जयपुर. केंद्र में रेल महकमे के जरिए राजस्थान की कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने के मकसद से विभिन्न कलाकृतियों की पेंटिंग बीते दिनों सुर्खियों में रही थी. अब केंद्र सरकार के डाक महकमें ने भी राजस्थानी कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने का जिम्मा संभाला है. राजस्थानी कला और संस्कृति के आधार पर तैयार किए गए विशेष लिफाफों के जरिए डाक विभाग राजस्थानी कला और संस्कृति को देश और दुनिया को रूबरू कराएगा.
डाक विभाग की ओर से विशेष लिफाफे तैयार किए गए हैं. जिसमें राजस्थानी कला और संस्कृति को जगह दी गई है. जब लोग लिफाफों में चिट्टियां लिखकर अलग-अलग जगह पर भेजेंगे तो वहां के लोग राजस्थानी उत्पादों के बारे में जानेंगे और यहां की संस्कृति से रूबरू भी होंगे. इससे राजस्थानी स्थानीय उत्पादों का प्रचार भी होगा. साथ ही उसके उत्पादन में बढ़ोतरी भी होगी. जिससे इन विशेष उत्पादों को बनाने वालों की इनकम में इजाफा होगा और उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी.
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एक तरह से डाक विभाग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत की कड़ी में अपने लिफाफे पर स्थानीय 8 कलाओं को तवज्जो दे रहा है. जिससे राज्य से बाहर और विदेशों में भी लोग इनकी कलाओं को जान सके. डाक विभाग की ओर से सभी विशेष लिफाफों पर प्रदर्शित राजस्थान की कला और संस्कृति को अतुल्य भारत की अमूल्य निधि बताया गया है. भारतीय भू सर्वेक्षण विभाग की ओर से इन्हें भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक भी दिए गए हैं. यह क्रमांक सभी विशेष आवरणों पर अंकित किए गए हैं. डाक विभाग ने इन 8 स्पेशल कवर्स का एक सेट जारी किया है. जिसकी कीमत 100 रुपये रखी गई है. इन लिफाफों के विशेष विरूपण (special cancellation) के लिए विशेष मुहर भी बनाई गई है.
प्रदेश की इन कला और संस्कृति पर आधारित हैं ये विशेष लिफाफे
बीकानेरी भुजिया
इस विशेष लिफाफे में बीकानेर में उगने वाली मोठ की फसल, उससे बनने वाली भुजिया (Bikaneri Bhujia) और उसके निर्माण एवं पैकेजिंग के चित्रों के साथ उसका भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 142 दर्शाया गया है. इस लिफाफे के विशेष विरूपण (special cancellation) के लिए बनाई गईं मुहर में बीकानेर में उगाई जाने वाली मोठ की दाल की फसल को दिखाया गया है. बीकानेर की भुजिया स्वदिष्ट होती है और अपने स्वाद के कारण यह बीकानेरी भुजिया देश विदेश में बेहद पसंद की जाती है. इसमे बेसन, मोठ और मसालों का उपयोग किया जाता है.
मोलेला क्ले वर्क और पोकरण पॉटरी
इन विशेष लिफाफों पर मोलेला क्ले वर्क और पोकरण पॉटरी का सुंदर चित्र और भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 67 एवं 519 दर्शाया गया है. विशेष विरूपण की मुहर में मोलेला से बने मिट्टी के दिए का चित्र भी अंकित है. पोकरण क्षेत्र की मिट्टी हल्की गुलाबी और चिपचिपी होती है, जो बर्तन बनाने के लिए उपयुक्त होती है. इस मिट्टी से तैयार किए गए बर्तन और वस्तुएं सूखने के बाद भूरे रंग की हो जाती है. आग में तपने के बाद टेराकोटा लाल या भूरे रंग या चमकदार काला हो जाता है. यह काम देखने में आकर्षक लगता है, इसे मोलेला क्ले वर्क कहते हैं.
थेवा आर्ट वर्क
इन विशेष लिफाफों में थेवा आर्ट वर्क के अलग-अलग डिजाइन और भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 244 दर्शाया गया है. इसके लिफाफे के विशेष विरूपण की मुहर में ऊंट की हड्डी से बने पारंपरिक जनजातिय आभूषण के डिजाइन का चित्रण है. यह आभूषण बनाने की विशेष कला है. इस कला में पिघले हुए कांच पर बारीक काम कर सोने की परत को उभारा जाता है. एक पीस को तैयार करने में काफी समय लगता है, कई बार तो एक पीस एक महीने में तैयार होता है. यह कला प्रतापगढ़ की मूल कला है.
कोटा डोरिया
इन विशेष लिफाफों पर कोटा डोरिया का एक डिजाइन और भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 12 अंकित किया गया है. विशेष विरूपण की मुहर में कोटा डोरिया की जीआई टैग के लोगो का चित्रण है. कोटा डोरिया एक बुना हुआ स्पेशल कपड़ा होता है. जिसमें महीन रेशम और कपास के मिश्रण से बहुत ही आकर्षक पैटर्न तैयार किया जाता है. यह राजस्थान की एक प्रसिद्ध कला का नमूना है. वर्तमान में कोटा डोरिया की साड़ियां महिलाओं में खूब लोकप्रिय है.
