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स्पेशल स्टोरीः 'सुनीता यादव और गोपाल सिंह' जयपुर के इस पाठशाला के बच्चों के सपनों में लगा रहे पंख

फिल्म सुपर-30 तो आप सभी ने देखी ही होगी. ठीक वैसे ही राजधानी जयपुर के मालवीय नगर कुंडा कच्ची बस्ती में भी 12 से 13 बच्चें ऐसे हैं, जो फर्स्ट ईयर में है और आरएएस की तैयारी कर रहे हैं. ये वो बच्चें है जो कच्ची बस्ती में अपने अभिभावकों के साथ रहते हैं और जिनकी शिक्षा भी कच्ची बस्ती की छतर पाठशाला में हुई है. इतना ही नहीं ये सभी बच्चें आरएएस की तैयारी करने के साथ ही कक्षा पहली से लेकर 10वीं तक के स्टूडेंट्स को छतर पाठशाला में पढ़ाते भी हैं. आज राष्ट्रीय बाल दिवस के मौके पर बच्चों से जुड़ी एक रिपोर्ट...

teaching poor students for free in jaipur, जयपुर में गरीब बच्चों को शिक्षा
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Published : Nov 14, 2019, 5:03 PM IST

जयपुर. सभी बच्चों के सपने होते है कि वे नामी गिरामी स्कूल में पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजिनियर, आरएएस बने. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी कच्ची बस्ती के बच्चों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके माता पिता ने कभी पढ़ाई का सपोर्ट नहीं किया. लेकिन बच्चों में पढ़ाई की ललक इतनी थी कि वे इस पाठशाला में पढ़ने आ गए. इस पाठशाला की शुरुआत साल 2006 से सुनीता यादव नाम की महिला ने की थी. उस समय सुनीता खुद 7वीं कक्षा की स्टूडेंट थीं. सुनीता खुद कच्ची बस्ती में पली बढ़ी हैं. तब से सुनीता का सपना था कि वे भी बच्चों को पढ़ाए लिखाएं. सुनीता और पुलिस के पद से वीआरएस लेने वाले गोपाल सिंह ने मिलकर कच्ची बस्ती के बच्चों को घर-घर से निकालकर पढ़ना सिखाया और आज उन बच्चों का हुनर देखकर आप भी दंग रह जाएंगे कि यह बच्चे कच्ची बस्ती में पढ़े हैं.

बच्चें खुद बने शिक्षक, कच्ची बस्ती के बच्चों को दे रहे शिक्षा

छतर पाठशाला में कक्षा पहली से 10वीं तक चलती है और कक्षा 11वीं और 12वीं के लिए बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया जाता है. वहीं पहली कक्षा से 10वीं कक्षा को पढ़ाने वाले भी खुद स्टूडेंट्स हैं, जो आरएएस की तैयारी कर रहे हैं. इतना ही नहीं कच्ची बस्ती में चल रही छतर पाठशाला से एक बच्ची जेईई में भी सेलेक्ट हो गई है और एक स्टूडेंट्स नामी कॉलेज से होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहा है.

यह भी पढ़ेंः स्पेशल स्टोरी: मासूम चेहरों पर खिलौनों से खिलखिलाहट, 'संदीप और स्वाति' ने गरीब बच्चों की मुस्कुराहट को बना लिया Mission

ईटीवी भारत ने जब इन बच्चों से पूछा कि आप आरएएस बनकर क्या करोगे तो सबकी जुबां पर एक ही सवाल था कि आरएएस इसलिए बनना है ताकि हम हमारे जैसे गरीब बच्चों को एक अच्छी शिक्षा प्रदान करा सके. साथ ही कच्ची बस्ती और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए काम करे सकें और उनके लिए प्रेरणा बन सकें. वहीं समाज में भ्रष्टाचार को भी खत्म कर सकें.

