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राजस्थान : कई सालों से वन्यजीवों की देखरेख के लिए डॉक्टर्स के अभाव से जूझ रहा वन विभाग

हाल ही में हुई राज्य वन्यजीव मंडल की 11वीं बैठक में वन विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने वन्यजीवों के लिए चिकित्सक ना होने की बात रखी थी. जिसको लेकर मुख्यमंत्री ने भी आश्वासन दिया है कि जल्द ही इन समस्याओं को दूर किया जाएगा. पढ़ें ये खबर...

राजस्थान न्यूज, jaipur news
वन विभाग में वन्यजीवों के लिए मौजूद नहीं हैं डॉक्टर्स
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Published : Sep 23, 2020, 4:40 PM IST

जयपुर. वन विभाग कई सालों से वन्यजीवों की देखरेख के लिए डॉक्टर्स के अभाव से जूझ रहा है. वन अभयारण्यों में पद खाली पड़े ऑन कॉल वन्यजीव चिकित्सक बुला रहे हैं. सरिस्का, रणथंभौर, उदयपुर और जोधपुर में चिकित्सकों का जिम्मा वनकर्मी ही संभाल रहे हैं. वहीं, जरूरत पड़ने पर पशु चिकित्सक को फोन करके बुला रहे हैं. इस समस्या को लेकर हाल ही में वन विभाग के अधिकारियों ने राज्य वन्यजीव मंडल की 11 वीं बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने भी डॉक्टर की समस्या रखी थी.

वन विभाग में वन्यजीवों के लिए मौजूद नहीं हैं डॉक्टर्स

प्रदेशभर के वन अभयारण्य और टाइगर सेंचुरी देश ही नहीं दुनिया भर में ख्याति पा चुके हैं. इनमें प्रवास कर रहे वन्यजीवों का दीदार के नाम पर सरकार को सालाना लाखों रुपए की कमाई हो रही है. इसके बावजूद भी इनकी ओर जिम्मेदारी का ध्यान नहीं है. खासकर वन्यजीवों के स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही बरती जा रही है.

पढ़ें- जयपुर : शाहपुरा फिटनेस सेंटर की मान्यता रद्द, ऐसा पहला मामला

स्थिति ये है कि टाइगर रिजर्व और बड़े-बड़े जैविक उद्यान में वन्यजीव चिकित्सक नहीं होने से वन्यजीव के स्वास्थ्य की देखभाल का जिम्मा वनकर्मी और केयर टेकर संभाल रहे हैं. अति आवश्यक होने पर पशु चिकित्सालय से चिकित्सक को फोन करके बुलाया जाता है. ये अनदेखी कई बार वन्यजीवों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है.

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डॉक्टरों के अभाव में हो चुकी है कई जानवरों की मौत

वहीं, उदयपुर स्थित सज्जनगढ़ जैविक उद्यान, जोधपुर के माचिया जैविक उद्यान ही नहीं, बल्कि टाइगर रिजर्व में भी यही हालात नजर आ रहे हैं. अफसरों के ढीले रवैये के चलते चिकित्सक भी आने में कोई खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं. ऐसे में यहां स्थानीय पशु चिकित्सालय से कभी-कभार पशु चिकित्सक आते हैं और देखकर चले जाते हैं. कई बार स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर जयपुर से ही वन्यजीव चिकित्सक को भेजना पड़ता है. हैरत की बात है इन दुर्लभ वन्यजीवों को बचाने के लिए सरकार और विभाग इतने दावे करता है, लेकिन स्थिति उलट है. इनके लिए सरकार को जल्द रिक्त पदों को भरने की कार्रवाई करनी चाहिए.

सज्जनगढ़ जैविक उद्यान उदयपुर...

यहां 8 शेर, 1 बाघ, और 7 बघेरे समेत कई वन्यजीव प्रवास कर रहे हैं. यहां पर 2017 के बाद से वन्यजीव चिकित्सक का पद रिक्त है. वेटरनरी अस्पताल से सप्ताह में 3 दिन वन्यजीव चिकित्सक आते हैं. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर बुलाया जाता है.

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चिकित्सकों का जिम्मा संभाल रहे वनकर्मी

माचिया जैविक उद्यान जोधपुर...

