जयपुर. जेडीए की लोहा मंडी योजना को लेकर अवाप्त की गई जमीन के मुआवजे को लेकर नया पेंच फंस गया है. आरोप है कि काश्तकारों ने पहले भूखंड धारियों से जमीन की कीमत वसूल की और अब जेडीए से मुआवजा राशि ले रहे हैं. ऐसे में राज्य सरकार और जेडीए प्रशासन से मामले की जांच (dispute on compensation amount in Loha Mandi scheme) करते हुए मुआवजा राशि काश्तकारों के बजाय भूखंड धारियों को देने की मांग उठाई है.
जयपुर में लोहा मंडी के लिए अवाप्त की गई कृषि भूमि को लेकर मोती भवन निर्माण सहकारी समिति ने आरोप लगाया है कि आमेर तहसील के ग्राम माचेडा में समिति ने काश्तकारों से वर्ष 1995 में जमीनें खरीद कर एस-4 हिल व्यू योजना का सृजन कर सदस्यों को भूखंडों के आवंटन किए थे. सदस्यों की सूची नियमानुसार उप-रजिस्ट्रार सहकारी समिति को प्रेषित कर दी गई थी. एस-4 हिल व्यू योजना के कई सदस्यों ने भूखंडों का कब्जा प्राप्त कर घर भी बना लिए थे. जेडीए ने उस समय योजना के करीब 35 बीघा की 90बी भी कर दी थी.
यही नहीं, मौके पर सड़क, पानी की टंकी और अन्य सुविधाओं का निर्माण भी करवा दिया था. बाद में राज्य सरकार ने इस कृषि भूमि का लोहा मंडी के लिए चयन कर उसकी अवाप्ति की अधिसूचना जारी की. तब समिति ने सदस्यों के हित में भूमि अवाप्ति पर आपत्ति दर्ज करवाते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. मामले में वर्ष 2017 में कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से की जा रही भूमि अवाप्ति को सही ठहराते हुए समिति के 90बी शुदा भूमि धारकों को मुआवजे का हकदार माना.
समिति पदाधिकारियों का आरोप है कि काश्तकारों ने पहले अपनी जमीन की राशि भूखंड धारियों से ली और अब जेडीए से भूखंड धारियों को मिलने वाली मुआवजा राशि भी हड़प रहे हैं. यही नहीं उन्होंने जेडीए से समिति के रिकॉर्ड गायब करने और हेराफेरी का भी आरोप लगाया. साथ ही भूखंड धारियों के हित में मांग की है कि काश्तकारों को दिया गया मुआवजा वापस लेकर समिति सदस्यों को दिया जाए और यदि ऐसा नहीं किया जाता तो वो फिर न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे.
आपको बता दें कि पिछले करीब 21 सालों से लंबित लोहा मंडी योजना को क्रियान्वित करने की दिशा में एंपावर्ड कमिटी ने योजना की भूमि का लैंड यूज चेंज किया. लेकिन फिलहाल मामले में अवाप्त की गई जमीन के मुआवजे को लेकर नया पेच फंस गया है.