जयपुर. केंद्र सरकार के 'एक राष्ट्र एक बाजार' संबंधी अध्यादेश को लेकर सियासत गरम है. इस संबंध में हाल ही में आए कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी के वक्तव्य पर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने सवाल खड़े किए हैं. जाट ने मौजूदा अध्यादेश को किसान विरोधी बताया और यह भी कहा कि इस अध्यादेश से किसानों को 60 साल पीछे धकेला जा रहा है.
रामपाल जाट ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम से ही किसानों को उनकी उपज का उचित दाम और लूट से मुक्ति दिलाने के लिए कृषि उपज मंडी संबंधी कानून बनाए गए. स्वतंत्रता के बाद साल 1961 में कृषि उपज मंडी संबंधित कानून किसानों की सुरक्षा कवच के रूप में थे. इसके लागू होने से तोल-मोल-बोल संबंधित उत्पन्न दोषों को संशोधित करने के लिए देश के किसानों ने निरंतर सरकार से आग्रह किया. इसी कानून का प्रभाव था कि देश में छोटे-छोटे व्यापारियों की श्रृंखला बनी और अब इस संख्या को समाप्त कर बड़े पूंजीपतियों को कृषि उद्योग के व्यापार में एकाधिकार सौंपना और किसानों को उनकी उपजों के वर्तमान में प्राप्त हो रहे दामों से वंचित करना है.
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जाट ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के द्वारा भंडारण की सीमा समाप्त करना बड़े पूंजीपतियों के लिए व्यापार में एकाधिकार का मार्ग प्रशस्त करेगा. इससे उत्पादक और उपभोक्ता दोनों की जेबों पर डाका डालना सरल हो जाएगा. इसलिए कृषि राज्य मंत्री ने इस संशोधन से किसानों के नाम की चर्चा ही नहीं की, बल्कि व्यापारियों के लाभों को प्रमुख बताया है. रामपाल जाट ने भारत सरकार को देश के किसानों की सीमा पर बहस के लिए खुली चुनौती भी दी है.
उन्होंने कहा कि यदि कृषि राज्यमंत्री कि बात सही निकलेगी तो देश के किसान उसे स्वीकार करेगा. लेकिन इस प्रकार के मंतव्य भारत सरकार को भी प्रकट करना चाहिए. जाट ने कहा कि कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य अध्यादेश 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान समझौता अध्यादेश 2020 किसान विरोधी है और पूंजीपतियों को पोषित करने वाला है.