जयपुर. राज्य सरकार की ओर से पिछले साल बजट सत्र में घोषित 35 कॉलेजों के संचालन के लिए राज्य सरकार ने एक अनूठी तरकीब निकाली है. इन कॉलेजों के संचालन एक समिति की ओर से किया जाएगा. प्रदेश के वित्त विभाग के अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है.
पिछले साल जिन 35 कॉलेजों की घोषणा सरकार ने बजट सत्र में की थी. उनमें संसाधन और नियुक्तियों के लिए सरकार की ओर से बजट जारी नहीं किया गया था. इसे लेकर सरकार की किरकिरी भी हुई थी.
ऐसे में वित्त विभाग ने सोसायटी के माध्यम से इन कॉलेजों के संचालन करने की योजना बनाई है. इन कॉलेजों के संचालन का संपूर्ण जिम्मा इसी सोसायटी के होगा. हालांकि, कॉलेज के संचालन के लिए बजट जुटाने से लेकर भर्तियों का जिम्मा भी इसी सोसायटी का होगा. बताया जा रहा है कि प्रदेश में राज-मेस सोसायटी के माध्यम से पहले से ही आठ मेडिकल कॉलेजों का संचालन किया जा रहा है.
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कॉलेज शिक्षा निदेशक संदेश नायक का कहना है कि वित्त विभाग ने कॉलेज शिक्षा विभाग को एक सोसायटी का गठन करने के निर्देश दिए हैं. जो नए खुले कॉलेजों में संसाधन जुटाने और नियुक्तियों की प्रक्रिया को गति देगी. यह समिति इन्हीं कॉलेजों की समस्याओं के समाधान पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी और इनके लिए जो अभ्यर्थी चयनित होंगे वो भी इन्हीं कॉलेजों में रहेंगे. जब तक सोसायटी के गठन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है. तब तक इन कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की पूर्ति विद्या संबल योजना के तहत गेस्ट फैकल्टी के माध्यम से की जाएगी.
सोसायटी के माध्यम से कॉलेजों के संचालन की इस व्यवस्था का शिक्षक संघों ने विरोध किया है. इसे लागू होने से पहले ही फ्लॉप करार दिया है. राजस्थान विश्वविद्यालय एवं कॉलेज शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) के महासचिव सुशील कुमार बिस्सु का कहना है कि राज मेस सोसायटी के माध्यम से संचालित मेडिकल मेडिकल कॉलेजों में हर विद्यार्थी से 7.50 लाख रुपए सालाना फीस ली जाती है. इसलिए इसके संचालन को लेकर किसी बाहरी मदद की दरकार नहीं होती है. लेकिन सरकारी कॉलेजों में इतनी फीस नहीं होती है. कई गरीब विद्यार्थी तो कुछ हजार रुपए फीस देने में भी सक्षम नहीं होते हैं. ऐसे में यह सोसायटी कैसे काम करेगी. उनका तर्क है कि सोसायटी के माध्यम से संचालन के लिए यदि सरकार फीस बढ़ाती है तो फिर ग्रामीण इलाकों में कॉलेज खोलने का मकसद ही पूरा नहीं हो पाएगा.