जयपुर. राजस्थान में उपचुनाव के रण में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है लेकिन कभी भाजपा की सहयोगी रही आरएलपी भी इस बार चुनाव मैदान में है. जिससे उपचुनाव काफी रोचक होने के आसार है. देखिये ये रिपोर्ट ...
हालांकि भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद हुए विभिन्न चुनाव के परिणाम बताते हैं कि आरएलपी ज्यादा सियासी जादू नहीं चला पाई. अब बात निकाय या पंचायत राज चुनाव की नहीं बल्कि विधानसभा उपचुनाव की है. लिहाजा इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं.
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प्रदेश की 4 में से 3 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राजनीतिक दलों ने अपनी दौड़ भाग शुरू कर दी है. न केवल सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा, बल्कि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार भी चुनाव में ताल ठोंकते नजर आएंगे.
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आरएलपी ने केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ ही केंद्र में एनडीए और भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ा था और आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल खुद जाट समाज के दिग्गज नेता माने जाते हैं. ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में योग चुनाव हो रहे हैं वहां के जाट मतदाताओं और किसान वोटरों को हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी जरूर प्रभावित करेगी.
ऐसे भी हनुमान बेनीवाल इन उपचुनाव में जिन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएंगे उनमें बेरोजगारी केंद्रीय कृषि कानून प्रमुख हैं जो सीधे तौर पर युवा बेरोजगारों और किसानों को उनकी पार्टी से जोड़ेंगे.
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प्रदेश के सुजानगढ़, सहाड़ा और राजसमंद विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है. जातिगत आधार पर मतदाताओं की संख्या पर दृष्टि डालें तो सुजानगढ़ में करीब 2 लाख 74 हजार मतदाताओं में से 63000 जाट समाज से ताल्लुक रखते हैं. सहाड़ा विधानसभा क्षेत्र में करीब 30,000 जाट मतदाता होने की बात सामने आ रही है. राजसमंद विधानसभा सीट पर कुल 221610 सर्वाधिक राजपूत समाज से हैं. यहां जाट समाज के मतदाताओं का बोलबाला नहीं है.
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मतलब हनुमान बेनीवाल की पार्टी सुजानगढ़ और सहाड़ा में अपना कुछ असर हो सकती है. पिछले चुनाव की बात की जाए तो आरएलपी का परिणाम बताता है कि भाजपा से अलग होने के बाद चुनाव मैदान में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. पंचायत राज चुनाव में भाजपा से अलग होकर आरएलपी का प्रभाव में ज्यादा दमदार नहीं रहा.
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वहीं 20 जिलों के 90 नगर निकायों में 3035 सीटों पर हुए चुनाव में से महज 13 वार्डों में ही आरएलपी जीत दर्ज कर पाई. अब इन दोनों चुनाव से बड़े चुनाव यानी विधानसभा उपचुनाव है. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया कहते हैं तीसरे मोर्चे का उपचुनाव पर बहुत ज्यादा असर पड़ने की स्थिति राजस्थान में कभी नहीं है. यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में ही होगा.
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कटारिया इस बात से भी इनकार नहीं करते कि आरएलपी का बिल्कुल भी असर नहीं पड़ेगा. कटारिया की मानें तो प्रत्याशी उतारे जाने के बाद ही यह तय हो पाएगा कि मौजूदा प्रत्याशी बीजेपी को नुकसान पहुंचाया या फिर कांग्रेस को. मतलब साफ है कि भाजपा की निगाहें अपने पूर्व सहयोगी रहे आरएलपी के चुनाव मैदान में उतारे जाने वाले प्रत्याशियों पर है. यही स्थिति कांग्रेस की भी है.