उद्यान में एक जोड़ा शेर-शेरनी, दो नर और एक मादा बाघ, 5 बघेरे प्रवास कर रहे है. यहां पर 22 मई से अभी तक वन्यजीव चिकित्सक का पद रिक्त है. वेटेनरी अस्पताल से एक चिकित्सक महज 2 घंटे आता है. बाकी समय वन्यजीव भगवान भरोसे रहते हैं.

रणथंभौर टाइगर रिजर्व...

यहां 70 बाघ प्रवास कर रहे हैं. वन विभाग ने वन्यजीव चिकित्सक का कोई पद स्वीकृत ही नहीं किया. यही वजह है आए दिन बाघो के बीमार होकर मरने की खबर आती रहती है. यहां 2017 में एक मोबाइल मेडिकल वैन भी लगाई गई थी, लेकिन अफसरों की अनदेखी के चलते वो भी कबाड़ में तब्दील हो गई. यहां ट्रैंकुलाएज भी वनकर्मी खुद ही कर लेते हैं.

सरिस्का टाइगर रिजर्व...

1200 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जंगल में 20 बाघ प्रवास करते हैं. यहां भी वन्यजीव चिकित्सक का पद स्वीकृत नहीं है. कभी कभार यहां वेटेनरी अस्पताल से वन्यजीव चिकित्सक बुला लेते हैं. ज्यादा जरूरत होने पर जयपुर से चिकित्सक बुलाने पड़ते हैं.

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वन्यजीवों की देखरेख के लिए वन विभाग में नहीं है डॉक्टर्स

वन्यजीव चिकित्सकों का कहना है कि वन अभयारण्यों में कंपाउंडर के पद भी स्वीकृत नहीं है. ऐसे में जानवर के रुटीन चेकअप और पिंजरे के अंदर बाहर करने के लिए वन कर्मियों की मदद लेनी पड़ती है. इसमें कई बार घंटों इंतजार करना पड़ता है. इसके अलावा प्रशासनिक शक्तियां भी नहीं है.

वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक जीवी रेड्डी का कहना है कि चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की ओर से पीएचएस और मंत्री से भी डॉक्टर्स की कमी और अन्य कमी को लेकर चर्चा हुई है. हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ समीक्षा बैठक में वन विभाग की पेंडिंग समस्याओं को लेकर भी चर्चा हुई है. मुख्यमंत्री ने भी आश्वासन दिया है कि जल्द ही इन समस्याओं को विभाग दूर करें. 18 डॉक्टर्स की आवश्यकता है, वर्तमान में करीब 8 डॉक्टर ही काम कर रहे हैं.

पढ़ें- स्कूल Fees को लेकर अब पेरेंट्स फोरम ने भी हाईकोर्ट में दायर की अपील

वन विभाग जरूरत के हिसाब से पशुपालन विभाग से अस्थाई तौर पर पशु चिकित्सक को बतौर वन्यजीव चिकित्सक के तौर पर नियुक्त करता है. वन अभ्यारण, सेंचुरी या नेशनल पार्क में वन्यजीव चिकित्सक को वन्यजीवों पर पूरी नजर रखनी होती है. स्वास्थ्य की समय-समय पर मॉनिटरिंग करनी होती है. ट्रैकुलाइज और रेस्क्यू भी करना होता है. इनमें लापरवाही जानलेवा भी साबित हो सकती है. जबकि पशु चिकित्सालयों में ऐसा नहीं होता है. इसलिए यहां काम करने से भी कतराते हैं. यह भी एक वजह है पदों के रिक्त होने की. वन्यजीवों के स्वभाव, डाइट, स्वास्थ्य, प्रजनन, ट्रैकुलाइज और रेस्क्यू के लिए वन्यजीव चिकित्सक का स्थाई होना जरूरी है. अभ्यारण और सेंचुरी में सर्वप्रथम ट्रेंड वन्यजीव चिकित्सक होना आवश्यक है. जिसे शेर, बाघ, बघेरे और अन्य वन्यजीवों के स्वास्थ्य संबंधित जानकारी हो. अधूरा ज्ञान और मनमानी जानलेवा साबित हो सकती है.

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वन अभयारण्यों में कंपाउंडर के पद भी स्वीकृत नहीं...

इन वन्यजीवों की हो चुकी मौतें...

