जयपुर. अकसर सरकार बदलने के साथ योजनाएं बदल जाती है और इसके पीछे का मकसद पॉलिटिकल माइलेज होता है. परेशानी तब बढ़ती है जब सामाजिक सुधार से जुड़ी योजनाओं पर ब्रेक लग जाता है इससे सोसाइटी पर नेगेटिव इम्पेक्ट पड़ता है. कुछ ऐसा ही कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ चली मुहिम के साथ हुआ (Rajasthan in female foeticide). वसुंधरा सरकार ने बेटियों को कोख में मारने वाले डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई के तहत लगातार डिकॉय ऑपरेशन चलाए लेकिन सरकार बदलने के साथ इस अभियान पर भी ब्रेक लग गया . अफसर बदले तो योजना पर काम भी नहीं हुआ.
हालत ये है कि 2015 से 2018 तक जहां 142 से ज्यादा डिकॉय ऑपरेशन हुए वहीं वर्तमान सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद (2018 के बाद से) अब तक महज 24 डिकॉय ऑपरेशन हुए हैं. इसका नकारात्मक असर भी दिखने लगा है (Decoy operation of Rajasthan). पहले प्रति एक हजार लड़कों पर 947 लड़कियां थीं तो ये अब एक अंक नीचे चला गया है यानी एक हजार लड़कों के मुकाबले अब लड़कियों की तादाद 946 पर पहुंच गई है (Sex Ratio In Rajasthan).
जागरूकता का सहारा: कन्या भ्रूण हत्या को लेकर लम्बे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता राजन चौधरी ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या महिला की गरिमा के लिए एक अभिशाप है. जिस दिन हमारा समाज बेटियों की अहमियत को समझने में कामयाब होगा, उस दिन कन्या भ्रूण हत्या पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सकती है. इसके लिए समाज के हर व्यक्ति को जागरूक होने के साथ ही दूसरों को भी सजग करने की आवश्यकता है.वर्तमान में बेटियां किसी से कम नहीं हैं. वह हर क्षेत्र में परचम लहरा कर देश के विकास में अपना सहयोग कर रही हैं.
कानून तो है लेकिन...: सरकार ने समाज में हर बुराइयों को रोकने के लिए कानून तो बनाए हैं, लेकिन चोरी छिपे अभी कई लोग भ्रूण परीक्षण के अपराध को अंजाम दे रहे हैं. कन्या भ्रूण हत्या पर पूरी तरह से रोक लगाया जाना अनिवार्य है. इसके लिए सरकार को जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है. राजन कहते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या को लड़कों के मुकाबले लड़कियों की घटती संख्या की मुख्य वजह माना जाता है. यही वजह है कि जन्म से पूर्व लिंग की जांच पर न केवल प्रतिबंध है, बल्कि इसके खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान भी किया गया है.
ये सोच की बात है: चौधरी बेहद गंभीर और संवेदनशील सवाल करते हैं. पूछते हैं- प्रतिबंध के प्रावधान हैं लेकिन क्या इससे देश में कन्या भ्रूण हत्या बंद हो गई है? इसका स्पष्ट जवाब नहीं है. आगे कहते हैं- पिछले कुछ सालों में समाज की सोच में बदलाव तो आया है, लेकिन अभी भी मुझे लगता है पांच दशक से ज्यादा का वक्त लगेगा , जब हम इस जेंडर गैप को कम कर पाएंगे. सालों से हमारी मानसिकता पुरुष प्रधान समाज की रही है. आज भी कई सामाजिक रीति रिवाज पुरुषों के लिए बने हैं.
कम नहीं हो रहे आंकड़े: राजन चौधरी कहते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या या बच्चों को लावारिस फेंकने के मामलों में वृद्धि इस लिए देखी जा सकती है कि क्योंकि अभी समाज की मानसिकता पुरुष प्रधान है. कोरोना काल में लोग घरों में थे तो प्रेगनेंसी भी सामान्य की तुलना में ज्यादा हुई. इसमें कई बच्चे अनचाहे थे. जिसकी वजह से बच्चों को लावारिस छोड़ा गया, कन्या भ्रूण हत्या कराई गई. यह सही है कि लाख प्रयासों के बावजूद भी हम बेटियों को जन्म लेने से पहले होने वाले क़त्ल को रोक नहीं पा रहे हैं. राजन कहते है कि 2014 से 2018 तक राजस्थान में सरकार के निर्देश पर बड़ी संख्या में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कार्रवाई की गई.
