जयपुर. राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने अब तक दो चरण में अपने 65 नेताओं को राजनीतिक नियुक्तियों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनाकर समाहित कर लिया है. 3 साल बाद ही सही 65 को पार्टी ने खुश कर दिया और इसके साथ राजनीतिक नियुक्तियां (Discomfort on political appointment still sensed in rajasthan) देकर इन नेताओं में ऊर्जा का संचार कर दिया है, लेकिन इन 65 नेताओं में से 14 विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियां दे दी गई. जिसके चलते राजनीतिक नियुक्तियां पाने वाले कांग्रेस के करीब दो दर्जन बड़े नेता इन नियुक्तियों से महरूम रह गए. अब ये नेता टकटकी लगाकर बाकी बची नियुक्तियों में अपनी जगह बनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
नियुक्ति नहीं तो कैम्पेन में सहभागिता नहीं!: 50 से ज्यादा नेताओं को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विभिन्न बोर्ड आयोग में सदस्य भी बनाया है लेकिन बड़े नेता अपने लिए चेयरमैन ,अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद ही चाहते हैं. यही कारण है कि राजस्थान में जब इन नेताओं के हाथ खाली रह गए, तो कांग्रेस पार्टी के सदस्यता अभियान (Congress membership Campaign) में भी इन नेताओं ने रुचि नहीं दिखाई है. जिसके चलते भी कांग्रेस सदस्यता अभियान को झटका लगा है. सदस्यों को जोड़ने का क्रम बेहद धीमा और निराशा से भरा दिख रहा है.
दरअसल, राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की ओर से इस बार 50 लाख सदस्य बनाने का टारगेट रखा गया था. 31 मार्च को कैम्पेन का आखिरी दिन है. जो सूचना है उसके मुताबिक ये संख्या बमुश्किल 3-4 लाख तक पहुंची है. चूंकि इन बड़े नेताओं का प्रभाव इनके क्षेत्र में भी था तो उसको देखते हुए ही लक्ष्य सेट किया गया था. लक्ष्य हासिल करने की गति में धीमापन बताता है कि अंदरूनी नाराजगी के चलते इन नेताओं ने सदस्यता अभियान में कोई खास रुचि नहीं दिखाई और कांग्रेस की सदस्यता अभियान पर इसका नकारात्मक असर पड़ा देखा जा सकता है.
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में फंसा पेंच: राजस्थान में दी गई राजनीतिक नियुक्तियों में अब तक 14 विधायकों को बोर्ड, आयोग ,निगम में चेयरमैन अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष बनाया गया है लेकिन विधायकों के साथ समस्या ये है कि विधायक होने के चलते वो ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में आ गए हैं. इस वजह से पद के अनुरूप मिलने वाली सुविधाओं से महरूम हैं. सूत्रों के मुताबिक अंदरखाने Unrest का ये बड़ा कारण बन गया है. बड़े नेताओं में इस बात की नाराजगी है कि जब विधायकों को कोई सुविधाएं दी ही नहीं जा सकती थीं ,तो उन्हें केवल नाम मात्र का पद देने की क्या आवश्यकता थी? सबको संतुष्ट करने के चक्कर में कांग्रेस के ही नेता पीछे रह गए. उनका तर्क है कि अगर उन्हें नियुक्तियां मिलती तो उनके राजनीतिक करियर में उछाल आता.
ये बड़े नेता खाली हाथ: गिरिजा व्यास, दुरू मियां, अश्क अली टांक, विजय लक्ष्मी विश्नोई, सुभाष महरिया, कृष्णकुमारी गंगावत, शिवचरण माली, राजेंद्र चौधरी, पूनम गोयल, अजित सिंह शेखावत, केके हरितवाल, सुरेश चौधरी, सत्येंद्र भारद्वाज, गोपाल बाहेती बीना काक, राजकुमार जयपाल, शंकर पन्नू, रामचंद्र सराधना ऐसे बड़े नाम है जो फिलहाल नियुक्तियों के मामले में पिछड़ गए हैं.