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JLF 2020: राजस्थानी भाषा की मान्यता पर हुई चर्चा

राजधानी में हो रहे जेएलएफ में शुक्रवार को राजस्थानी भाषा को लेकर चर्चा हुई. राजस्थान प्रदेश के पिछड़ने का एक कारण राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलना बताया गया. लेखक और साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा को रोजगार से जोड़ने की जरूरत बताई.

Jaipur Literature Festival, जेएलएफ 2020
जेएलएफ में राजस्थानी भाषा की मान्यता पर हुई चर्चा
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Published : Jan 24, 2020, 7:56 PM IST

जयपुर. जेएलएफ में शुक्रवार की शुरुआत गायिका शुभा मुद्गल के सेशन के साथ-साथ हुई. उन्होंने सुधा सदानंदन के साथ अपनी किताब पर बात की. उन्होंने रियलिटी शो पर बात करते हुए कहा कि आप टैलेंट शो में अच्छी आवाज सुनते हैं, लेकिन साल भर बाद वो गायक कहीं नहीं होते. ये दुखद है.

जेएलएफ में राजस्थानी भाषा की मान्यता पर हुई चर्चा

शुभा मुद्गल ने कहा मुझे नहीं लगता कि रियलिटी शो में जज पार्टिसिपेंट्स के साथ अनफेयर होते हैं. यहां से भी बहुत अच्छा टैलेंट निकल कर बाहर आ रहा है, जिन्हें सुनने का मन करता है. वह आपको कई बार अपनी गायकी से हैरान कर देते हैं, लेकिन कभी किसी ने उनसे पूछा कि शो के तीन महीने बाद वह कैसे हैं, क्या किसी ने जाना कि शो खत्म होने के 3 साल बाद उनके साथ क्या हुआ. क्या उन्होंने संगीत की दुनिया में कोई मुकाम हासिल किया.

उन्होंने कहा कि वो सिंगर वही गाते हैं, जो उनके मैनेजर चाहते हैं. टैलेंट शो से मुझे आपत्ति नहीं है, लेकिन मुझे पसंद नहीं है कि एक संगीतकार कॉन्ट्रैक्ट में बंद कर अपने संगीत में प्रोग्रेस करने का समय ही ना दे पाए, जिस पर काम करने की जरूरत है. सेशन में शुभा मुद्गल ने सीखो ना नैनों की भाषा पिया गाना गुनगुना कर श्रोताओं का दिल जीत लिया.

पढ़ें- JLF 2020 : विवेकानंद, सावरकर और पटेल के नाम रहा पहला दिन

वहीं जेएलएफ में राजस्थानी भाषा को लेकर भी चर्चा हुई. राजस्थान प्रदेश के पिछड़ने का एक कारण राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलना बताया गया. लेखक और साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा को रोजगार से जोड़ने की जरूरत बताई. साहित्यकार चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि राजस्थान में राजस्थानी भाषा नहीं तो कैसा राजस्थान, जब देश के कई प्रदेश भाषा के आधार पर बने, तो राजस्थानी को मान्यता क्यों नहीं मिल रही है. राजस्थान के पिछड़ने का कारण राजस्थानी भाषा को बढ़ावा नहीं देना है. राजस्थानी भाषा हमारी अस्मिता का सवाल है, भाषा हमे पहचान देती है. उन्होंने कहा कि हमारे यहां भाषा की नीति साफ नहीं है. हमारे नेताओं की नीतियों में खोट है.

वहीं लेखक विशेष कोठारी ने सवाल किया कि राजस्थानी भाषा का आंदोलन सशक्त क्यों नहीं हुआ. इस पर लेखक मधु आचार्य ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने में जनता की भागीदारी बहुत कम रही है. हमारे विधायक सांसद जब तक जनता के बीच वोट लेने जाते हैं तब राजस्थानी में बात करते हैं लेकिन विधायक और सांसद बनने के बाद राजस्थानी भाषा को भूल जाते हैं.

पढ़ें- धौलपुर में रोजगार शिविर का आयोजन, 163 आशार्थी लाभान्वित​​​​​​​

राजस्थानी भाषा को मान्यता तभी मिलेगी, जब इसे रोजगार से जोड़ा जाएगा. राजस्थानी को मान्यता मिलेगी तो प्रदेश के युवाओं को रोजगार में भी फायदा मिलेगा. भाषा की मान्यता की लड़ाई में युवाओं के साथ हर नागरिक को जोड़ने की जरूरत है. लेखक ने कहा कि जब राजनीति इच्छाशक्ति मजबूत होगी, तब ही राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल सकेगी. आज प्रदेश के सिर्फ तीन कॉलेजों में ही राजस्थानी भाषा पढ़ाई जा रही है.