इन बच्चों के सपनों को पंख लगा रहीं हैं सुनीता यादव और गोपाल सिंह. दोनों का सपना है कि इन टैलेंटेड बच्चों को आरएएस बनाना, जिसके चलते ये बच्चों को निशुल्क कोचिंग दे रहे हैं. साथ ही यहां पर कोचिंग देने आ रहे शिक्षक भी निस्वार्थ सेवा भाव से बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. ये बच्चे सुबह साढ़े सात बजे से दोपहर साढ़े बारह बजे तक छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं और 2 से 6 बजे तक आरएएस की कोचिंग लेते हैं.

जयपुर. सभी बच्चों के सपने होते है कि वे नामी गिरामी स्कूल में पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजिनियर, आरएएस बने. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी कच्ची बस्ती के बच्चों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके माता पिता ने कभी पढ़ाई का सपोर्ट नहीं किया. लेकिन बच्चों में पढ़ाई की ललक इतनी थी कि वे इस पाठशाला में पढ़ने आ गए. इस पाठशाला की शुरुआत साल 2006 से सुनीता यादव नाम की महिला ने की थी. उस समय सुनीता खुद 7वीं कक्षा की स्टूडेंट थीं. सुनीता खुद कच्ची बस्ती में पली बढ़ी हैं. तब से सुनीता का सपना था कि वे भी बच्चों को पढ़ाए लिखाएं. सुनीता और पुलिस के पद से वीआरएस लेने वाले गोपाल सिंह ने मिलकर कच्ची बस्ती के बच्चों को घर-घर से निकालकर पढ़ना सिखाया और आज उन बच्चों का हुनर देखकर आप भी दंग रह जाएंगे कि यह बच्चे कच्ची बस्ती में पढ़े हैं.

बच्चें खुद बने शिक्षक, कच्ची बस्ती के बच्चों को दे रहे शिक्षा

छतर पाठशाला में कक्षा पहली से 10वीं तक चलती है और कक्षा 11वीं और 12वीं के लिए बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया जाता है. वहीं पहली कक्षा से 10वीं कक्षा को पढ़ाने वाले भी खुद स्टूडेंट्स हैं, जो आरएएस की तैयारी कर रहे हैं. इतना ही नहीं कच्ची बस्ती में चल रही छतर पाठशाला से एक बच्ची जेईई में भी सेलेक्ट हो गई है और एक स्टूडेंट्स नामी कॉलेज से होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहा है.

यह भी पढ़ेंः स्पेशल स्टोरी: मासूम चेहरों पर खिलौनों से खिलखिलाहट, 'संदीप और स्वाति' ने गरीब बच्चों की मुस्कुराहट को बना लिया Mission

ईटीवी भारत ने जब इन बच्चों से पूछा कि आप आरएएस बनकर क्या करोगे तो सबकी जुबां पर एक ही सवाल था कि आरएएस इसलिए बनना है ताकि हम हमारे जैसे गरीब बच्चों को एक अच्छी शिक्षा प्रदान करा सके. साथ ही कच्ची बस्ती और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए काम करे सकें और उनके लिए प्रेरणा बन सकें. वहीं समाज में भ्रष्टाचार को भी खत्म कर सकें.

इन बच्चों के सपनों को पंख लगा रहीं हैं सुनीता यादव और गोपाल सिंह. दोनों का सपना है कि इन टैलेंटेड बच्चों को आरएएस बनाना, जिसके चलते ये बच्चों को निशुल्क कोचिंग दे रहे हैं. साथ ही यहां पर कोचिंग देने आ रहे शिक्षक भी निस्वार्थ सेवा भाव से बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. ये बच्चे सुबह साढ़े सात बजे से दोपहर साढ़े बारह बजे तक छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं और 2 से 6 बजे तक आरएएस की कोचिंग लेते हैं.

