जयपुर. राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के भविष्य पर जब अटकलें लगाई जा रही है. तब ईटीवी भारत की टीम ने राजनीतिक परिस्थितियों का आंकलन किया. इस दौरान ये साफ दिखा कि गहलोत सरकार बैकफुट पर है और उसका सबसे बड़ा कारण कांग्रेस पार्टी के विधायकों के बीच आपसी फूट है. संख्या बल के आधार पर भले ही गहलोत खेमा शुरुआत से बहुमत का दावा करते आया है.
लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि अभी तक किसी प्रकार की सूची सत्ता दल से जुड़े विधायकों के बारे में पेश नहीं की गई है. यही वजह है की बार-बार अशोक गहलोत की तरफ से चिंता जाहिर की जा रही है और बार-बार मीडिया से मुखातिब होते हुए अशोक गहलोत विधायकों की खरीद-फरोख्त और उनकी कीमतों का जिक्र करते हुए नजर आते हैं.
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ईटीवी भारत के अब तक के आंकलन के हिसाब से देखा जाए, तो गहलोत से जुड़े कैंप में फिलहाल 100 विधायक मौजूद हैं. वहीं, सत्ताधारी दल ये मान रहा है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दो विधायक भी उनके साथ हैं और इस प्रकार से संख्या गणित को 102 देखा जा रहा है. बहरहाल मौजूदा 100 विधायकों की बात करें, तो विधानसभाध्यक्ष सीपी जोशी को छोड़ने के बाद इन विधायकों की संख्या 99 रह जाती है.
इनमें से 6 विधायक बहुजन समाज पार्टी से दल विलय के बाद कांग्रेस में शामिल हुए हैं और इनके भविष्य की तस्वीर 11 अगस्त को राजस्थान उच्च न्यायालय की एकलपीठ में तय होगी. मतलब साफ है कि अगर अदालत से बहुमत साबित होने की प्रक्रिया के दौरान मतदान के बीच इन विधायकों के मताधिकार पर किसी प्रकार से रोक लग जाती है, तो फिर अशोक गहलोत सरकार के सामने बहुमत साबित करना काफी कठिन होगा.
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वहीं, मौजूदा कैंप से गाहे-बगाहे बगावत और नाराजगी की खबरों का आना भी गहलोत खेमे के लिए चिंताएं बढ़ा रहा है. इस बीच 10 निर्दलीय विधायक क्या विश्वासमत के दौरान शत प्रतिशत रूप से अशोक गहलोत का समर्थन करेंगे. राजनीतिक विश्लेषक इस बात को लेकर भी एकमत नजर नहीं आते हैं. साथ ही भारतीय ट्राइबल पार्टी यानि बीटीपी के विधायकों को जबरन कैंप में लाने के वीडियो भी बीते दिनों सामने आए थे.
हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के समर्थन में बीटीपी की तरफ से एक पत्र इस वीडियो के बाद जारी किया जा चुका है. लेकिन बीटीपी के दो विधायकों की भूमिका भी विश्वासमत की प्रक्रिया के दौरान देखने वाली है. राजस्थान के तमाम सियासी समीकरण फिलहाल अशोक गहलोत सरकार की अस्थिरता को बयान करते हैं.
ऐसे हालात के बीच 14 अगस्त के विधानसभा सत्र के दौरान किसी भी प्रकार के विधेयक के आने और विश्वासमत की प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस के बागी 19 विधायकों की भूमिका, कांग्रेस कैंप में बैठे 10 निर्दलीय विधायकों के रुख, बीटीपी और माकपा के 2 विधायकों को लेकर पार्टी की रणनीति के साथ-साथ बसपा से दल विलय करने वाले 6 विधायकों के भविष्य पर सरकार के संकट की स्थिति को कसौटी पर रखा जाएगा.
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इसलिए 12 जून, 2020 को राजस्थान विधानसभा के मुख्य सचेतक महेश जोशी की तरफ से राज्यसभा चुनाव से पहले हुई बाड़ेबंदी को जायज ठहराने को लेकर जारी किए गए बयान के बाद से अब तक लगातार कांग्रेस अपने विधायकों को काबू में रखने का जतन करती हुई नजर आ रही है. पहले जयपुर के पांच सितारा होटल में और अब जैसलमेर के किलेनुमा होटल में विधायकों को ले जाकर अशोक गहलोत खुद को महफूज रखने की जद्दोजहद करते हुए नजर आते हैं. जबकि उन्हें पता है कि इन होटलों के कनेक्शन को लेकर सियासत में उन पर लंबे अरसे तक उंगलियां उठाई जाएगी.
राजस्थान की राजनीति के गणित का मौजूदा आंकलन ये साफ करता है कि 11 अगस्त को राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला और 14 अगस्त को विधानसभा सत्र के दौरान बागी विधायकों के रुख के साथ-साथ सहयोग के रथ पर सरकार को सवार रखने वाले दल और विधायक ही प्रदेश की सियासत की अगली सीढ़ी को तय करेंगे. राजनीति के जादूगर फिलहाल इस दौर में मुश्किलात से जूझ रहे हैं. जिनसे पार पाने के लिए उन्हें सियासी जमीन पर कई समझौते ढोने के लिए तैयार रहना होगा.