उन्होंने सोशल मीडिया का हवाला देते हुए कहा कि आधुनिक होना जरूरत है, लेकिन जड़ों से भी जुड़ना जरूरी है. चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि साल 2011 की करीब 4 करोड़ 70 लाख लोगों ने राजस्थानी को मातृभाषा चुना है, 39 कोश राजस्थानी में हैं. राजस्थानी की लिपि नहीं होने का बहाना बनाया जाता है, लिपि बनाने का अधिकार देना होगा, तभी लिपि तैयार होगी.

जयपुर. जेएलएफ में शुक्रवार की शुरुआत गायिका शुभा मुद्गल के सेशन के साथ-साथ हुई. उन्होंने सुधा सदानंदन के साथ अपनी किताब पर बात की. उन्होंने रियलिटी शो पर बात करते हुए कहा कि आप टैलेंट शो में अच्छी आवाज सुनते हैं, लेकिन साल भर बाद वो गायक कहीं नहीं होते. ये दुखद है.

जेएलएफ में राजस्थानी भाषा की मान्यता पर हुई चर्चा

शुभा मुद्गल ने कहा मुझे नहीं लगता कि रियलिटी शो में जज पार्टिसिपेंट्स के साथ अनफेयर होते हैं. यहां से भी बहुत अच्छा टैलेंट निकल कर बाहर आ रहा है, जिन्हें सुनने का मन करता है. वह आपको कई बार अपनी गायकी से हैरान कर देते हैं, लेकिन कभी किसी ने उनसे पूछा कि शो के तीन महीने बाद वह कैसे हैं, क्या किसी ने जाना कि शो खत्म होने के 3 साल बाद उनके साथ क्या हुआ. क्या उन्होंने संगीत की दुनिया में कोई मुकाम हासिल किया.

उन्होंने कहा कि वो सिंगर वही गाते हैं, जो उनके मैनेजर चाहते हैं. टैलेंट शो से मुझे आपत्ति नहीं है, लेकिन मुझे पसंद नहीं है कि एक संगीतकार कॉन्ट्रैक्ट में बंद कर अपने संगीत में प्रोग्रेस करने का समय ही ना दे पाए, जिस पर काम करने की जरूरत है. सेशन में शुभा मुद्गल ने सीखो ना नैनों की भाषा पिया गाना गुनगुना कर श्रोताओं का दिल जीत लिया.

पढ़ें- JLF 2020 : विवेकानंद, सावरकर और पटेल के नाम रहा पहला दिन

वहीं जेएलएफ में राजस्थानी भाषा को लेकर भी चर्चा हुई. राजस्थान प्रदेश के पिछड़ने का एक कारण राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलना बताया गया. लेखक और साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा को रोजगार से जोड़ने की जरूरत बताई. साहित्यकार चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि राजस्थान में राजस्थानी भाषा नहीं तो कैसा राजस्थान, जब देश के कई प्रदेश भाषा के आधार पर बने, तो राजस्थानी को मान्यता क्यों नहीं मिल रही है. राजस्थान के पिछड़ने का कारण राजस्थानी भाषा को बढ़ावा नहीं देना है. राजस्थानी भाषा हमारी अस्मिता का सवाल है, भाषा हमे पहचान देती है. उन्होंने कहा कि हमारे यहां भाषा की नीति साफ नहीं है. हमारे नेताओं की नीतियों में खोट है.

वहीं लेखक विशेष कोठारी ने सवाल किया कि राजस्थानी भाषा का आंदोलन सशक्त क्यों नहीं हुआ. इस पर लेखक मधु आचार्य ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने में जनता की भागीदारी बहुत कम रही है. हमारे विधायक सांसद जब तक जनता के बीच वोट लेने जाते हैं तब राजस्थानी में बात करते हैं लेकिन विधायक और सांसद बनने के बाद राजस्थानी भाषा को भूल जाते हैं.

पढ़ें- धौलपुर में रोजगार शिविर का आयोजन, 163 आशार्थी लाभान्वित​​​​​​​

राजस्थानी भाषा को मान्यता तभी मिलेगी, जब इसे रोजगार से जोड़ा जाएगा. राजस्थानी को मान्यता मिलेगी तो प्रदेश के युवाओं को रोजगार में भी फायदा मिलेगा. भाषा की मान्यता की लड़ाई में युवाओं के साथ हर नागरिक को जोड़ने की जरूरत है. लेखक ने कहा कि जब राजनीति इच्छाशक्ति मजबूत होगी, तब ही राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल सकेगी. आज प्रदेश के सिर्फ तीन कॉलेजों में ही राजस्थानी भाषा पढ़ाई जा रही है.

