जयपुर. प्रदेश में नवजात शिशुओं की मौत को लेकर सियासत चरम पर है. विपक्ष पुरी तरह से सत्ता पक्ष का घेराव कर रहा है. वहीं, ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर प्रयासों की कमी के चलते आए दिन नवजात शिशु मौत के आगोश में समा रहे हैं.
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले स्वयं सहायता संस्थानों के मुताबिक सरकारों का काम आंकड़ों की उलझन से परे समस्या के हल पर होना चाहिए. चाहे कोटा हो या फिर जोधपुर या प्राथमिक चिकित्सा केंद्र वहां बुनियादी सुविधाओं में बढ़ोतरी के साथ-साथ सरकार को लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति जागरूक भी करना चाहिए लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा है.
ईटीवी भारत ने शिशुओं की मौत के बढ़ते आंकड़ों के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाली संस्था प्रयास की निदेशक छाया पंचोली से बातचीत की और उनसे जाना कि कैसे प्रदेश में शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों को कम किया जा सकता है.
संसाधनों से परे इस समस्या में क्या बड़े कारण नजर आते हैं और इनका समाधान किस उपाय से किया जा सकता है इस पर छाया का कहना था कि सरकार को योजना लाने के साथ-साथ योजना के प्रति लोगों में जागरूकता लाने का काम भी करना चाहिए मसलन प्रसूता और गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी कई मर्तबा नहीं हो पाती.
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उन्होंने कहा खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की भारी कमी के कारण समय से पहले प्रसव और कम भजन के नवजात ही गंभीर रूप से बीमार होते हैं. ऐसे में अगर प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और आंगनबाड़ी पर गर्भवती और प्रसूताओं का ठीक से मार्गदर्शन किया जाए. क्षेत्र में ऐसी महिलाओं की जानकारी जुटाने का काम व्यवस्थित रूप से अगर किया जाए तो फिर मौतों के बढ़ते आंकड़े को कम किया जा सकता है.