जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने भिवाड़ी थाना पुलिस की ओर से शराब बॉटलिंग कंपनी पर की गई सीजर कार्रवाई को गलत मानते हुए कंपनी संचालकों के खिलाफ गत 12 अक्टूबर को दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने पुलिस अधिकारियों को कहा, वे अक्टूबर महीने से कंपनी का काम बंद रहने से हुए नुकसान के लिए कंपनी को दस लाख रुपए का भुगतान करें. वहीं अदालत ने डीजीपी को मामले में लिप्त दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच करने के निर्देश दिए हैं. अदालत ने कहा, वह पुलिस को उसकी शक्ति का दुरुपयोग करने की मंजूरी नहीं दे सकती. न्यायाधीश एसपी शर्मा ने यह आदेश पुनीत सोलंकी और अन्य की आपराधिक याचिकाओं को मंजूर करते हुए दिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, मामले में थानाधिकारी ने बिना अधिकारी फैक्ट्री परिसर में प्रवेश किया और अनुसंधान व सीजर की कार्रवाई की. इस दौरान उसका व्यवहार आबकारी निरीक्षक के समान रहा. जबकि आबकारी अधिनियम के तहत आबकारी निरीक्षक साथ हो तो पुलिस उसकी केवल सहयोगी ही हो सकती है. ऐसा नहीं हो सकता कि पुलिस पहले तो कंपनी की फैक्ट्री पर रेड डाले और उसके बाद आबकारी निरीक्षक को बुलाए. पुलिस ने मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी भी गलत की है, जो अवैध है.
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मामले में राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता डॉ. विभूति भूषण शर्मा ने कहा, आबकारी अधिनियम की धारा- 10 के तहत पुलिस को फैक्ट्री में जाने का अधिकार है. पुलिस ने आईपीसी की धाराओं में मामला दर्ज किया है. ऐसे में संज्ञेय अपराध होने पर पुलिस कार्रवाई कर सकती है, लेकिन अदालत ने राज्य सरकार की दलीलों से असहमत होते हुए आरोपियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया.
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मामले के अनुसार भिवाड़ी थानाधिकारी ने गत 12 अक्टूबर को मामला दर्ज कराया था, रात को गश्त के दौरान उसे मुखबिर से सूचना मिली की फैक्ट्री में भारत निर्मित विदेशी शराब बनाने और पैकिंग का काम होता है. वहीं उसे गुजरात से आए उपनिरीक्षक से भी जानकारी मिली की गोल्डन बॉटलिंग कंपनी की ओर से बिना लाइसेंस भारत निर्मित विदेशी शराब बनाकर उसे बिहार और गुजरात भेजा जाता है. इस पर पुलिस ने फैक्ट्री में सर्च रेड डाली, जिसमें आबकारी अधिकारी को भी शामिल किया गया.
इस दौरान मौके पर बिना लाइसेंस शराब बनाना पाया गया और दस हजार से अधिक कार्टन शराब सीज की गई।.इसके साथ ही पुलिस ने कंपनी और आरोपी संचालकों के खिलाफ आबकारी व आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया. पुलिस की इस कार्रवाई को आरोपियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.