जयपुर. पूर्व चिकित्सा मंत्री और विधायक कालीचरण सराफ ने कोटा के जेकेलोन हॉस्पिटल में इलाज के अभाव में नवजात शिशुओं की मौत मामले को लेकर चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने जांच कराए बिना दोषियों के बचाव में चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा द्वारा दिए गए बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है.
सराफ ने कहा कि अत्यंत खेद का विषय है कि प्रदेश के प्रमुख मातृ शिशु चिकित्सालयों में से एक कोटा के जेकेलोन अस्पताल में समय पर इलाज नहीं मिलने से नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत हो जाती है और चिकित्सा मंत्री जी जिम्मेदारी तय करने के बजाय बहानेबाजी करके पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इससे पहले दिसम्बर 2019 में भी इसी अस्पताल में एक महीने के अंदर 100 बच्चों की मौत हुई थी. तब चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा और इस क्षेत्र से सरकार में मंत्री शांति धारीवाल ने व्यवस्थाओं में सुधार के अनेक दावे किए और लीपापोती करके दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, परिणाम स्वरूप उसी हॉस्पिटल में मेडिकल स्टाफ की लापरवाही के कारण पुनः पिछले 3 दिन में 12 नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, जो कि अत्यधिक दुःख और अफसोस की बात है.
सराफ ने चिकित्सा मंत्री की ओर से दिए गए बयान पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि घटना की जांच कराए बिना उन्होंने यह कैसे मान लिया कि बच्चों की मौत किन कारणों से हुई है. दोषियों के बचाव में दिए गए बयान के लिए चिकित्सा मंत्री को जनता से माफी मांगनी चाहिए. घटना की जांच करवाने के लिए डॉक्टर्स की समिति बनाई गई है. जांच में लीपापोती ना हो और निष्पक्ष जांच हो, इसके लिए समिति में प्रशासनिक अधिकारियों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए.
वासुदेव देवनानी ने भी सवाल किए खड़े
कोटा के जेकेलोन अस्पताल में अचानक हुई नवजात शिशुओं की मौतों के मामले में पूर्व शिक्षा मंत्री और भाजपा के नेता वासुदेव देवनानी ने चिकित्सा मंत्री को आड़े हाथों लिया. देवनानी ने कहा कि जेकेलोन मातृ एवं शिशु चिकित्सालय में आठ घंटे में नौ बच्चों की मौत हो जाना भी चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को नेचुरल लगता है. चिकित्सा मंत्री का ऐसा गैर जिम्मेदाराना बयान ना केवल अपनी जिम्मेदारी से भागने वाला बल्कि दोषी चिकित्सा अधिकारियों को बचाने वाला भी है.
देवनानी ने कहा कि सरकार और चिकित्सा महकमे की घोर लापरवाही के चलते पिछले साल कोटा के जेकेलोन हॉस्पिटल में 35 दिन में 107 बच्चों की मौत हो चुकी है. एक साल बाद भी अस्पताल के हालाल वैसे ही खस्ता बने हुए है. बीमार बच्चों के अभिभावक ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर्स से बच्चों को संभालने का आग्रह करते रहते हैं, लेकिन उनके कानों पर जू तक नहीं रेंगती.
अस्पताल प्रशासन की गंभीर लापरवाही के कारण उत्पन्न हुए हालातों का ही परिणाम है कि दो दिन पहले महज आठ घंटे में नौ नवजात बच्चों को मौत का सामना करना पड़ा जबकि मंत्री शर्मा ने ऐसा कौनसा राजनीतिक चश्मा पहन रखा है, जो इतनी अव्यवस्थाओं से हुई मौत के मामले भी उन्हें नेचुरल दिखाई पड़ रहे हैं.