जयपुर. सभी बच्चों के सपने होते है कि वे नामी गिरामी स्कूल में पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजिनियर, आरएएस बने. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी कच्ची बस्ती के बच्चों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके माता पिता ने कभी पढ़ाई का सपोर्ट नहीं किया. लेकिन बच्चों में पढ़ाई की ललक इतनी थी कि वे इस पाठशाला में पढ़ने आ गए. इस पाठशाला की शुरुआत साल 2006 से सुनीता यादव नाम की महिला ने की थी. उस समय सुनीता खुद 7वीं कक्षा की स्टूडेंट थीं. सुनीता खुद कच्ची बस्ती में पली बढ़ी हैं. तब से सुनीता का सपना था कि वे भी बच्चों को पढ़ाए लिखाएं. सुनीता और पुलिस के पद से वीआरएस लेने वाले गोपाल सिंह ने मिलकर कच्ची बस्ती के बच्चों को घर-घर से निकालकर पढ़ना सिखाया और आज उन बच्चों का हुनर देखकर आप भी दंग रह जाएंगे कि यह बच्चे कच्ची बस्ती में पढ़े हैं.
छतर पाठशाला में कक्षा पहली से 10वीं तक चलती है और कक्षा 11वीं और 12वीं के लिए बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया जाता है. वहीं पहली कक्षा से 10वीं कक्षा को पढ़ाने वाले भी खुद स्टूडेंट्स हैं, जो आरएएस की तैयारी कर रहे हैं. इतना ही नहीं कच्ची बस्ती में चल रही छतर पाठशाला से एक बच्ची जेईई में भी सेलेक्ट हो गई है और एक स्टूडेंट्स नामी कॉलेज से होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहा है.
ईटीवी भारत ने जब इन बच्चों से पूछा कि आप आरएएस बनकर क्या करोगे तो सबकी जुबां पर एक ही सवाल था कि आरएएस इसलिए बनना है ताकि हम हमारे जैसे गरीब बच्चों को एक अच्छी शिक्षा प्रदान करा सके. साथ ही कच्ची बस्ती और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए काम करे सकें और उनके लिए प्रेरणा बन सकें. वहीं समाज में भ्रष्टाचार को भी खत्म कर सकें.
इन बच्चों के सपनों को पंख लगा रहीं हैं सुनीता यादव और गोपाल सिंह. दोनों का सपना है कि इन टैलेंटेड बच्चों को आरएएस बनाना, जिसके चलते ये बच्चों को निशुल्क कोचिंग दे रहे हैं. साथ ही यहां पर कोचिंग देने आ रहे शिक्षक भी निस्वार्थ सेवा भाव से बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. ये बच्चे सुबह साढ़े सात बजे से दोपहर साढ़े बारह बजे तक छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं और 2 से 6 बजे तक आरएएस की कोचिंग लेते हैं.