जयपुर. शारदीय नवरात्र में दुर्गाअष्टमी के दिन कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. नवरात्र स्वयं मां आदिशक्ति की उपासना का पर्व है और कुंवारी कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. ऐसे में शुक्रवार को नवरात्र के 8 वें दिन घरों में कन्याओं की पूजा की गई और उनका आशीर्वाद लिया गया.
आमतौर पर नवरात्र के प्रत्येक दिन के लिए कन्या पूजन का विधान है, लेकिन दुर्गा अष्टमी के दिन विशेषतौर पर कन्या पूजा की जाती है. इसीलिए आज शारदीय नवरात्रा की अष्टमी पर घरों में 11, 21 और 51 कन्याओं का अपनी भक्तिभाव के अनुसार लोगों ने भोज कराया और उसके पश्चात उन्हें भेंट स्वरुप वस्त्र और कई जगह तो शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पाठ्य सामग्री भेंट की गई.
मान्यता है कि कन्याओं को खीर-पूड़ी या फिर हलवा चना खिलाने की परंपरा है, क्योंकि यह सारी चीजें मां भगवती को भोग के रूप में अर्पित की जाती है. साथ ही कन्या भोज में कुछ मीठा शामिल करना आवश्यक होता है. इसे मां भगवती प्रसन्न होती है. वहीं कुंवारी कन्याओं को भेंट देने से आपके पुण्य कर्मों का दुगुना पल मिलता है. वही धन-धान्य से परिपूर्ण रहने के लिए कन्याओं का आशीर्वाद भी लिया जाता है.
नवरात्र के अंतिम दिन मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान
वहीं अजमेर में नवरात्र के अंतिम दिन अजमेर में माता के सभी प्रमुख मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान हुए. माता की पूजा अर्चना के साथ महा आरती का भी आयोजन किया गया. इस अवसर पर माता की प्रतिमाओं का नयनाभिराम श्रृंगार किया गया. नवमी खेतान कई भक्तों ने मंदिरों और घरों में नौ कन्याओं को भोजन करवा कर उन्हें भेंट उपहार दिए.
फसाद रोड स्थित प्रसिद्ध चामुंडा माता मंदिर में भी नवरात्रा पर्व पर माता को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करवाएं. हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते इस बार माता के मंदिरों में भक्तों का तांता नहीं लगा. लोगों ने मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना की. माता के दर्शन कर भक्त मंदिरों में रुके नहीं बल्कि दर्शन लाभ लेकर अपने घरों को लौट गए.
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भक्तों ने बताया कि इस बार भी हर्षोल्लास के साथ नवरात्र का पर्व आस्था और भक्ति के साथ मनाया गया है. एक महिला से श्रद्धालुओं ने बताया कि नवरात्रा में कन्याओं को भोजन करवाने की परंपरा रही है. जिस प्रकार श्रद्धा और आस्था के साथ कन्याओं को भोजन करवाया जाता है. खुशी आस्था और श्रद्धा के साथ कन्याओं की देखभाल भी वर्ष पर्यंत करनी चाहिए. मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना के चलते बुजुर्ग श्रद्धालुओं ने भी माता के दर्शनो का लाभ उठाया.