पीसीपीएनडीटी सेल और सामाजिक संगठनों के संयुक्त प्रयास से कई उन डॉक्टरों के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन हुए जो गैरकानूनी तरीके से लिंग जांच कर रहे थे , लेकिन 2018 के बाद से डिकॉय ऑपरेशन एक तरह से बंद हो गए. तीन साल में नाममात्र की कार्रवाई हुई. जबकि 2014 से 2018 के बीच में 142 से ज्यादा डिकॉय ऑपरेशन हुए. राजन कहते हैं कि जो पिछले सालों में डॉक्टरों में कानून का डर बना था वो कम हो गया है.
इसक बड़ा नेगिटिव परिणाम ये सामने आया कि जो एक हजार लड़कों पर 947 लड़कियों का आंकड़ा था वो एक अंक नीचे चला गया. आकंड़ा एक हजार लड़कों पर 946 तक पहुंच गया. आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2015 में 15, वर्ष 2016 में 29 ,वर्ष 2017 में 46 , वर्ष 2018 में 52 ,वर्ष 2019 में 15 , वर्ष 2020 में एक भी कार्रवाई नहीं हुई. वर्ष 2021 में 06 , वर्ष 2022 में 03 डिकॉय ऑपरेशन हुए. खास बात ये है कि सरकार बदलने के बाद बाहरी राज्यों में कोई डिकॉय ऑपरेशन ही नहीं हुआ.
शिक्षित जिलों में ज्यादा अंतर: राजन चौधरी कहते हैं कि आज भी राजस्थान में पुरुष मानसिकता कम नहीं हो रही है. ख़ास कर उन जिलों में जहां शिक्षा का स्तर ज्यादा अच्छा है. जयपुर , शेखावाटी , कोटा , अजमेर ये वो जिले हैं जहां लड़के और लड़कियों के जन्म दर में बड़ा अंतर है. जबकि बांसवाड़ा ऐसा जिला है जहां एक हजार लड़कों पर एक हजार पांच लड़कियां जन्म ले रही हैं. जिन जिलों में शिक्षा स्तर बड़ा है वहां संसाधनों की जानकारी भी बड़ी है. इस वजह से वो आसानी से कन्या भ्रूण हत्या जैसे काम को अंजाम दे देते हैं. राजन कहते हैं कि रिसर्च में ये भी सामने आया है कि बेटे की चाह में महिला के स्वास्थ्य को भी दांव पर लगा दिया जाता है. आज भी जिस महिला के चार से पांच बच्चे हो गए और लड़का नहीं हुआ तो वो बच्चे को जन्म देती रहती है. हम जब तक इस मानसिकता को नहीं बदल लेते तब तक Gender Equality की बात करना बेमानी है.
क्या कहती हैं 'जिम्मेदार': आंकड़े सच्चाई बयान करते हैं लेकिन मंत्री इसे अपनी तरह से परिभाषित करती हैं. डिकॉय ऑपरेशन को लेकर जब महिला एवं बाल विकास मंत्री ममता भूपेश से बात की तो उन्होंने कहा कि प्रदेश की गहलोत सरकार बालिकाओं को लेकर गंभीर है. दावा करती हैं कि जब भी किसी तरह की शिकायत आती है तो उसमें कार्रवाई की जाती है. कहती हैं कि चूंकि डॉक्टरों में अब कानून का डर बन गया है इसलिए ज्यादा शिकायतें नहीं आ रही हैं. फिर अपनी सरकार के प्रयासों पर पीठ थपथपा कर कहती हैं- राजस्थान में किस तरह से बेटियों को अधिक से अधिक मान सम्मान मिले उसके अधिकारों का हनन न हो इसको लेकर लगातार सरकार की ओर से प्रयास जारी हैं .