जयपुर. कोरोना महामारी के बीच फिलहाल 31 जुलाई तक स्कूल नहीं खोले जाएंगे. लेकिन स्कूल खुलने से पहले ही प्राइवेट स्कूल और अभिभावक आमने-सामने हो गए हैं. मामला फीस से जुड़ा है. ईटीवी भारत के पैनल डिस्कशन में फीस के बवाल पर चर्चा की गई. जिसमें स्कूल शिक्षा परिवार के अध्यक्ष अनिल शर्मा, पैरेंट्स वेलफेयर सोसाइटी के दिनेश कांवट, अभिभावकों की ओर से मनीषा शर्मा और प्री प्राइमरी स्कूलों का प्रतिनिधित्व करते हुए जुगनू शर्मा शामिल हुई.
इस दौरान प्राइवेट स्कूल संचालकों का तर्क है कि फीस स्कूलों के लिए उतनी ही जरूरी है, जितनी शरीर के लिए ऑक्सीजन. बिना फीस के स्कूलों को चलाना संभव नहीं है. फीस एकमात्र रेवेन्यू का साधन है, जिससे स्कूल का संचालन होने के साथ-साथ शिक्षकों का वेतन भी दिया जाता है. यही नहीं कुछ छोटे स्कूल जो किराए की बिल्डिंग में चल रहे हैं, उनके लिए तो फीस और भी जरूरी है.
फीस को लेकर जहां स्कूल संचालकों का अपना तर्क है. वहीं, अभिभावकों की माने तो अभी व्यापार और बाजार पटरी पर नहीं लौटा है. ऐसे में कई कंपनियां वेतन में भी कटौती कर रही हैं. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों को भी छात्रों के हित में और अभिभावकों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए विचार करना चाहिए. 3 महीने से स्कूलों का संचालन हो नहीं रहा और उपभोक्ता नियम कहता है कि उसी सर्विस का पैसा देय होगा, जो इस्तेमाल की जा रही है. ऐसी स्थिति में प्राइवेट स्कूल प्रशासन की ओर से मांगी जा रही फीस बेमानी है.
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हालांकि प्राइवेट स्कूल संचालकों ने ऑनलाइन क्लासेस और ई-लर्निंग का हवाला देकर छात्रों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होने का तर्क दिया. साथ ही फीस के माध्यम से स्कूली शिक्षकों की सैलरी का भुगतान करने का जिक्र करते हुए अपना पक्ष रखा. इस पर अभिभावकों ने कहा कि एक तरफ बच्चों को मोबाइल और टीवी से दूर रखा जाता है. दूसरी तरफ अब उन्हें ऑनलाइन क्लास के कारण मोबाइल हाथ में देना पड़ रहा है.
यही नहीं इस ऑनलाइन क्लास के हवाले जबरन फीस वसूली का गोरखधंधा भी चला रखा है. अभिभावकों ने स्पष्ट किया है कि अगर ऑनलाइन क्लास जरूरी है, तो उसके लिए फीस का कुछ हिस्सा निर्धारित किया जाना चाहिए. क्योंकि ऑनलाइन क्लास में लाइट, मोबाइल डाटा और संसाधन भी अभिभावक का ही इस्तेमाल हो रहा है. हालांकि फीस को लेकर गरमाई बहस में आखिर में छोटे-बड़े सभी स्कूलों में पैरेंट्स-शिक्षक की कमेटी बनाकर फीस को लेकर उपयुक्त पैमाने निर्धारित करने पर सहमति बनी.
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बता दें कि कोरोना महामारी के बीच राज्य सरकार ने बीते दिनों फैसला लेते हुए निजी स्कूल अभिभावकों से 3 महीने की अग्रिम फीस नहीं लिए जाने के निर्देश जारी किए. साथ ही स्कूलों को यथासंभव ऑनलाइन लेक्चर और ई-लर्निंग की व्यवस्था करने के निर्देश भी दिए. जिससे पढ़ाई में निरंतरता बनी रहे. साथ ही प्राइवेट शिक्षण संस्थानों को सख्त हिदायत दी कि फीस के अभाव में किसी भी छात्र का नाम विद्यालय की ओर से नहीं काटा जाए.
ऐसे में 3 महीने तक तो प्राइवेट स्कूल संचालक शांत रहे. लेकिन अब लॉकडाउन खुलने के साथ ही अभिभावकों पर फीस जमा कराने का दबाव बनाया जा रहा है. इस कोरोना काल के दौरान भी जिन स्कूलों की ओर से फीस बढ़ोतरी की गई या एक साथ कई महीनों की फीस की मांग की गई. वहां प्रदर्शनों का दौर भी देखने को मिला.