस व्यक्ति के मोबाइल में एक मॉल वेयर डाल दिया जाता है. इस मॉल वेयर के माध्यम से उस व्यक्ति के मोबाइल का पूरा एक्सेस पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के हाथ में चला जाता है. उसके बाद उस व्यक्ति की लोकेशन, जीपीएस, टेक्स्ट मैसेज, मोबाइल कैमरा, माइक, स्पीकर जैसी तमाम चीजों को ऑपरेट किया जा सकता है. जिस व्यक्ति के मोबाइल में मॉल वेयर डाल दिया गया है, अगर वह अपने मोबाइल को हॉटस्पॉट के जरिए किसी अन्य व्यक्ति के मोबाइल या लैपटॉप से कनेक्ट करता है, तो यह मॉल वेयर एक नेटवर्क के जरिए दूसरे मोबाइल और लैपटॉप में भी चला जाता है और फिर उस व्यक्ति की लोकेशन और डिवाइस के तमाम फंक्शन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की ओर से ऑपरेट किए जा सकते हैं.
बचाव के लिए अपनाएं यह तरीके
- मोबाइल में डाउनलोड करें ई-स्कैन एप्लीकेशन
साइबर सिक्योरिटी एक्सपोर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि हनी ट्रैप से बचने के लिए सेना के जवानों को सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए और अनजान व्यक्तियों खासकर की युवतियों की फ्रेंड रिक्वेस्ट को बिल्कुल भी एक्सेप्ट नहीं करना चाहिए. मॉल वेयर से बचने के लिए सेना के जवानों और सीमावर्ती क्षेत्र में रहने वाले तमाम लोगों को अपने मोबाइल में प्ले स्टोर से ई-स्कैन एप्लीकेशन डाउनलोड करनी चाहिए. भारत सरकार की एजेंसी कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम की ओर से इस ऐप को बनाया गया है. इस ऐप के माध्यम से बिना किसी शुल्क के पूरे मोबाइल सिस्टम को स्कैन किया जा सकता है और यदि मोबाइल में कोई वायरस या मॉल वेयर है, तो उसे इस ऐप की ओर से अपने आप ही मोबाइल से रिमूव कर दिया जाता है. इसके साथ ही इस ऐप के जरिए यह भी देखा जा सकता है कि मोबाइल में अपलोड किन ऐप्स की ओर से व्यक्ति की लोकेशन और अन्य डाटा का प्रयोग किया जा रहा है.
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- मोबाइल फोन में एक्टिव रखें फायर वॉल
साइबर सिक्योरिटी एक्सपोर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि अपने मोबाइल के एंड्रॉइड सिस्टम को सिक्योर बनाए रखने के लिए मोबाइल फोन में फायर वॉल को हमेशा एक्टिव रखें. इसके जरिए फोन के इनकमिंग और आउटगोइंग कनेक्शन पर निगरानी रखी जा सकती है. इसके साथ ही यह भी देखा जा सकता है कि मोबाइल फोन की ओर से कौन सा डाटा अपलोड किया गया है और कौन सा डाटा डाउनलोड किया गया है, इसकी लॉक फाइल चेक की जा सकती है. इसके साथ ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर टू स्टेप वेरिफिकेशन को ऑन रखें और रिकवरी ई-मेल को हमेशा सही रखें. ऐसी स्थिति में अगर अकाउंट हैक भी होता है, तो उसे रिकवर किया जा सकता है. इसके साथ ही यह भी देखा जा सकता है कि फेसबुक की ओर से किन-किन ऐप्लीकेशन को एक्सेस किया जा रहा है और फेसबुक की ओर से सेव की गई निजी जानकारी को भी रिमूव किया जा सकता है. ऐसा करके काफी हद तक सोशल नेटवर्किंग साइट को सेफ बनाया जा सकता है.