जयपुर. गहलोत सरकार ने बजट में किसानों (crop loan for farmers) समेत अलग-अलग वर्गों के लिए कई जन कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा तो कर दीं लेकिन अब यह सरकारी बैंकों पर भारी पड़ रही है. हाल ही में सरकार ने रबी की फसल के ब्याज मुक्त ऋण चुकाने की अवधि 2 माह बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी लेकिन इन 2 महीनों का ब्याज अनुदान (interest subsidy for 2 months) सरकार खुद वहन न कर रही है बल्कि इसके वहन करने की जिम्मेदारी सहकारी बैंकों पर डाल दी है.
दरअसल प्रदेश में 29 जून से 3 जुलाई तक इंटरनेट बंदी थी और तब ब्याज मुक्त ऋण चुकाने की अंतिम तिथि भी 30 जुलाई ही थी. क्योंकि सहकारी समितियों का सभी काम ऑनलाइन कर दिया गया है इसके चलते लाखों किसानों ने समय पर फसली ऋण नहीं चुकाया. ऐसे में कई किसानों के डिफाल्टर होने का खतरा भी मंडराने लगा है. समय पर ऋण नहीं चुकाने पर ब्याज और पेनल्टी 180 करोड़ रुपए भी प्रदेश के करीब सवा 3 लाख किसानों के माथे आ गया है.
हालांकि सरकार ने किसानों की इस दुविधा को कम करने के लिए फसली ऋण चुकाने की अवधि 2 महीने बढ़ाकर 31 अगस्त तक कर दी गई है. बकायदा वित्त विभाग ने इसके आदेश भी जारी किए लेकिन इन 2 महीनों में किसानों को मिलने वाले ब्याज अनुदान का आर्थिक भार सरकारी बैंकों पर ही डाल दिया गया है. सहकारी बैंकों ने इस संबंध में वित्त विभाग से आग्रह किया कि यह ब्याज अनुदान सरकार स्वयं वहन करें क्योंकि किसानों को ब्याज मुक्त फसली ऋण देने की घोषणा राज्य सरकार ने ही की है. ऐसे में फसली ऋण का अनुदान सरकार को वहन कर बैंकों को देना चाहिए लेकिन अब तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया.
12 करोड़ का आएगा सहकारी बैंकों पर भार
प्रदेश में रबी का ब्याज मुक्त फसली ऋण चुकाने (interest free crop loan) की अवधि दो माह बढ़ाने का फायदा तो किसान को मिल गया और इस दौरान किसान को ब्याज मुक्त ऋण 2 महीने अपने पास रखने का मौका भी मिल है लेकिन इन 2 महीने का जो ब्याज ऋण पर बनता है उसका अनुदान करीब 12 करोड़ होता है. यह आर्थिक भार केंद्रीय सहकारी बैंकों पर ही आएगा. हालांकि मुख्यमंत्री की बजट घोषणा है कि किसानों को ब्याज मुक्त फसली ऋण मुहैया कराया जाएगा लेकिन यही घोषणा अब प्रदेश के सहकारी बैंकों पर भारी पड़ रही है.
कर्मचारी संगठन नाराज, कहा- सहकारी बैंकों की हालत खराब
सहकारी बैंकों से जुड़े कर्मचारी संगठन सरकार के इस फरमान से नाराज हैं. राजस्थान कोऑपरेटिव बैंक एंप्लाइज यूनियन महासचिव सूरजभान सिंह आमेरा का कहना है कि सहकारी बैंक सीधे तौर पर प्रदेश के किसानों से जुड़े हैं और यदि सहकारी बैंकों की आर्थिक हालत खराब होगी तो इसका सीधा असर किसानों पर ही पड़ेगा. यदि सरकार किसानों को ब्याज मुक्त फसली ऋण देने की घोषणा बजट में करती है तो फिर जो 2 माह की अवधि ऋण चुकता के लिए बढ़ाई गई है उसका ब्याज अनुदान भी सरकार को ही वहन करना चाहिए. इससे आर्थिक रूप से जूझ रहे सहकारी बैंकों पर वित्तीय भार नहीं पड़े.
डिस्कॉम और रोडवेज भी है सरकारी रेवड़ी कल्चर का शिकार
ब्याज अनुदान सहित विभिन्न वर्गों को अलग-अलग रियायत की घोषणा सरकार अपने सियासी फायदे के लिए करती है लेकिन इस सरकारी 'रेवड़ी कल्चर' का शिकार सरकारी विभाग, निगम, बोर्ड होते हैं. सहकारिता से जुड़े बैंक और समितिया ही नहीं बल्कि राजस्थान रोडवेज और राजस्थान डिस्कॉम भी सरकारी रेवड़ी कल्चर का शिकार है. किसानों को 90 पैसे प्रति यूनिट की दर पर बिजली मुहैया कराने की सरकार की घोषणा है लेकिन उस पर बनने वाला अनुदान सरकार समय पर डिस्कॉम को नहीं देती है. इसके चलते हजारों करोड़ रुपए का लोन डिस्कॉम बैंकों से लेती है और उसके ब्याज को भरते भरते आज डिस्कॉम की आर्थिक हालत बेहद खराब हो चुकी है. यही स्थिति राजस्थान रोडवेज की भी है जिसमें विभिन्न श्रेणियों में सरकार ने रियायततों की घोषणा की है लेकिन उसके अनुदान के रूप में सही समय पर भुगतान रोडवेज को नहीं होता इसके चलते रोडवेज की भी हालत दिन पर दिन खराब हो रही है.