उन्होंने सोशल मीडिया का हवाला देते हुए कहा कि आधुनिक होना जरूरत है, लेकिन जड़ों से भी जुड़ना जरूरी है. चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि साल 2011 की करीब 4 करोड़ 70 लाख लोगों ने राजस्थानी को मातृभाषा चुना है, 39 कोश राजस्थानी में हैं. राजस्थानी की लिपि नहीं होने का बहाना बनाया जाता है, लिपि बनाने का अधिकार देना होगा, तभी लिपि तैयार होगी.

Intro:जयपुर- जेएलएफ में शुक्रवार की शुरुआत गायिका शुभा मुद्गल के सेशन के साथ-साथ हुई। उन्होंने सुधा सदानंदन के साथ अपनी किताब पर बात की। उन्होंने रियलिटी शो पर बात करते हुए कहा कि आप टैलेंट शो में अच्छी आवाज सुनते है, लेकिन साल भर बाद वो गायक कहीं नहीं होते। ये दुखद है।

शुभा मुद्गल ने कहा मुझे नहीं लगता कि रियलिटी शो में जज पार्टिसिपेंट्स के साथ अनफेयर होते है। यहां से भी बहुत अच्छा टैलेंट निकल कर बाहर आ रहा है जिन्हें सुनने का मन करता है। वह आपको कई बार अपनी गायकी से हैरान कर देते हैं लेकिन कभी किसी ने उनसे पूछा कि शो के तीन महीने बाद वह कैसे हैं, क्या किसी ने जाना कि शो खत्म होने के 3 साल बाद उनके साथ क्या हुआ। क्या उन्होंने संगीत की दुनिया में कोई मुकाम हासिल किया। उन्होंने शो से संगीत के बारे में कुछ सीखा क्या? आज वो वही गाते हैं, जो उनके मैनेजर चाहते है। टैलेंट शो से मुझे आपत्ति नहीं है लेकिन मुझे पसंद नहीं है कि एक संगीतकार कॉन्ट्रैक्ट में बंद कर अपने संगीत में प्रोग्रेस करने का समय ही ना दे पाए, जिस पर काम करने की जरूरत है। सेशन में शुभा मुद्गल ने सीखो ना नैनों की भाषा पिया गाना गुनगुना कर श्रोताओं का दिल जीत लिया।


Body:उधर, जेएलएफ में राजस्थानी भाषा को लेकर भी चर्चा हुई। राजस्थान प्रदेश के पिछड़ने का एक कारण राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलना बताया गया। लेखक और साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा को रोजगार से जोड़ने की जरूरत बताई। साहित्यकार चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि राजस्थान में राजस्थानी भाषा नहीं तो कैसा राजस्थान, जब देश के कई प्रदेश भाषा के आधार पर बने, तो राजस्थानी को मान्यता क्यों नहीं मिल रही है। राजस्थान के पिछड़ने का कारण राजस्थानी भाषा को बढ़ावा नहीं देना है। राजस्थानी भाषा हमारी अस्मिता का सवाल है, भाषा में पहचान देती है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां भाषा की नीति साफ नहीं है। हमारे नेताओं की नीतियों में खोट है।

लेखक विशेष कोठारी ने सवाल किया कि राजस्थानी भाषा का आंदोलन सशक्त क्यों नहीं हुआ। इस पर लेखक मधु आचार्य ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने में जनता की भागीदारी बहुत कम रही है। हमारे विधायक सांसद जब तक जनता के बीच वोट लेने जाते हैं तब राजस्थानी में बात करते हैं लेकिन विधायक और सांसद बनने के बाद राजस्थानी भाषा को भूल जाते है। राजस्थानी भाषा को मान्यता तभी मिलेगी जब इसे रोजगार से जोड़ा जायेगा। राजस्थानी को मान्यता मिलेगी तो प्रदेश के युवाओं को रोजगार में भी फायदा मिलेगा। भाषा की मान्यता की लड़ाई में युवाओं के साथ हर नागरिक को जोड़ने की जरूरत है। लेखक ने कहा कि जब राजनीति इच्छाशक्ति मजबूत होगी, तब ही राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल सकेगी। आज प्रदेश के सिर्फ तीन कॉलेजों में ही राजस्थानी भाषा पढ़ाई जा रही है। उन्होंने सोशल मीडिया का हवाला देते हुए कहा कि आधुनिक होना जरूरत है लेकिन जड़ों से भी जोड़ना जरूरी है। चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि साल 2011 की करीब 4 करोड़ 70 लाख लोगों ने राजस्थनी को मातृभाषा चुना है, 39 कोश राजस्थानी में है। राजस्थानी की लिपि नहीं होने का बहाना बनाया जाता है, लिपी बनाने का अधिकार देना होगा, तभी लिपि तैयार होगी।


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