Intro:नोट- इसका वॉइस ओवर डेस्क करे। ये स्पेशल स्टोरी है।

जयपुर- फ़िल्म सुपर-30 तो आप सभी ने देखी ही होगी ठीक वैसे ही राजधानी जयपुर के मालवीय नगर कुंडा कच्ची बस्ती में भी 12 से 13 बच्चें ऐसे है जो फर्स्ट ईयर में है और आरएएस की तैयारी कर रहे है। ये वो बच्चें है जो कच्ची बस्ती में अपने अभिभावको के साथ रहते है और जिनकी शिक्षा भी कच्ची बस्ती की छतर पाठशाला में हुई है। इतना ही नहीं ये सभी बच्चें आरएएस की तैयारी करने के साथ ही कक्षा पहली से लेकर 10वीं तक के स्टूडेंट्स को छतर पाठशाला में पढ़ाते भी है। आज राष्ट्रीय बाल दिवस के मौके पर बच्चों से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश करने जा रहे है।

सभी बच्चों के सपने होते है कि वे नामी गिरामी स्कूल में पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजिनीरयर, आरएएस बने लेकिन आज हम आपको एक ऐसी कच्ची बस्ती के बच्चों के बारे में बताने जा रहे है जिनके माता पिता ने कभी पढ़ाई का सपोर्ट नहीं किया लेकिन बच्चों में पढ़ाई की ललक इतनी थी कि वे इस पाठशाला में पढ़ने आ गए। इस पाठशाला की शुरुवात 2006 से सुनीता यादव नाम की महिला ने की। उस समय सुनीता खुद 7वीं कक्षा की स्टूडेंट थी। सुनीता खुद कच्ची बस्ती में पली बढ़ी है। तब से सुनीता का सपना था कि वे भी बच्चों को पढ़ाए लिखाएं। सुनीता और पुलिस के पद से वीआरएस लेने वाले गोपाल सिंह ने मिलकर कच्ची बस्ती के बच्चों को घर घर से निकालकर पढ़ाना सिखाया और आज उन बच्चों का हुनर देख कर आप भी दंग रह जाएंगे कि यह बच्चे कच्ची बस्ती में पढ़े है।

छतर पाठशाला में कक्षा पहली से 10वीं तक चलती है और कक्षा 11वीं और 12वीं के लिए बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया जाता है। वही पहली कक्षा से 10वीं कक्षा को पढ़ाने वाले भी खुद स्टूडेंट्स है, जो हालही में आरएएस की तैयारी कर रहे है। इतना ही नहीं कच्ची बस्ती में चल रही छतर पाठशाला से एक बच्ची जेईई में भी सेलेक्ट हो गयी है और एक स्टूडेंट्स नामी कॉलेज से होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहा है। ईटीवी भारत ने जब इन बच्चों से पूछा कि आप आरएएस बनकर क्या करोगें तो सबकी जुबां पर एक ही सवाल था कि आरएएस इसलिए बनना है ताकि हम हमारे जैसे गरीब बच्चों को एक अच्छी शिक्षा प्रदान करा सके साथ ही कच्ची बस्ती और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए काम करे सके और उनके लिए प्रेरणा बन सके। वही समाज में भ्रष्टाचार को भी खत्म कर सकें।


Body:इन बच्चों के सपनों को पंख लगा रहे है सुनीता यादव और गोपाल सिंह। दोनो का ही सपना है कि इन टैलेंटेड बच्चो को आरएएस बनाना जिसके चलते ये बच्चों को निशुल्क कोचिंग दे रहे है साथ ही यहां पर कोचिंग देने आ रहे शिक्षक भी निस्वार्थ सेवा भाव से बच्चों को शिक्षा दे रहे है। ये बच्चे सुबह 7 .30 बजे से 12.30 बजे तक छोटे बच्चों को पढ़ाते है और 2 से 6 बजे तक आरएएस की कोचिंग लेते है।

बाईट- स्टूडेंट्स की बाईट
बाईट- गोपाल सिंह, शिक्षक


Conclusion:
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