जयपुर. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर चाइल्ड राइट्स पर काम करने वाली लता सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. लता सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग मामलों में दिशा निर्देश हुए हैं, लेकिन जिम्मेदार अफसरों खास कर पुलिस को इस बात की जानकारी नहीं कि उन्हें क्या करना चाहिए. उन्हें लगता है कि वो सब कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.
आज भी नहीं मिल रहे अधिकार...
लता सिंह ने बताया कि हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की सुरक्षा, उनके अधिकारों की बात करते हैं, लेकिन आज भी समाज में उन्हें यह अधिकार नहीं दिये जाते. उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता है कि 16 साल पहले जो स्थितियां थी, उसमें आज के परिवेश में कोई खास बदलाव हुआ है. बात सिर्फ युवा वर्ग की नहीं, बल्कि जो अधिकारी है, वह भी नियम से अवगत नहीं है. इसलिए परिस्थियों में कोई बदलाव नहीं है. हनुमानगढ़ में एक मासूम को जिंदा जला दिया जाता है. दौसा में एक पिता सामाजिक सम्मान के लिए अपनी बेटी को मौत के घाट उतार देता है. यह कोई पहली दूसरी घटना नहीं है. लेकिन, कानून की पूरी जानकारी और उसके सही उपयोग नहीं होने की वजह से बेटियों पर इस तरह के जुल्म होते हैं. एक तरफ हम महिला सशक्तिकरण और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात करते हैं, लेकिन इन बच्चियों या महिलाओं को उनके अधिकार ही नहीं मिल पाते.
पुलिस भी नियम से अवगत नहीं...
उन्होंने बताया, मेरा जो केस था उस पर पुलिस को निर्देश दिए गए थे कि कोई भी लड़का-लड़की बालिग है 18 और 21 साल से ऊपर है और अगर वह अपनी मर्जी से शादी करते हैं, तो पुलिस उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती. किसी परिजन की तरफ से भी, लेकिन अभी भी ऐसा नहीं होता है. अभी भी कई बार कि कभी लड़की की तरफ से कभी या फिर लड़के की तरफ से जो प्रभावशाली होते हैं, वो मुकदमा दर्ज करा देते हैं और उसमें परिवार को प्रताड़ित किया जाता है. पुलिस को यह पता नहीं होता है कि हम इस धाराओं में मुकदमा दर्ज नहीं कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था अहम फैसला...
उन्होंने बताया, मैं एक राजपूत परिवार से हूं. अपनी शादी की अंतर्जातीय विवाह किया, जो आज भी समाज में मान्य नहीं है. अंतर्जातीय धार्मिक और समाज मान्यता नहीं देता. जिस गुप्ता परिवार में मेरी शादी हुई, उसमें 27 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. मुकदमा भी अपहरण, बलात्कार जैसे गंभीर आरोपों में. जबकि, हमारा संविधान हमें राइट टू चॉइस का अधिकार देता है, तो फिर पुलिस इस तरह से बेड़ियां कैसे डाल सकती है. इसके बाद मुझे लगा कि मुझे समाज के लिए काम करना है. जिस तरह की समस्याओं को कानूनी पेचीदगियों को मैंने देखा, उन्हें और प्रेमी जोड़े नहीं देखे. इसलिए में सुप्रीम कोर्ट तक अपने केस को लेकर गई. लता सिंह बताती हैं, जब हम सुनवाई के लिए कोर्ट जाते थे, तब हमें यह पता नहीं होता था कि वापस जिंदा आएंगे या नहीं. कई बार हमले भी हुए. सुप्रीम कोर्ट से जब हमारे पक्ष में फैसला हुआ और इसको लेकर रूलिंग बनी. तब हम इस बात को लेकर खुश थे कि आगे और कोई लता सिंह अपने राइट टू चॉइस के अधिकारों के लिए परेशान नहीं होगी. लेकिन, आज भी इस कानून को लेकर जानकारी नहीं होने की वजह से प्रेमी जोड़ों को इस तरह के मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है.
सामाजिक क्षेत्र में किया काम...
लता सिंह लंबे ने समय तक कानूनी लड़ाई के बीच बच्चों के अधिकारों और उनके संरक्षण को लेकर भी काम किया. लता सिंह बताती हैं कि रेलवे स्टेशन पर जो बच्चे कचरा बीनने का काम करते हैं, यह सब वो बच्चे हैं, जो किसी ना परिस्थिति की वजह से घर से निकले हुए हैं. यह बच्चे यहां पर कचरा बीनने से मिलने वाले पैसे से नशे की लत में पड़ जाते हैं. लता सिंह इन बच्चों का काउंसलिंग के साथ-साथ इन्हें शिक्षा से भी जोड़ने का काम कर रही है. लता सिंह ने बच्चों और बच्चियों बाल श्रम से मुक्त करने को लेकर भी अभियान के रूप में काम किया. उन्होंने 2013 में जयपुर में एक पादरी के यहां पर 32 लड़कियां को आजाद कराया. जिन्हें अवैध रूप से कैद करके रखा हुआ था, उन बच्चियों की उम्र महज 12 से 16 साल की थी, हालत यह थे की इन छोटी छोटी बच्चियों के साथ शारीरिक शोषण किया जा रहा था. यह सब बच्चियां दूसरे राज्य से शिक्षा के नाम पर लाई हुई थी. इस केस में लता सिंह एक शिकायकर्ता है, लेकिन कई बार गवाही देने में एक तारीख भी चूक जाती है, तो गिरफ्तारी वारंट आ जाता है. लता सिंह कहती हैं, यह दुर्भाग्य है कि इस तरह शिकायत कर्ता को ही गिरफ्तारी वारंट से तामील होना पड़ता है.
कानूनी जानकारी देना जरुरी...
लता सिंह कहती हैं, मुझे लगता है कि युवा वर्ग को जागरूक करने के साथ जरुरी है कि हम जिम्मेदार अधिकारीयों और कर्मचारियों को भी इसकी जानकारी दें. लता सिंह की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में वो ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जो आज भी नजीर के रूप में पेश किया जाता है. लता सिंह बनाम केंद्र सरकार, निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह नजीर हर उस केस में दी जाती है, जिसमें समाज और परिवार प्यार पर पहरा लगाना चाहता है. लता सिंह जिसने 6 साल से भी ज्यादा कानूनी संघर्ष के बीच सरकार को प्रेमी जोड़ों के लिए बने कानून में संशोधन कराया, जिसका फायदा आज लाखों लवर्स को मिल रहा है.