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कम किया जा सकता है शिशुओं की मौत का आंकड़ा, करने होंगे ये प्रयास : सामाजिक कार्यकर्ता

राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में लगातार हो रही नवजात बच्चों की मौत पर जहां सियासत में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है वहीं चिकित्सा क्षेत्र में काम करने वाले संस्थानों ने इस सियासत को बचाव का जरिया माना है.

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kota JK lone infants death
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Published : Jan 4, 2020, 9:21 PM IST

जयपुर. प्रदेश में नवजात शिशुओं की मौत को लेकर सियासत चरम पर है. विपक्ष पुरी तरह से सत्ता पक्ष का घेराव कर रहा है. वहीं, ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर प्रयासों की कमी के चलते आए दिन नवजात शिशु मौत के आगोश में समा रहे हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता छाया पंचोली का इंटरव्यू, पार्ट-1

स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले स्वयं सहायता संस्थानों के मुताबिक सरकारों का काम आंकड़ों की उलझन से परे समस्या के हल पर होना चाहिए. चाहे कोटा हो या फिर जोधपुर या प्राथमिक चिकित्सा केंद्र वहां बुनियादी सुविधाओं में बढ़ोतरी के साथ-साथ सरकार को लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति जागरूक भी करना चाहिए लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा है.

पढे़ंः पायलट ने सही कहा, सरकार ले जिम्मेदारी, देखें पूर्व चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र राठौड़ का Exclusive Interview

ईटीवी भारत ने शिशुओं की मौत के बढ़ते आंकड़ों के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाली संस्था प्रयास की निदेशक छाया पंचोली से बातचीत की और उनसे जाना कि कैसे प्रदेश में शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों को कम किया जा सकता है.

सामाजिक कार्यकर्ता छाया पंचोली का इंटरव्यू, पार्ट-2

संसाधनों से परे इस समस्या में क्या बड़े कारण नजर आते हैं और इनका समाधान किस उपाय से किया जा सकता है इस पर छाया का कहना था कि सरकार को योजना लाने के साथ-साथ योजना के प्रति लोगों में जागरूकता लाने का काम भी करना चाहिए मसलन प्रसूता और गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी कई मर्तबा नहीं हो पाती.

पढे़ंः Exclusive: JK लोन अस्पताल के लिए जारी पैसा अस्पताल तक पहुंचा ही नहीं: चिकित्सा मंत्री

उन्होंने कहा खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की भारी कमी के कारण समय से पहले प्रसव और कम भजन के नवजात ही गंभीर रूप से बीमार होते हैं. ऐसे में अगर प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और आंगनबाड़ी पर गर्भवती और प्रसूताओं का ठीक से मार्गदर्शन किया जाए. क्षेत्र में ऐसी महिलाओं की जानकारी जुटाने का काम व्यवस्थित रूप से अगर किया जाए तो फिर मौतों के बढ़ते आंकड़े को कम किया जा सकता है.

जयपुर. प्रदेश में नवजात शिशुओं की मौत को लेकर सियासत चरम पर है. विपक्ष पुरी तरह से सत्ता पक्ष का घेराव कर रहा है. वहीं, ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर प्रयासों की कमी के चलते आए दिन नवजात शिशु मौत के आगोश में समा रहे हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता छाया पंचोली का इंटरव्यू, पार्ट-1

स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले स्वयं सहायता संस्थानों के मुताबिक सरकारों का काम आंकड़ों की उलझन से परे समस्या के हल पर होना चाहिए. चाहे कोटा हो या फिर जोधपुर या प्राथमिक चिकित्सा केंद्र वहां बुनियादी सुविधाओं में बढ़ोतरी के साथ-साथ सरकार को लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति जागरूक भी करना चाहिए लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा है.

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संसाधनों से परे इस समस्या में क्या बड़े कारण नजर आते हैं और इनका समाधान किस उपाय से किया जा सकता है इस पर छाया का कहना था कि सरकार को योजना लाने के साथ-साथ योजना के प्रति लोगों में जागरूकता लाने का काम भी करना चाहिए मसलन प्रसूता और गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी कई मर्तबा नहीं हो पाती.

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उन्होंने कहा खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की भारी कमी के कारण समय से पहले प्रसव और कम भजन के नवजात ही गंभीर रूप से बीमार होते हैं. ऐसे में अगर प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और आंगनबाड़ी पर गर्भवती और प्रसूताओं का ठीक से मार्गदर्शन किया जाए. क्षेत्र में ऐसी महिलाओं की जानकारी जुटाने का काम व्यवस्थित रूप से अगर किया जाए तो फिर मौतों के बढ़ते आंकड़े को कम किया जा सकता है.

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