जयपुर. प्रदेश की गहलोत सरकार सुशासन के कितने ही दावे करें, लेकिन हकीकत इससे हटकर है. आम जनता की सुनवाई तो दूर कोर्ट के आदेशों की पालना करने में भी प्रदेश की गहलोत सरकार पूरी तरह फेल रही. सरकारी विभागों के आंकड़े देखें तो सामने आता है कि हाई कोर्ट की अवमानना के 4,728 मामले लंबित पड़े हैं.
राजस्थान के सरकारी विभागों की कार्यशैली की स्थिति यह है कि हाई कोर्ट के आदेश की पालना भी नहीं हो रही है. यहां हाई कोर्ट की अवमानना के 4 हजार से ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं. सरकारी विभागों के आंकड़े देखें जाएं तो सामने आता है कि सरकार की ओर से हाईकोर्ट के आदेशों की पालना भी नहीं की जा रही है. हाई कोर्ट के आदेशों की पालना नहीं होने को लेकर पिछले साल भी सरकार को कोर्ट ने फटकार लगाई थी.
उसके बाद मुख्य सचिव ने पेंडेंसी खत्म करने के लिए आदेश जारी किए गए थे, लेकिन एक साल बाद विभागों के कोर्ट केसेज की समीक्षा की गई तो सामने आया कि कोर्ट की अवमानना के 4,728 मामले अभी भी पेंडिंग हैं. कानून के जानकार भी कहते हैं कि यह बहुत गंभीर मामला है कि हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट या अन्य किसी भी न्यायालय से पीड़ित के पक्ष में निर्णय हो जाता है, लेकिन बावजूद उसके कोर्ट के आदेशों की पालना नहीं होती है.
एडवोकेट शिव जोशी बताते हैं कि जब किसी भी व्यक्ति की सुनवाई सरकार या सरकार के अधिकारियों के स्तर पर नहीं होती है तो वह न्याय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है जहां पर कानून जायज मांग पर कोर्ट उसके पक्ष में फैसला भी सुनाती है, लेकिन यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि सरकार कोर्ट के आदेशों की भी पालना नहीं कर रही है.
पिछले साल से देखा जाए तो इनकी संख्या में करीब 400 केस जुड़ गए हैं. सबसे ज्यादा अवमानना के मामले स्कूल शिक्षा विभाग के हैं जिनकी संख्या 701 हैं. इसके बाद 534 जेडीए और 499 चिकित्सा विभाग के हैं. वहीं, प्लानिंग, आपदा, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यावरण डिपार्टमेंट में एक भी अवमानना का मामला नहीं है. सभी 52 विभागों के कोर्ट में लंबित मामलों को देखा जाए तो इनकी संख्या एक लाख 80 हजार 26 मामले हैं. 1 अगस्त 2017 के बाद से लंबित मामलों की संख्या देखी तो 1,20,596 के करीब हैं. वहीं, कोर्ट की अवमानना के 4728 मामलों में से 3274 मामले ऐसे हैं, जिनमें सरकार ने कोई जवाब पेश नहीं किया है.
बेरोजगार महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेन यादव कहते है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री बेरोजगारों के हित में काम करने की मंशा रखते हैं, लेकिन अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से पीड़ितों को न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है.
यादव ने कहा कि हजारों भर्तियों के मामले ऐसे हैं जो कुछ तो कोर्ट में पेंडिंग हैं और कुछ में जो फैसला आ चुका है, उसकी पालना अधिकारी और कर्मचारी नहीं कर रहे हैं. हालांकि सरकार की ओर से कोरोना के चलते एक साल से कोर्ट केसों की पेंडेंसी को खत्म करने के लिए कोई रिव्यू नहीं किया गया. एक साल बाद न्याय विभाग ने रिव्यू किया तो विभागों को उन्होंने इनके जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं. ताकि कोर्ट में लंबित चल रहे इन केसों को खत्म किया जा सके.