जयपुर. कोरोना संक्रमण के इस दौर में 5 से 11 साल तक के बच्चों में तनाव बढ़ा है. बच्चे महामारी से पहले भी दुर्व्यवहार, खानपान संबंधी और अन्य मानसिक समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन अब उन्हें किसी करीबी को खोने, स्कूल नहीं जा पाने और दोस्तों से नहीं मिल पाने जैसे तनाव हैं.
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एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसको गंभीरता से लेना चाहिए. एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 से 25 फीसदी बच्चे इस तरह के तनाव से गुजर रहे हैं, जिसकी वजह से परिजनों की काउंसलर और डॉक्टर्स के पास विजिट बढ़ी है. एक्सपर्ट कहते हैं कि अवसाद से जूझ रहे बच्चे को एहसास कराएं कि वे अकेले नहीं हैं. उनकी बातों को महत्व देने से तनाव कम होगा. बच्चों के साथ उनकी सोच के अनुसार पेरेंट्स को सोचने की जरूरत है.
इस्माइल संस्था की मुख्य कार्यकारी अधिकारी कामिनी शुक्ला ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि कोरोना के संक्रमण के दौरान पैरेंट्स की विजिट इसलिए ज्यादा बढ़ रही है क्योंकि बच्चों के सवभाव में तेजी से बदलाव आया है. कई बच्चों के पैरेंट्स के फोन आते हैं, जिनके बच्चे तनाव से ग्रसित हैं.
इसका प्रमुख कारण है कि बच्चे लंबे समय से घरों में बंद हैं, दोस्तों के साथ नहीं खेल पा रहे हैं, पढ़ाई में मन नहीं लगता है, वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और न ही बाजार जा पा रहे हैं. उनका कहना है कि खास तौर पर घर का माहौल उनके लिए निराशाजनक स्थिति को बढ़ावा देता है. ऐसी स्थिति में बच्चों को लगता है कि कोई हमारी बात सुनने वाला नहीं है.
कामिनी शुक्ला का कहना है कि ऐसे में परिजनों को बच्चों की बात सुननी चाहिए और कुछ न कुछ उसके लिए प्रयास करना चाहिए. उनका कहना है कि पैरेंट्स को लेकर हमने खुद संदेश तैयार किया है. परिजनों को बच्चों के साथ प्यार से बात करनी चाहिए और उसकी व्यवहार पर पैनी नजर रखने की भी जरूरत है. बच्चों को बिना बताए देखना चाहिए कि कहीं वे सुस्त तो नहीं हो रहे.
शुक्ला का कहना है कि ऐसे समय बच्चों को उनके दोस्तों से बातचीत करवानी चाहिए और किसी भी चीज को लेकर उन पर शक नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कई परिजन ऐसे होते हैं जो बच्चों पर बेवजह शक करते हैं. ऐसे परिजनों को चाहिए कि वे बच्चों पर शक न करें और उनकी पूरी बात सुनें.
कामिनी शुक्ला ने कहा कि ये बात सही है कि लॉकडाउन के कारण परिवारों पर आर्थिक संकट आया है और इसकी वजह से घरों में तनाव का माहौल भी है. लेकिन, इसके बाद भी पैरेंट्स को घर में ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बच्चों पर इसका असर न पड़े. बच्चों के सामने ऐसी कोई बात नहीं करनी चाहिए और लड़ाई-झगड़ा से भी बचना चाहिए. बच्चों के मनोरंजन के लिए कुछ न कुछ प्रयास करते रहना चाहिए और अगर जरूरत हो तो पैरेंट्स को बच्चों के साथ खेलकूद में भी भाग लेना चाहिए.
दरअसल, इन दिनों मानसिक अवसाद और चिंता से किशोर सबसे ज्यादा परेशान हैं. वे महामारी से पहले भी दुर्व्यवहार, खानपान संबंधी समस्या और अन्य मानसिक समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन अब उन्हें किसी करीबी को खोने और स्कूल व कॉलेजों में लौटने जैसा तनाव है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य आपातकालीन विभागों में 5 से 11 साल के बच्चों की विजिट पिछले साल के मुताबिक 20 से 25 फीसदी बढ़ गई है. बच्चे या किशोर किसी अवसाद या चिंता से जूझ रहे हो तो बात करना मुश्किल हो सकता है. अगर बच्चा कुछ नहीं करता है और उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा हो तो परिजनों को एक्सपर्ट से राय लेनी चाहिए.
इस्माइल संस्था की मुख्य कार्यकारी अधिकारी कामिनी शुक्ला का कहना है कि हमारे पास भी कई तरह के बच्चे आते हैं तो हम उनकी समस्या को जानते हैं और उसके बाद उसको हल करने का प्रयास करते हैं. इसके बाद हम बच्चों के साथ जुड़ जाते हैं. इस समय सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि बच्चों के साथ कुछ न कुछ क्रिएटिव एक्टिविटी करती रहनी चाहिए.
कामिनी शुक्ला का कहना है कि अगर ज्यादा जरूरत हो तो भरोसेमंद शिक्षक, डॉक्टर या बाल रोग विशेषज्ञ से चर्चा करनी चाहिए. ये लोग बच्चों को समस्या बताने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. उन्होंने कहा कि पैरेंट्स अपने बच्चे में इस तरह के मामलों को लेकर डॉक्टर के पास जाने से कतराते हैं. लेकिन, पैरेंट्स को यह समझने की जरूरत है कि उनकी यह लापरवाही बच्चों के लिए आगे जाकर बड़ा खतरा बन सकती है.
शुक्ला का कहना है कि इसके साथ जरूरत है कि सबसे पहले बच्चों की झिझक को दूर करना चाहिए क्योंकि बच्चों को अक्सर ऐसा लगता है कि वे अपनी भावनाएं साझा करेंगे तो कोई क्या सोचेगा या उनकी चिंताओं को वास्तविक नहीं मानेगा. उन्होंने कहा कि उनकी झिझक को दूर करना जरूरी है. जरूरत होने पर हेल्पलाइन काउंसलर की मदद लेनी चाहिए.