रणथंभौर टाइगर रिजर्व- 1 बाघ, 2 शावक

नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क- 2 शेर, 2 बाघ, 2 शावक

सज्जनगढ़ जैविक उद्यान- 2 बाघ

सरिस्का टाइगर रिजर्व- 2 बाघ

जयपुर. वन विभाग कई सालों से वन्यजीवों की देखरेख के लिए डॉक्टर्स के अभाव से जूझ रहा है. वन अभयारण्यों में पद खाली पड़े ऑन कॉल वन्यजीव चिकित्सक बुला रहे हैं. सरिस्का, रणथंभौर, उदयपुर और जोधपुर में चिकित्सकों का जिम्मा वनकर्मी ही संभाल रहे हैं. वहीं, जरूरत पड़ने पर पशु चिकित्सक को फोन करके बुला रहे हैं. इस समस्या को लेकर हाल ही में वन विभाग के अधिकारियों ने राज्य वन्यजीव मंडल की 11 वीं बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने भी डॉक्टर की समस्या रखी थी.

वन विभाग में वन्यजीवों के लिए मौजूद नहीं हैं डॉक्टर्स

प्रदेशभर के वन अभयारण्य और टाइगर सेंचुरी देश ही नहीं दुनिया भर में ख्याति पा चुके हैं. इनमें प्रवास कर रहे वन्यजीवों का दीदार के नाम पर सरकार को सालाना लाखों रुपए की कमाई हो रही है. इसके बावजूद भी इनकी ओर जिम्मेदारी का ध्यान नहीं है. खासकर वन्यजीवों के स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही बरती जा रही है.

पढ़ें- जयपुर : शाहपुरा फिटनेस सेंटर की मान्यता रद्द, ऐसा पहला मामला

स्थिति ये है कि टाइगर रिजर्व और बड़े-बड़े जैविक उद्यान में वन्यजीव चिकित्सक नहीं होने से वन्यजीव के स्वास्थ्य की देखभाल का जिम्मा वनकर्मी और केयर टेकर संभाल रहे हैं. अति आवश्यक होने पर पशु चिकित्सालय से चिकित्सक को फोन करके बुलाया जाता है. ये अनदेखी कई बार वन्यजीवों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है.

राजस्थान न्यूज, jaipur news
डॉक्टरों के अभाव में हो चुकी है कई जानवरों की मौत

वहीं, उदयपुर स्थित सज्जनगढ़ जैविक उद्यान, जोधपुर के माचिया जैविक उद्यान ही नहीं, बल्कि टाइगर रिजर्व में भी यही हालात नजर आ रहे हैं. अफसरों के ढीले रवैये के चलते चिकित्सक भी आने में कोई खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं. ऐसे में यहां स्थानीय पशु चिकित्सालय से कभी-कभार पशु चिकित्सक आते हैं और देखकर चले जाते हैं. कई बार स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर जयपुर से ही वन्यजीव चिकित्सक को भेजना पड़ता है. हैरत की बात है इन दुर्लभ वन्यजीवों को बचाने के लिए सरकार और विभाग इतने दावे करता है, लेकिन स्थिति उलट है. इनके लिए सरकार को जल्द रिक्त पदों को भरने की कार्रवाई करनी चाहिए.

सज्जनगढ़ जैविक उद्यान उदयपुर...

यहां 8 शेर, 1 बाघ, और 7 बघेरे समेत कई वन्यजीव प्रवास कर रहे हैं. यहां पर 2017 के बाद से वन्यजीव चिकित्सक का पद रिक्त है. वेटरनरी अस्पताल से सप्ताह में 3 दिन वन्यजीव चिकित्सक आते हैं. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर बुलाया जाता है.

राजस्थान न्यूज, jaipur news
चिकित्सकों का जिम्मा संभाल रहे वनकर्मी

माचिया जैविक उद्यान जोधपुर...

उद्यान में एक जोड़ा शेर-शेरनी, दो नर और एक मादा बाघ, 5 बघेरे प्रवास कर रहे है. यहां पर 22 मई से अभी तक वन्यजीव चिकित्सक का पद रिक्त है. वेटेनरी अस्पताल से एक चिकित्सक महज 2 घंटे आता है. बाकी समय वन्यजीव भगवान भरोसे रहते हैं.