सांगानेरी और बगरू हैंड ब्लॉक प्रिंट
इन विशेष लिफाफों में हैंड ब्लॉक से छपाई के चित्र और भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 147 और 183 दर्शाया गया है. इस कवर के विशेष विरूपण की मुहर में हैंड ब्लॉक छपाई में प्रयुक्त लकड़ी के ब्लॉक में तोते का चित्र अंकित है. जयपुर के पास ही स्थित सांगानेरी और बगरू हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग का काम देश-विदेश में प्रसिद्ध है. पहले सांगानेरी प्रिंट सफेद और ऑफ व्हाईट फैब्रिक पर बनाए जाते थे, अब कारीगर अन्य कपड़ों का भी उपयोग कर रहे हैं. फूलों और पंखुड़ियों का सांगानेरी प्रिंट में विशेष स्थान है. बगरू हैंड ब्लॉक प्रिंट रंगीन पृष्ठभूमि के कपड़े पर होता है. बगरू प्रिंट प्राकृतिक रंगों से की जाने वाली हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग का एक रूप है. बगरू प्रिंट में पहले डिजाइन लकड़ी के ब्लॉक पर उकेरा जाता है और फिर वह डिजाइन कपड़े पर की जाती है.
राजस्थान की कठपुतलियां
इन विशेष लिफाफों में कठपुतलियों के संयुक्त चित्र को दिखाया गया है. इसका भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 68 है. इस कवर के विशेष विरूपण की मुहर में कठपुतली में आम की लकड़ी का नक्काशीदार चेहरा दर्शाया गया है. कठपुतली कला हजारों साल से भी अधिक पुरानी कला है और इसका जिक्र राजस्थानी लोक कथाओं, गाथाओं और लोक गीतों में मिलता है. कठपुतली राजस्थानी भाषा के दो शब्द काठ (लकड़ी) और पुतली (गुड़िया) मिलकर बना है. कठपुतली को बनाने में लकड़ी, सूती कपड़े और धातु के तार का उपयोग होता है. राजा-महाराजाओं के समय लोक गाथाओं को कठपुतलियों के जरिए बताया जाता था.
मकराना मार्बल
इन विशेष लिफाफों में मकराना की खानों से निकलने वाले संगमरमर के चित्र अंकित हैं. साथ ही मकराना मार्बल का भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 405 दर्शाया गया है. इस लिफाफे के विशेष विरूपण की मुहर में मकराना मार्बल से बने ताजमहल को दर्शाया गया है. राजस्थान के नागौर जिले के मकराना में सफेद संगमरमर की खान हैं. इन खानों से निकलने वाले मार्बल से मूर्तियां और सजावट की वस्तुओं का निर्माण होता है.
ब्लू पॉटरी ऑफ जयपुर
इन विशेष लिफाफों में जयपुर ब्लू पॉटरी कला और इससे तैयार फूलदान और अन्य बर्तन के चित्रों को दिखाया गया है. जिसका भौगोलिक संकेतक प्रमाण पत्र क्रमांक 66 है. इस लिफाफे के विशेष विरूपण की मुहर में हड़प्पा सभ्यता के कालीबंगा से मिले घड़े को दिखाया गया है. ब्लू पॉटरी जयपुर का शिल्प है. ब्लू पॉटरी का नाम मिट्टी के बर्तनों को रंगने के लिए इस्तेमाल होने वाली कोबाल्ट ब्लू आई से निकला है. कांच और मुल्तानी मिट्टी के मिश्रण और ब्लू डाई से तैयार बर्तन व अन्य सजावटी सामान कम आंच पर तैयार किए जाते हैं.
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विशेष लिफाफे जारी होने के बाद जयपुर के जीपीओ स्थित कार्यालय में लोग उनको खरीदने के लिए भी पहुंच रहे हैं. डाक टिकट संग्रह करने वाले लोगों में इसे लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है. फिलैटली सोसाइटी जयपुर के पूर्व अध्यक्ष जतन मल ढोर ने बताया कि उन्हें डाक टिकटों और अन्य चीजों का संग्रह करने का शौक है. इसलिए वे जीपीओ में यह विशेष लिफाफे लेने आए हैं. भौगोलिक संकेतक (जीआई) को लेकर उन्होंने कहा कि जो प्रसिद्ध चीज स्थान पर बनती है, उस स्थान को भौगोलिक संकेतक दिया जाता है और उत्पादित वस्तुओं पर उसको अंकित भी किया जाता है.
डाक महानिदेशालय के अतिरिक्त महानिदेशक (समन्वय) ए. के.पोद्दार बताया कि पूरे देश में अब तक 500 से अधिक प्रोडक्ट को जीआई कोड मिल चुके हैं और 60 से अधिक उत्पादों पर डाक विभाग की ओर से विशेष लिफाफे जारी किए गए हैं. राजस्थान में अब इनकी संख्या 8 हैं. उन्होंने कहा कि चौहट्टन का फर्नीचर, जयपुर की लाख की चूड़ियां, दाल-बाटी चूरमा जैसे कई उत्पाद हैं, जिन्हें जीआई कोड मिल सकता है. उसके लिए प्रयास करने की जरूरत है.