जयपुर. प्रदेश में गुर्जर समाज के लोग पिछले 5 दिनों से रेलवे ट्रेक पर जमे हुए हैं. सरकार की ओर से पहले खेल मंत्री और अब पिछले 3 दिन से आईएएस नीरज के. पवन गुर्जर नेताओं को मनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन बात शुरू होने के साथ बैकलॉग के मुद्दे समझौता अटक जाती है. गुर्जर समाज के लोग बैकलॉग लिए बगैर ट्रैक खाली नहीं करना चाहते हैं और सरकार बैकलॉग नहीं दे सकती है.
कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि उनकी प्रदेश में सरकार बनी तो सरकारी विभागों, निगमों, शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और विशेष पिछड़ा वर्ग के खाली पदों के बैकलॉग को शीघ्र भरेगी. इसी तरह सरकार और गुर्जर आरक्षण समिति के बीच हुए समझौते में भी सरकार ने वादा किया था कि एमबीसी में रहे बैकलॉग को भरेगी. सरकार और गुर्जर समाज के बीच हुए समझौते का यही बिंदू गहलोत सरकार के लिए गले का फांस बन गया है.
गुर्जरों की यह है मांग...
गुर्जर सामज ने साफ कर दिया कि उन्हें बैकलॉग में रिक्त पदों की भर्ती के नियुक्ति पत्र लाकर दे दें तो वह रेलवे ट्रैक को खाली कर आंदोलन समाप्त कर देंगे. गुर्जर समाज करीब 35 हजार अभ्यर्थियों की नियुक्ति पत्र की मांग सरकार से कर रहे हैं. सरकार के सामने अब बड़ी दुविधा यह है कि सरकार ने अब तक इतनी भर्ती नहीं की, जिसके हिसाब से 4 फीसदी का बैकलॉग दिया जाए.
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सरकार ने अपने घोषणा पत्र में और गुर्जर समाज के साथ आंदोलन के दौरान किए गए समझौते में बैकलॉग भरने की बात तो कह दी, लेकिन कानूनी रूप से इस बैकलॉग के तहत नियुक्ति नहीं दी जा सकती है. गुर्जर समाज और सरकार के बीच फंसे इस पेंच को समझने के लिए ईटीवी भारत ने आरक्षण मामलों के जानकार पाराशर नारायण शर्मा से बातचीत की.
सरकार नहीं दे सकती है नियुक्ति पत्र...
आरक्षण मामलों के जानकार पाराशर नारायण शर्मा ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में बताया कि सरकार किसी भी कानूनी रूप से गुर्जर समाज को या अति पिछड़ा वर्ग को बैकलॉग के साथ नियुक्ति पत्र नहीं दे सकती है. उन्होंने कहा कि सरकार हमेशा अपने वोट बैंक को साधने के लिए इस तरह के वादे और घोषणाएं कर देती है, लेकिन जब इनको इंप्लीमेंट करने की बारी आती है तो यह कानून में उलझ जाता है.
इस वर्ग में नहीं है बैकलॉग का कोई प्रावधान...
पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि बैकलॉग सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को दिया जा सकता है. ओबीसी या पिछड़ा वर्ग में बैकलॉग का कोई प्रावधान नहीं है. पाराशर ने कहा कि अगर सरकार इसको सुलझाना चाहती है तो सिर्फ उसके लिए एक ही रास्ता है कि वह सुप्रीम कोर्ट में चल रही याचिका में विशेष याचिका पत्र दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से गुर्जर समाज के अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने का अंतरिम आदेश लेकर आए.
बैकलॉग को गलत तरीके से किया जा रहा पेश...
शर्मा ने कहा कि बैकलॉग का अर्थ इस समय गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. गुर्जर समाज जिस बैकलॉग की बात कर रही है, वह दरअसल बैकलॉग है ही नहीं. बैकलॉग की परिभाषा होती है कि जिस भी आरक्षित वर्ग के लिए कोई वैकेंसी निकाली जाती है और उसमें उतने पदों के लिए अभ्यर्थी आवेदन नहीं करते हैं. शेष पदों को भरने के लिए फिर से आवेदन लिए जाते हैं. उदाहरण के लिए अगर शिक्षा विभाग में आरक्षित वर्ग के लिए 100 पदों की भर्ती निकलती है और उसमें 70 अभ्यर्थी ही शामिल होते हैं. इसमें जो शेष 30 पद हैं उसे बैकलॉग कहा जाता है.
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भर्ती के समय गुर्जरों को नहीं था 4 फीसदी आरक्षण का लाभ...
आरक्षण मामलों के जानकार पाराशर नारायण शर्मा ने बताया कि जब भर्ती निकाली गई थी, तब गुर्जर समाज को 4 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं था, उन्हें सिर्फ 1 फीसदी आरक्षण का लाभ था. इसलिए भर्तियों में उस समय गुर्जर समाज के अभ्यर्थियों को एक फीसदी का लाभ दिया गया. ऐसे में गुर्जर समाज अब मांग कर रही है कि 2013 से या 2016 से हुई भर्तियों में 4 फीसदी का अतिरिक्त बैकलॉग दिया जाए, जो कानून सम्मत ठीक नहीं है.
पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि अगर सरकार आंदोलन समाप्त कराने के लिए गुर्जर समाज के प्रतिनिधियों को बैकलॉग भरने का वादा करते हुए कोई निर्णय कर भी लेती है तो आगे जाकर यह कानूनी रूप से कोर्ट में खारिज हो जाएगा.
इससे पहले भी हुआ है आंदोलन...
बता दें, 2008 में गुर्जर आरक्षण की आग का असर ना केवल राजस्थान बल्कि समूचे देश मे पड़ा. पहली बार किसी आंदोलन में 70 से अधिक लोगों की जान गई और करोड़ों रुपए की सार्वजनिक संपत्ति का भी नुकसान हुआ. इसके बाद तत्कालीन सरकार के साथ गुर्जर सहित 5 जातियों को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया. लेकिन इस आरक्षण में कानूनी कमियों की वजह से कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद 2013 में और फिर 2016 में आंदोलन हुआ.