रणथंभौर टाइगर रिजर्व...

यहां 70 बाघ प्रवास कर रहे हैं. वन विभाग ने वन्यजीव चिकित्सक का कोई पद स्वीकृत ही नहीं किया. यही वजह है आए दिन बाघो के बीमार होकर मरने की खबर आती रहती है. यहां 2017 में एक मोबाइल मेडिकल वैन भी लगाई गई थी, लेकिन अफसरों की अनदेखी के चलते वो भी कबाड़ में तब्दील हो गई. यहां ट्रैंकुलाएज भी वनकर्मी खुद ही कर लेते हैं.

सरिस्का टाइगर रिजर्व...

1200 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जंगल में 20 बाघ प्रवास करते हैं. यहां भी वन्यजीव चिकित्सक का पद स्वीकृत नहीं है. कभी कभार यहां वेटेनरी अस्पताल से वन्यजीव चिकित्सक बुला लेते हैं. ज्यादा जरूरत होने पर जयपुर से चिकित्सक बुलाने पड़ते हैं.

राजस्थान न्यूज, jaipur news
वन्यजीवों की देखरेख के लिए वन विभाग में नहीं है डॉक्टर्स

वन्यजीव चिकित्सकों का कहना है कि वन अभयारण्यों में कंपाउंडर के पद भी स्वीकृत नहीं है. ऐसे में जानवर के रुटीन चेकअप और पिंजरे के अंदर बाहर करने के लिए वन कर्मियों की मदद लेनी पड़ती है. इसमें कई बार घंटों इंतजार करना पड़ता है. इसके अलावा प्रशासनिक शक्तियां भी नहीं है.

वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक जीवी रेड्डी का कहना है कि चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की ओर से पीएचएस और मंत्री से भी डॉक्टर्स की कमी और अन्य कमी को लेकर चर्चा हुई है. हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ समीक्षा बैठक में वन विभाग की पेंडिंग समस्याओं को लेकर भी चर्चा हुई है. मुख्यमंत्री ने भी आश्वासन दिया है कि जल्द ही इन समस्याओं को विभाग दूर करें. 18 डॉक्टर्स की आवश्यकता है, वर्तमान में करीब 8 डॉक्टर ही काम कर रहे हैं.

पढ़ें- स्कूल Fees को लेकर अब पेरेंट्स फोरम ने भी हाईकोर्ट में दायर की अपील

वन विभाग जरूरत के हिसाब से पशुपालन विभाग से अस्थाई तौर पर पशु चिकित्सक को बतौर वन्यजीव चिकित्सक के तौर पर नियुक्त करता है. वन अभ्यारण, सेंचुरी या नेशनल पार्क में वन्यजीव चिकित्सक को वन्यजीवों पर पूरी नजर रखनी होती है. स्वास्थ्य की समय-समय पर मॉनिटरिंग करनी होती है. ट्रैकुलाइज और रेस्क्यू भी करना होता है. इनमें लापरवाही जानलेवा भी साबित हो सकती है. जबकि पशु चिकित्सालयों में ऐसा नहीं होता है. इसलिए यहां काम करने से भी कतराते हैं. यह भी एक वजह है पदों के रिक्त होने की. वन्यजीवों के स्वभाव, डाइट, स्वास्थ्य, प्रजनन, ट्रैकुलाइज और रेस्क्यू के लिए वन्यजीव चिकित्सक का स्थाई होना जरूरी है. अभ्यारण और सेंचुरी में सर्वप्रथम ट्रेंड वन्यजीव चिकित्सक होना आवश्यक है. जिसे शेर, बाघ, बघेरे और अन्य वन्यजीवों के स्वास्थ्य संबंधित जानकारी हो. अधूरा ज्ञान और मनमानी जानलेवा साबित हो सकती है.

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वन अभयारण्यों में कंपाउंडर के पद भी स्वीकृत नहीं...

इन वन्यजीवों की हो चुकी मौतें...

रणथंभौर टाइगर रिजर्व- 1 बाघ, 2 शावक

नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क- 2 शेर, 2 बाघ, 2 शावक

सज्जनगढ़ जैविक उद्यान- 2 बाघ

सरिस्का टाइगर रिजर्व- 2 बाघ

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